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जिले में 88 प्रतिशत तक हुई धान की रोपनी

जिले में बारिश के कारण हुए सुहाने मौसम ने किसानों के चेहरे पर खुशी ला दी है

बक्सर . जिले में बारिश के कारण हुए सुहाने मौसम ने किसानों के चेहरे पर खुशी ला दी है. जो किसान पानी के इंतजार में खेती कार्य के बजाय खाली बैठे थे, वे अब खेती के कार्य में जोर-शोर से जुट गये हैं.जिले में कई दिनों से बारिश के कारण हुए सुहाने मौसम ने किसानों के चेहरे पर खुशी ला दी है. जो किसान पानी के इंतजार में खेती कार्य के बजाय खाली बैठे थे, वे अब खेती के कार्य में जोर-शोर से जुट गये हैं. कोई ट्रैक्टर लेकर खेतों की ओर चल पड़ा, तो कोई सूख रहे बिचड़े का हाल देखने पहुंचा. इस सुहाने मौसम के कारण जिले में धान रोपनी की रफ्तार तेज हो गयी है. जिले में धान रोपनी का लक्ष्य 96229.32हेक्टेयर निर्धारित है. उसके अनुपात में 83987.195हेक्टेयर में धान की रोपनी हो गयी है. इंद्र की मेहरबानी के कारण जिले में रोपनी की रफ्तार तेज हो गयी है और प्रतिशत 88 तक पहुंच गयी. इससे किसानों के चेहरे खिल उठे हैं. किसानों के मुताबिक, यदि बारिश नहीं होती, तो धान का उत्पादन प्रभावित हो सकता था. धान फसल में खरपतवार प्रबंधन जिले में धान फसल की रोपनी लगभग 88 प्रतिशत हो गयी है धान फसल की अच्छी उत्पादन के लिए जरूरी है कि फसल को खरपतवार से होने वाली क्षति से बचाए.सहायक निदेशक आत्मा बेबी कुमारी ने बताया कि यह क्षति परोक्ष रूप से होती है.ऐसा देखा गया है कि अगर खरपतवार का नियंत्रण नहीं किया जाये तो धान फसल के कुल उत्पादन में होने वाली कुल क्षति का लगभग 33% क्षति खरपतवार से हो सकती है, जो कीट/व्याधि से होने वाली क्षति से कही ज्यादा है. किसानों को इससे सावधान रहने की आवश्यकता है.खरपतवार हमारे फसल के पौधों से पोषण, स्थान, प्रकाश एवं जल के लिए प्रतिस्पर्धा करते है.आरम्भिक अवस्था में धान फसल के पौधों की वृद्धि दर खरपतवार के पौधों से कम रहने के कारण ये प्रतिस्पर्धा में धान फसल के पौधों से आगे होकर उपज दर में कमी लाते है.धान फसल के पौधों की जिस अवस्था में खरपतवार अधिकतम कुप्रभाव डालते है उसे प्रतिस्पर्धा की चरम अवधि कहा जाता है.यह अवधि धान फसल में बुआई के 15 से 45 दिन तक तथा रोपी गयी फसल में रोपाई के 30 से 45 दिन तक होती है.इस अवधि में वान फसल को खरपतवार मुक्त करना चाहिए यानि प्रबंधन / नियंत्रण रखना चाहिए ताकि उत्पादन प्रभावित नहीं हो. धान के प्रमुख खरपतवारः धान के प्रमुख खर-पतवार में सावधास, मकरा, कोदों, बनरा, कनकवा, सफेद मुर्गा, भंडारा, बडडी दुग्धी, जंगली धान, दूब तथा मोथा आदि है.जलीय क्षेत्रों में कर्मी तथा जल कुम्भी की अधिकता होतीप्रबंधनः सामान्यतः धान फसल में दो निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है.पहली निकाई-गुड़ाई, बुआई अथवा रोपनी 20-25 दिन बाद तथा दूसरी 40-45 दिन बाद करके खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है.फसल एवं खरपतवार की प्रतिस्पर्धा के क्रान्तिक समय में मजदूरों की कमी या असामान्य मौसम के कारण कभी-कभी खेत में अधिक नमी हो जाने के फलस्वरूप यांत्रिक विधि से निकाई-गुड़ाई संभव नहीं हो पाता है.जिस कारण किसानों को खरपतवारनाशी का उपयोग धान में खरपतवार प्रबंधन हेतु करते है. खरपतवारनाशी रसायनों के प्रयोग में सावधानियां- रसायनों की अनुशंसित मात्रा का ही व्यवहार करें. सही समय पर उचित खरपतवारनाशी का व्यवहार करें. खरपतवारनाशी रसायनों के घोल को पूरे खेत में समान रूप छिड़काव करें. खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग करते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए. छिड़काव सदैव हवा शान्त रहने तथा साफ मौसम में करना चाहिए.खरपतवारनाशी रसायनों के छिड़काव के लिए फ्लैट फैन फ्लड जेट नोजल का ही व्यवहार किया जाना चाहिए. छिड़काव करने के पहले एवं छिड़काव के बाद मशीन को अच्छी तरह से पानी से धोकर साफ कर लेना चाहिए, ताकि खरपतवारनाशी का अंश बचा न रह जाये.सहायक निदेशक आत्मा बेबी कुमारी ने बताया कि विशेष सेवा एवं सुविधा के लिए अपने नजदीक के पौधा संरक्षण केन्द्र या कृषि विज्ञान केन्द्र अथवा सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण, सहायक निदेशक, उद्यान या जिला कृषि कार्यालय से सम्पर्क करें.

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