बक्सर.
जिले में ठंड मौसम की शुरूआत हो गयी है. इसके साथ ही जिले के जलस्त्रोत विभिन्न प्रकार के पक्षियों से गुलजार होने लगा है. जिसमें कई प्रकार की साइबेरियन पक्षी भी शामिल है. जिले में आ रहे मेहमान पक्षियों के स्वागत के लिए जलाशयों का जीर्णोद्धार का काम भी कराया जा रहा है. यह सिलसिला पूरे ठंड के मौसम तक जारी रहेगा. ठंड पड़ने के साथ ही जिला साइबेरियन पक्षियों से गुलजार हो गया है. जिले में गंगा नदी और जल सरोवर में लगभग 43 प्रकार की प्रजाति की पक्षियों का गणना ठड के मौसम में किया गया है. जिसमें 20 प्रकार की प्रजाति के पक्षियां प्रवासी व साइबेरिया में पाये जाने वाले जाने वाले पक्षियां शामिल है.शीत काल के समाप्त होते ही फिर होगी गणना
अभी राज्य के करीब 10-12 महत्वपूर्ण जलाशयों में शीत के शुरुआती काल में मुआयना किया जा रहा है. मध्य शीत काल में इस वर्ष राज्य के सौ से भी ज्यादा जलाशयों में यह गणना का कार्य फरवरी माह में किया जायेगा. इसके बाद शीतकाल के समाप्त होते ही फिर चुनिंदा जलाशयों में गणना का कार्य किया जाना है. इस गणना में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) का तकनीकी सहयोग शामिल है. इस इलाके में अभी तक यह कार्य बक्सर की गंगा, गोकुल जलाशय और सुहिया भांगर में ही किया जाता था, परंतु अब फरवरी माह में मध्य शीतकालीन जल पक्षी गणना का कार्य बक्सर और भोजपुर के कई और जलाशयों में भी किया जायेगा. इस शुरुआती दौर में 12 दिसंबर को चौसा के रानी घाट से बेयासी पुल अर्थात जनेश्वर मिश्रा पुल तक गंगा के करीब 50 किलोमीटर लम्बे क्षेत्र में पक्षियों की गणना बिहार के जाने-माने पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा के नेतृत्व में की गयी. इस भ्रमण में 43 प्रकार के करीब ग्यारह हजार पक्षियों की गिनती की गयी.20 प्रजाति के पक्षियों का आगमन हुआ
जिनमें लगभग 20 प्रजाति के पक्षियों का आगमन यहां सुदूर देशों से हुआ है. जिनमें ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब यानि शिवा हंस, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड यानि लालसर, यूरेशियन वीजन यानि छोटा लालसर, रुडी शेलडक यानि चकवा, कॉमन शेलडक यानि शाह चकवा, टफ्टेड डक यानि अबलक बतख, गडवाल यानि मैल, कॉमन पोचार्ड यानि बुरार, नॉर्दर्न पिनटेल यानि सींखपर, ग्रीनशैंक यानि टिमटिमा, लिटिल स्टिंट यानि पनलव्वा, टेमिंक स्टिंट छोटा पनलव्वा, ऑस्प्रे यानि मछरंगा, केंटिश प्लोवर मेरवा, लेसर सैंड प्लोवर मेरवा की प्रजाति, लिटिल रिंग्ड प्लोवर जिर्रिया, व्हाइट वैगटेल यानि सफ़ेद खंजन, ब्लैक हेडेड गल यानि धोमरा, पलाश गल यानि बड़ा धोमरा और बार्न स्वालो आदि शामिल हैं. वही महादेवा घाट, अहिरौली और दानी की कुटिया जैसे क्षेत्रों में फैले मीलों लम्बे-चौड़े बलुआही गंगा नदी की विशेषता है. जिनके कारण यहां पक्षियों की खासी विविधता मौजूद रहती है.
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