श्रीविधि से धान की रोपनी करें किसान, इस विधि के बहुत सारे फायदे : डॉ प्रदीप कुमार
धान उत्पादन की श्रीविधि एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा पानी के बहुत कम प्रयोग से ही धान की बहुत अच्छी उपज ली जा सकती है.
डुमरांव. धान उत्पादन की श्रीविधि एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा पानी के बहुत कम प्रयोग से ही धान की बहुत अच्छी उपज ली जा सकती है. इसे सघन धान प्रनाली या श्री पद्धति के नाम से भी जाना जाता है. जहां पारंपरिक तकनीक में धान के पौधों को पानी से लबालब भरे खेतों में उगाया जाता है, वहीं मेडागास्कर तकनीक में पौधों की जड़ों में नमी बरकरार रखना ही पर्याप्त होता है, लेकिन सिंचाई का उचित प्रबंध होना जरूरी है, ताकि जरूरत पड़ने पर फसल की सिंचाई की जा सके. इस विधि में सामान्य तौर से जमीन पर दरारें पड़ने के बाद ही सिंचाई करनी होती है. इस तकनीक से धान की खेती में भूमि, श्रम, पूंजी और पानी की तो बचत होती ही है, साथ ही उत्पादन भी कई गुना ज्यादा मिलता है. उक्त बातें किसानों की धान की खेती के बारे में जानकारी देते हुए वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय, डुमरांव के सहायक प्राध्यापक डॉ प्रदीप कुमार कही. उन्होंने बताया कि श्रीविधि से धान की रोपनी जिले के अन्य इलाकों की तरह प्रखंड कई क्षेत्रों में भी धान की रोपनी का काम शुरू हो चुका है. कुछ किसान अधिक पैदावार के लिए श्रीविधि से रोपनी पर भी हाथ आजमा रहे हैं. – एक एकड़ के लिए दो किलो बीज पर्याप्त इस विधि के बहुत सारे फायदे हैं, जैसे कि इसमें बीज बहुत कम लगता है और एक एकड़ के लिए दो किलो बीज पर्याप्त रहता है. इस खेती के लिए किसान हमेशा अच्छे क्वालिटी के बीज का चयन करें. किसान बीजोपचार के लिए सबसे पहले नमक का घोल बना लें, इसके बाद उसमें एक अंडा डालें, अगर अंडा तैरने लगे तो समझिए नमक और पानी का घोल तैयार हो गया है. फिर अंडे को घोल से निकालकर उसी पानी में दो किलो बीज डाल दें. जो बीज तैरने लगे उसे निकालकर फेक दें और जो बीज नीचे बैठ जाए उसे सही बीज माने. इस सही बीज को इस पानी से निकालकर दूसरे पानी में रातभर के लिए भिगो दें. फिर इसे पानी से छानकर जूट के बोरे में रख दें और कुछ घंटों के बाद जब बीज अंकुरित होने लगे तो उसका कार्बेंडाजिम से उपचार कर दें. उपचार करने बाद फिर इसे जूट के बोरे से 12 से 14 घंटों के लिए भिगो दें. ये बीज नर्सरी में डालने के लिए तैयार हो जाता है. नर्सरी के लिए पांच फीट चौड़ा और बीस फीट लंबा बेड तैयार किया जाता हैं इस बेड पर बीज का अंकुरण बहुत अच्छा होता है. एक बेड पर आधा किलो बीज के साथ पांच किलो वर्मी कम्पोस्ट डालें, इसके बाद इसे पुआल से ढ़क दें 12 से 15 दिनों में नर्सरी रोपाई के लिए तैयार हो जाएगी. – नर्सरी तैयार होने के बाद धान रोपाई की बारी 12 से 15 की दिन की तैयार नर्सरी रोपाई के लिए तैयार हो जाती है, जब पौधे में कुछ पत्तियां निकल जाती हैं. नर्सरी से पौधे निकालते समय खास बात रखनी चाहिए, जिससे कि बीज से पौधे का तना न टूटे और एक-एक पौधा निकल जाए और सबसे जरूरी बात नर्सरी निकालने के एक घंटे अंदर रोपाई कर देनी चाहिए. रोपाई करने के लिए एक रस्सी से नापकर रोपाई की जाती है. रोपण के समय अंगूठे और वर्तनी से सावधानी से पौधों की रोपाई करें. रस्सी से बनाए निशान पर एक समान दूरी पर पौधों को रोपा जाता है. नर्सरी से निकालने के बाद पौधों की मिट्टी को बिना धोए और बीज सहित ज्यादा गहराई में नहीं लगाया जाता है. – श्रीविधि से धान की खेती के फायदे श्रीविधि के द्वारा एक पौधे से कम से कम 40 से 60 कल्ले निकलते हैं, कभी कभी 80 से 90 कल्ले तक निकल जाते हैं, जब कि पारंपरिक विधि में 5 से 8 कल्ले निकलते हैं, इस खेती से परंपरागत की तुलना में कई गुना अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है, किसी भी धान की किस्म का इस्तेमाल किया जा सकता है, इस खेती में पानी कम लगता है, इस विधि का प्रयोग खरीफ, रबी एवं जायद तीनों मौसम में कर सकते हैं, बीमारियों और कीटों का प्रकोप कम होता है. : डॉ प्रदीप कुमार, सहायक प्राध्यापक, वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय (डुमरांव)
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