Buxar News: मंडप में फेरे लेकर रघुनंदन बने सिया के पिया

Buxar News: महर्षि खाकी बाबा सरकार के निर्वाण तिथि पर नई बाजार में चल रहे 55वां सिय-पिय मिलन महोत्सव शनिवार को राम कलेवा के साथ संपन्न हो गया.

By Prabhat Khabar News Desk | December 7, 2024 8:52 PM

बक्सर. महर्षि खाकी बाबा सरकार के निर्वाण तिथि पर नई बाजार में चल रहे 55वां सिय-पिय मिलन महोत्सव शनिवार को राम कलेवा के साथ संपन्न हो गया. श्रीसीताराम विवाह की साक्षी के लिए देश के विभिन्न धामों से पहुंचे धर्माचार्य, भक्त वृंद अपने-अपने धामों को लौट गए. इससे पहले अवध धाम से धूमधाम से निकली श्रीराम बारात कई जगहों पर ठहराव के बाद शुक्रवार की शाम आयोजन स्थल पर पहुंचती है. जहां विशाल पंडाल में जनवासे के रूप में सजे मुख्य मंच पर बारात का रंग जमता है. उन रस्मों को पूरा करने के लिए परंपरागत परिधानों में सजी-संवरी महिलाओं की टोली उनकी अगवानी में पुष्प वर्षा करती हैं. मंगल गीत गाकर नाच-गाकर खुशियां मनाती हैं. उस क्रम में दूल्हों की परिछावन करते हंसी-ठिठोली करती हैं और कन्या दान तथा सिंदूर दान की रस्म पूर्ण कराती हैं.

गाजे-बाजे के साथ की गयी द्वार पूजा

ढोल-नगाड़े के साथ महाराज दशरथ की अगुवाई में द्वार पूजा की रस्म के लिए बाराती जनवासे से महाराज जनक के दरवाजे पर पहुंचते हैं. चारों दूल्हे घोड़े पर सवार होकर उनके साथ आगे-आगे चलते हैं. प्रभु श्रीराम के विवाह का बाराती बन ब्रह्मा, भगवान विष्णु व भगवान शिव के अलावा देवराज इंद्र व ऋषि-मुनि फूले नहीं समाते हैं. दरवाजे पर खड़ी मिथिलानियों द्वारा गाए जा रहे आपन खोरिया बहार ए जनक बाबा… मंगल गीत की ध्वनि गूंज रही है. उस बीच महाराज जनक वैदिक मंत्रों के बीच द्वार पूजा की रस्म पूरी करते हैं. द्वार पूजा के बाद चारों दूल्हे व महाराज दशरथ संग सभी बाराती प्रधान मंच स्थित जनवासे में लौट जाते हैं.

धुरक्षक की विधि को जनवासे पहुंची मिथिलानियां

द्वार पूजा के बाद माथे पर कलश लेकर मिथिलानिया जनवासे पहुंचती हैं. वे वहां बतौर समधी महाराज दशरथ एवं बारातियों की आज्ञा मांगने व धुरक्षक की विधि पूरी करती हैं. इस विधि के बाद महाराज दशरथ से दूल्हों को मंडप भेजने की गुजारिश करती हैं. प्रभु श्रीराम समेत चारों भाई पालकी पर सवार होकर विदेहराज जनक के दरवाजे पर पहुंचते हैं. वहां माता सुनैना व अन्य मिथिलानियां गीत गाकर चारों दूल्हों की परिछन विधि पूरी करतीहैं. फिर मां जानकी की सखियां चारों दूल्हे को आदर के साथ मंडप में ले जाती है. वहां मंगल गीतों व हंसी-ठिठोली के बीच धान कुटाई व लावा मेराई की विधि पूरी कराती हैं.

धान कुटाई व लावा मेराई की रस्म अदायगी

पंडाल के मध्य बने आकर्षक व चक्रिय घुमावदार विवाह मंड़प में सखियों संग सीता जी, उर्मिला, मांडवी व श्रुतकीर्ति चारों बहनें पहुंचती हैं. मिथिला परंपरा का निर्वहन करते हुए सखियां नहछू-नहावन की रस्म पूरी करती है. इसके बाद धान कुटाई व लावा मेराई की विधि पूरी कराती हैं. मिथिला के इस लोक विधि के बीच चारों भाइयों से सखियां हास-परिहास कर उन्हें खूब गुदगुदाती हैं. वे मंगल गाली गीत के माध्यम से प्रभु श्रीराम समेत चारों भाइयों से उनकी मां, बहन व पिता के बारे में मजाकिया सवाल कर उन्हें खूब छकाती हैं. उनके सवालों से घिरे चारों भाई कभी चुप्पी साध लेते हैं तो कभी निरुत्तर हो जाते हैं. उनके शब्दों को सखियां तोड़-मरोड़ कर ऐसा मजाक बना देती हैं कि प्रभु श्रीराम समेत चारों भाई निरुत्तर हो जाते हैं और मन ही मन आनंदित होते हैं.

सजल नेत्रों से जनक ने किया सीता का कन्यादान

मंडप में गोत्राचार व गौरी-गणेश की पूजा की जाती है. उसी बीच देवता प्रकट होकर पूजा ग्रहण करते हैं. पूजा के बाद दुल्हा व दुल्हन को सुंदर आसन पर बिठाया जाता है. फिर शुभ मुहूर्त आते ही महाराज जनक व महारानी सुनैना आती है. विदेह राज जनक दामाद के रूप में वरण करते हुए श्रीराम के चरण पखारते हैं. इसके बाद दोनों पक्षों के पुरोहित वर व कन्या की हथेलियों को मिलाकर मंत्रोच्चार के बीच पाणिग्रहण कराते हैं. लोक व वेद की रीति के साथ महाराज जनक पुत्री सीता का कन्यादान करते हैं. वर व कन्या भांवरि के साथ फेरे लेते हैं और प्रभु श्रीराम जनक दुलारी सीता जी की मांग में सिंदूर दान करते हैं. यह देख देव गाण आसमान से पुष्प की बारिश करते हैं. जबकि तालियों की गड़गड़ाहट के बीच दर्शक जय सियाराम का उदघोष करते हैं.

परिणय सूत्र में बंधे भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न

मंडप में महाराज जनक व रानी सुनैना कन्यादान के लिए विराजमान हैं. मिथिलानियों द्वारा गाए जा रहे कन्यादान गीत सुन सभी भावुक हो जाते हैं और आखों से आंसू ढरकने लगता है. इस रस्म के बाद प्रभु श्रीराम एवं सीता जी को श्रेष्ठ आसन पर बैठाया जाता है. इसके बाद गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से क्रमवार मांडवी, श्रुतकीर्ति व उर्मिला पहुंचती हैं. फिर मांडवी के साथ भरत का, उर्मिला का लक्ष्मण के साथ एवं श्रुतकीर्ति का शत्रुघ्न के साथ पाणिग्रहण संस्कार व कन्यादान किया जाता है. इसी के साथ कुछ पल के लिए इस खुशी में महौल गमगीन हो जाता है.

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