कार्तिक पूर्णिमा पर लाखों श्रद्धालुअों ने लगायी गंगा में डुबकी

कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शुक्रवार को स्नान के लिए शहर में आस्था का सैलाब उमड़ गया

By Prabhat Khabar News Desk | November 15, 2024 9:59 PM
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बक्सर . कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर शुक्रवार को स्नान के लिए शहर में आस्था का सैलाब उमड़ गया. शहर समेत दूर-दराज से आए स्नानार्थी तड़के चार बजे से ही गंगा घाटों पर पहुंचकर पावन डुबकी लगाने लगे थे. स्नान का सिलसिला शाम तक चला. स्नान के बाद श्रद्धालु मंदिरों में जाकर देवी-देवताओं का दर्शन-पूजन किए और दान-पुण्य किए. हिंदुओं के लिए के लिए कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. इस दिन गंगा स्नान कर भगवान विष्णु की आराधना व दान-पुण्य करना विशेष फलदायी माना जाता है. सो यहां के उतरायणी गंगा में स्नान के लिए बिहार के अन्य जिलों के अलावा झाारखंड व उतर प्रदेश के निकटवर्ती जनपदों से भी स्नानार्थी पहुंचे हुए थे. इसका नतीजा यह हुआ कि शहर की सड़कें जाम से कराहती रहीं और ट्रैफिक पुलिस हांफती रही. इस अवसर पर भीड़ की संभावना को देखते हुए मंदिरों में विशेष इंतजाम किए गए थे, ताकि श्रद्धालुओं को कोई परेशानी नहीं हो. घाटों पर जाने में करनी पड़ रही थी मशक्कत : वैसे तो स्नानार्थियों की भीड़ प्रत्येक गंगा घाटों पर लग रही. परंतु रामरेखाघाट व नाथ बाबा घाट पर भीड़ का आलम यह था कि तट के नजदीक जाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही थी. इन घाटों पर तिल रखने तक के जगह नहीं बचे थे. प्रशासन की नजरअंदाजी के कारण रामरेखाघाट तक जाने वाली सड़क की दोनों तरफ अतिक्रमण कर दुकान लगाने के चलते रास्त संकीर्ण हो गया था. जिसका खामियाजा स्नानार्थियों को भुगतना पड़ रहा था. कार्तिक पूर्णिमा का महत्व : वर्ष के कुल 12 पूर्णिमा तिथियों में कार्तिक पूर्णिमा का खास स्थान होता है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली मनाई जाती है. कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है. क्योंकि इस तिथि को भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के एक आततायी दैत्य का वध किया था. इस तिथि को पवित्र नदी में स्नान और दान करना विशेष फलदायी होता है. इस दिन स्नान के साथ दान व दीपक जलाने का खासा महत्व माना गया है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन दीप-दान और भगवान विष्णु व मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करने पर उनकी कृपा बनी रहती है. कार्तिक पूर्णिमा को ही प्रलय काल में वेदों की रक्षा व सृष्टि को बचाने हेतु भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था, मत्स्य अवतार को भगवान विष्णु के दस अवतारों में पहला अवतार माना जाता है.

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