बक्सर. जीयर स्वामी जी के सानिध्य व केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे के संयोजन में आयोजित सनातन संस्कृति समागम में श्रीराम कथा के चौथे दिन स्वामी रामभद्राचार्य जी ने अपना श्रीराम कर्मभूमि न्यास के उद्देश्य को प्राप्त करने को लेकर अपने संकल्प को पुनः दोहराया और विश्वामित्र की भिक्षुक बन श्रीराम को दशरथ से मांगने का अद्भुत प्रसंग सुनाया. स्वामी जी ने कहा कि मैं यहां कथा करने नही कुछ करने आया हूं. मैं यदि यहां आया हूं तो कुछ कार्य होना चाहिए. 2024 तक भगवान श्रीराम की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा पुरुषार्थ की मूर्ति स्थापित होगी. मुझे बक्सर को अपने प्रेम से जितना है. महर्षियों की इस तपोभूमि को विश्व के मानचित्र पहचान दिलाना है. मैं तुलसी पीठ से इस पवित्र कार्य के लिए 9 लाख रुपये की राशि दूंगा.
मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने मंच से उद्घोष किया कि आयोजन के समापन पश्चात पूज्य स्वामी जी के जाने से पहले भूमि प्रस्तावित कर पूज्य स्वामी जी के हाथों भूमिपूजन का कार्य सम्पन्न किया जाएगा. स्वामी जी ने तुलसी पीठ से 9 लाख रुपये की राशि देने की घोषणा की है. हम बक्सर वासी प्रत्येक घर से 9-9 रुपये की धनराशि इकट्ठा कर 99 लाख की राशि संग्रहित करेंगे. यह संकल्प अवश्य ही पूरा होगा.
स्वामी जी ने कहा की इस पवित्र अभियान की अध्यक्षता मैं स्वयं करूंगा. 15 नवम्बर को योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में भूमि पूजन का कार्य सम्पन्न होगा. प्रतिमा के अनावरण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बक्सर आमंत्रित करूंगा. हिन्दू धर्म कोई पंथ नही है. यह भारतीयता का पर्याय है. न्यायालय भी यह कह चुका है. धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य. भारत धर्मनिरपेक्ष नही पंतनिरपेक्ष राष्ट्र है. धर्मनिरपेक्ष होंने का मतलब है कर्तव्य निरपेक्ष. हम कर्तव्य निरपेक्ष नही हो सकते हैं. भारत की संसद में स्पीकर की कुर्सी के पीछे संस्कृत लिखा हुआ है. जिसका अनुवाद है कि यह संसद धर्म चक्र के प्रवर्तन के लिए उपस्थित हुआ है. विश्वामित्र जी भिक्षुक बन अवधपति दशरथ से भगवान राम को मांगने की कथा सुनाया.
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कथा सुनाते हुए स्वामी जी ने बताया कि महर्षि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से कहा कि जिनका पराक्रम संतो के लिए हितैषी बालक दीजिए. मुझे राम दे दीजिए. केवल वही सुबाहु और मारीच का वध कर सकते हैं. बिना राम के बक्सर के ज्वलन्त समस्या का समाधान नहीं हो सकता. अप्रिय वचन सुनकर दशरथ ने कहा कि आप मेरी अक्षुणि सेना ले लीजिए. मेरी सारी वस्तु मुझसे ले लीजिए. मेरे प्राण ले लीजिए, पर मेरे राम को मुझसे दूर न कीजिये. महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच अपार शत्रुता के बावजूद संतो और राष्ट्र के कल्याण के लिए वशिष्ठ जी विश्वामित्र का साथ देते हुए दशरथ को सलाह देते हैं कि राम को ऋषि विश्वामित्र को दे दीजिए. यह प्रसंग सभी साधु संतों के लिए एक उदाहरण है कि सभी साधु अलग-अलग उपासना करते पर राष्ट्रहित में सब एक होंगे.