अहिल्या धाम अहिरौली से आज होगा पंचकोसी परिक्रमा का आगाज
पांच दिवसीय सिद्धाश्रम पंचकोसी परिक्रमा का शुभारंभ बुधवार को होगा. पहले दिन अहिरौली स्थित अहिल्या धाम में पंचकोशी का विश्राम होगा
बक्सर. पांच दिवसीय सिद्धाश्रम पंचकोसी परिक्रमा का शुभारंभ बुधवार को होगा. पहले दिन अहिरौली स्थित अहिल्या धाम में पंचकोशी का विश्राम होगा. जहां गंगा स्नान के बाद देवी अहिल्या का दर्शन-पूजन कर पुआ-पकवान का भोग लगेगा. पंचकोशी परिक्रमा समिति के अध्यक्ष व बसांव पीठाधीश्वर अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने बताया कि परिक्रमा की सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं. साधु संतों का जत्था रामरेखाघाट से अहिरौली के लिए प्रस्थान करेगा. पंचकोसी मेला का समापन 25 नवंबर को शहर के मेन रोड स्थित बसांव मठिया से साधु-संतों को सम्मानित कर विदाई के साथ किया जाएगा. पंचकोसी का पहला पड़ाव 21 नवंबर को नदांव, दूसरा पड़ाव 22 को भभुवर, तीसरा पड़ाव 23 को बड़का नुआंव एवं चौथा पड़ाव 24 नवंबर को चरित्रवन में रहेगा. जबकि 24 नवम्बर को चरित्रवन में विश्व प्रसिद्ध लिट्टी चोखा मेला का आयोजन होगा. त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने शुरू की थी पंचकोसी परिक्रमा : त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने सबसे पहले पंचकोसी परिक्रमा यात्रा की थी. जिसकी याद में हर वर्ष अगहन कृष्णपक्ष पंचमी तिथि से परिक्रमा का शुभारंभ होता है. बक्सर का पौराणिक नाम सिद्धाश्रम है. जहां महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए प्रभु श्रीराम अनुज लक्ष्मण के साथ पहुंचे थे. यज्ञ संपन्न होने के बाद प्रभु श्रीराम अनुज लक्ष्मण के साथ पांच कोस में तप कर रहे ऋषियों से आशीर्वाद लेने उनके आश्रम पर पहुंचे थे. पहले दिन अहिरौली स्थित गौतम ऋषि के आश्रम पहुंचे. जहां रात्रि विश्राम के दौरान उन्हें पुआ-पकवान खिलाकर आवभगत की गई थी. दूसरे दिन नदांव स्थित नारद आश्रम पहुंचे. वहां नारद जी ने उन्हें खिचड़ी खिलाई. तीसरे दिन भार्गव आश्रम भभुवर पहुंचने पर उन्हें चूड़ा-दही का भोग लगाया गया. जबकि बड़का नुआंव स्थित महर्षि उद्दालक आश्रम पर सत्तू-मूली ग्रहण कर वे रात्रि विश्राम किए थे. इसी तरह पांचवे व अंतिम पड़ाव चरित्रवन में उन्हें लिट्टी-चोखा खिलाया गया था. विश्राम कुंड पर किए थे विश्राम : ऋषियों के दर्शन के बाद छठवें दिन प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी बसांव मठ स्थित विश्राम सरोवर पर विश्राम किये और अगले सुबह जनकपुर के लिए रवाना हुए थे. उसी के उपलक्ष्य में पंचकोसी परिक्रमा की परंपरा का निर्वहन किया जाता है. आचार्य श्रीकृष्णानंद जी पौराणिक बताते हैं कि विधि-विधान से परिक्रमा करने से आध्यात्मिक शक्ति व भगवान के प्रति भक्ति की प्राप्ति होती है.
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