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प्रभु श्रीराम ने चलाया बाण, तो धू-धू कर जल उठा रावण

शनिवार की शाम किला मैदान की फिजा आतिशबाजी से गूंज उठा

बक्सर. शनिवार की शाम किला मैदान की फिजा आतिशबाजी से गूंज उठा. मौका था मैदान के एक कोने में बनाए गए रावण के 45 फुट उंचा पुतला और उसके बगल में बनाए गए 40 फीट उंचा मेघनाथ के पुतले में आतिशबाजी के बीच जब जलाए गए तो पूरा वातावरण जय श्रीराम के नारा से गूंठ उठा. किला मैदान में पैर रखने की जगह नहीं था. काफी संख्या में दूर-दराज से लोग रावण का पुतला दहन देखने पहुंचे थे. इस मौके पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे. वॉच टॉवर से सभी पर निगरानी रखी जा रही थी. वही काफी संख्या में पुलिस के जवान और पदाधिकारी भी मौजूद थे. पुतला दहन के दौरान जिलाधिकारी अंशुल अग्रवाल, पुलिस अधीक्षक सुभम आर्य, उप विकास आयुक्त डॉ महेंद्र पाल, सदर अनुमंडलाधिकारी धीरेंद्र मिश्रा समेत जिले के तमाम प्रशासनिक अधिकारी भी पहुंचे थे. लोग इस नजारे को अपने मोबाइल में कैद करने को लेकर व्याकुल दिखे. हर कोई इस क्षण का आनंद लेते नजर आया. इस दौरान पूरा किला मैदान लोगों से खचाखच भरा हुआ था. मैदान के एक कोने में रावण का 45 फीट ऊंचा पुतला तथा उसके बगल में 40 फीट ऊंचा मेघनाथ का पुतला बनाया गया था, जो लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहा. शाम ठीक 5.20 बजे प्रभु श्रीराम ने रावण के विशालकाय पुतले को निशाना बनाकर बाण छोड़ा. नाभि में बाण लगते ही रावण का पुतला कलात्मक आतिशबाजी के साथ धू धू कर जलने लगा और देखते ही देखते क्षण भर में जलकर खाक हो गया. इसके ठीक पंद्रह मिनट पहले श्रीराम के अनुज लक्ष्मण द्वारा मेघनाथ का वध करते हुए विशालकाय पूतले का दहन किया गया. मेघनाथ व रावण का वध होते ही जय श्रीराम की जयघोष से पूरा किला मैदान गूंज उठा. इस दौरान काफी संख्या में लोग किला मैदान में रावण वध का गवाह बने. रावण वध से पहले जमकर आतिशबाजी हुई. इसके पहले वृंदावन से पधारे श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला मंडल के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास ” जी के सफल निर्देशन में कलाकारों ने रामलीला मंच व मैदान में रावण वध प्रसंग का मंचन करते हुए दिखाया गया कि कुंभकरण के मृत्यु के बाद भी रावण का अहंकार कम नहीं हुआ, वह अपने पराक्रमी पुत्र मेघनाथ को रणभूमि में भेजता है, जहां लक्ष्मण एवं मेघनाथ के बीच जमकर युद्ध होता है. युद्ध के दौरान मेघनाथ ने अपने मायाजाल से लक्ष्मण जी को काफी परेशान किया. अंत में क्रोधित होकर लक्ष्मण ने अपने तीर से मेघनाथ का सिर काटकर धड़ से अलग कर दिया. इसके बाद मेघनाथ की पत्नी सुलोचना भी पति का सिर गोद में लेकर सती हो जाती हैं. पुत्र की मौत का समाचार सुन रावण को गहरा आघात लगाता है. तब मंदोदरी भी रावण को खुब समझाती है, पर रावण ने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी और सेना के साथ खुद युद्धभूमि में उतर पड़ता हैं. इस दौरान श्रीराम व रावण के बीच जमकर युद्ध हुआ. श्रीराम ने रावण का वध करने का अथक प्रयास किया, लेकिन काफी प्रयास के बावजूद भी वह सफल नहीं होते, तब अंत में विभिषण के कहने पर श्रीराम ने रावण के नाभिकुंडल में बाण मारा जाता हैं. और हाहाकार करते हुए रावण की मौत होती हैं. नगर के ऐतिहासिक किला मैदान में श्री रामलीला समिति द्वारा आयोजित 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के दौरान शनिवार को रावण वध कार्यक्रम की अध्यक्षता समिति के सचिव बैकुंठनाथ शर्मा व संचालन कोषाध्यक्ष सुरेश संगम ने किया. वहीं धन्यवाद ज्ञापन समिति के संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता ने किया .इस मौके पर समिति के बैकुंठ नाथ शर्मा, सुरेश संगम, हरिशंकर गुप्ता, कृष्ण कुमार वर्मा, रोहतास गोयल, प्रो सिद्धनाथ मिश्र, बैजनाथ केसरी, बबन सिंह, डॉ महेंद्र प्रसाद, दिनेश कुमार जायसवाल, मदन जी दूबे, रामस्वरूप अग्रवाल, नियामतुल्लाह फरीदी, डॉ. श्रवण कुमार तिवारी, उदय कुमार सर्राफ उर्फ जोखन, राजकुमार गुप्ता, उदय पाठक, दिनेश सिंह, सुशील मानसिंहका, दीपक अग्रवाल, श्याम अग्रवाल, राजेश चौरसिया, वृजमोहन सेठ, मृत्युंजय तिवारी, संजय ओझा, निकू ओझा, ओमजी यादव, पुरुषोत्तम नारायण मिश्रा समेत काफी संख्या में समाजसेवी उपस्थित थे.

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