चौसा. मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम है. इसी महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है. इस महिने की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है, इसी दिन को अंग्रेजी कैलेंडर में मोहर्रम कहा गया है. मुहर्रम के महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयाइयों का कत्ल कर दिया गया था. हजरत हुसैन इराक के शहर करबला में यजीद की फौज से लड़ते हुए शहीद हुए थे. मुहर्रम माह की नौवीं तारिख को कत्ल की रात के रूप में मुस्लिम अनुनायी मनाते है. अगले दिन बुधवार को मुस्लिम धर्मावलंबी मातमी माहौल में मुहर्रम मनायेंगें. मुहर्रम पर मातम क्यों मोहर्रम पर मातम मनाने की कहानी लगभग 1400 साल पहले की है. 680 ई. में मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को सीरियाई शासक यजीद ने पैगंबर-ए-इस्लाम के नवासे हजरत हुसैन सहित उनके परिवार के कुछ सदस्यों कैद कर लिया और उसने कैद किए गए हजरत हुसैन सहित उनके परिवार के लोगों को इराक के कर्बला में तीन दिन तक भूखा-प्यासा रखकर मार डाला. सीरियाई शासक यजीद इस्लाम के नाम पर गलत काम कर रहा था. वह अपने गैरकानूनी कामों के लिए मुहम्मद साहब का समर्थन चाहता था, लेकिन मोहम्मद साहब ने उसका साथ नहीं दिया. इससे गुस्साए याजिद ने बदला लेने के लिए साजिश करके इस घटना को अंजाम दिया. इसके बाद 72 लोगों के हुसैनी काफिले में सिर्फ कुछ महिलाएं और हुसैन के बीमार बेटे हजरत जैनुल आबेदीन ही जिंदा बचे थे. कर्बला के मैदान पर इसी का मातम मुसलमान मनाते हैं.
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