कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय….
लोक आस्था के महापर्व चैती छठ के तीसरे दिन रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया
बक्सर. लोक आस्था के महापर्व चैती छठ के तीसरे दिन रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया. व्रतियों ने जल, दूध व फलों से अस्त होते सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य अर्पित किया. छठ पूजा के लिए शहर के रामरेखाघाट समेत अन्य गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं का तांता लग गया था. इससे पहले कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय…आदि पारंपरिक छठ गीतों को गाते हुए महिला व्रती सगे-सबंधितयों के साथ छठ घाटों पर पहुंचीं. उनके साथ फलों व पूजा सामग्रियों से भरे दउरा माथे पर लेकर पुरुष सदस्य चल रहे थे. घाटों पर पहुंचने के बाद व्रती गंगा में डुबकी लगाए. इसके बाद छठ गीतों के बीच छठी मइया की पूजा-अर्चन कर भगवान सूर्य के अस्त होने का इंतजार करते रहे. इस बीच पश्चिम दिशा की ओर भगवान भास्कर लालिमा के साथ ज्योंही अस्त होने को आए अर्घ्य का सिलसिला शुरू हो गया. आचार्यों ने वैदिक मंत्रोचार के बीच विधि-विधान के साथ अर्घ्य दिलवाई. तत्पश्चात गीत गाते हुए व्रती घर लौट गए.
आज दिया जायेगा उदीयमान सूर्य को अर्घ्यचैती छठ को लेकर भगवान भास्कर के उदीयमान स्वरूप को दूसरा अर्घ्य सोमवार को प्रात: दिया जाएगा. इसके बाद प्रसाद ग्रहण के साथ पारण कर व्रत का समापन किया जाएगा. सूर्योपासना के चार दिवसीय लोक महापर्व का शुभारंभ 12 अप्रैल को हुआ था. पहले दिन नहाय-खाय व दूसरे दिन खरना व्रत कर व्रतियों ने 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू किया था.
आचार्यों के मुताबिक सूर्य की पूजा मुख्य रूप से तीन समय करना विशेष लाभकारी होती है . प्रातःकाल सूर्य की आराधना स्वास्थ्य को बेहतर करती है. मध्यान्ह की पूजा से यश, मान व सम्मान में बढ़ोतरी होती है. जबकि सायंकाल की आराधना सम्पन्नता प्रदान करती है.पौराणिक मान्यता के अनुसार अस्ताचलगामी सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. जिन्हें अर्घ्य देना तुरंत फलदायी होता है.