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शिव-पार्वती विवाह के साथ हुआ विजयदशमी महोत्सव का श्रीगणेश

यहां के ऐतिहासिक किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर बुधवार की देर शाम विजया दशमी महोत्सव का विधिवत शुभारंभ हो गया.

बक्सर.

यहां के ऐतिहासिक किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर बुधवार की देर शाम विजया दशमी महोत्सव का विधिवत शुभारंभ हो गया. वैदिक मंत्रोच्चार के बीच श्री गणेश पूजन के साथ महोत्सव का उद्घाटन अहिरौली स्थित श्री वरदराज मंदिर के पीठाधीश्वर स्वामी मधुसूदनाचार्य जी ने किया. उद्घाटन समोराह की अध्यक्षता समिति के कार्यकारी अध्यक्ष रामावतार पांडेय ने की, जबकि संचालन की जिम्मेवारी समिति के सचिव वैकुण्ठनाथ शर्मा व कोषाध्यक्ष सुरेश संगम ने संयुक्त रूप से निभाई. कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि के रूप में भाजपा नेता मिथिलेश तिवारी उपस्थित रहें. इस मौके पर जिले के तमाम प्रतिष्ठित समाजसेवी, साहित्यकार, व्यवसायी एवं राजनीतिक हस्तियां मौजूद रहीं. उद्घाटन के पश्चात समिति के सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आजादी पूर्व से चली आ रही इस रामलीला संस्कृति को समिति ने निरंतर भव्यता प्रदान करने का प्रयास किया है और आगे भी जारी रहेगा. इस क्रम में उद्घाटनकर्ता पीठाधीश्वर जी द्वारा स्मारिका का भी विमोचन किया गया. धन्यवाद ज्ञापन सुरेश संगम व मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता द्वारा किया गया.

शिव विवाह प्रसंग के साथ शुरू हुआ रामलीला :

वृंदावन के मशहूर श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला मण्डल के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी ” के निर्देशन में 21 दिवसीय श्रीराम लीला का आगाज हुआ. पहले दिन गणेश पूजन एवं शिव विवाह प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि सती और भोलेनाथ ऋषि अगस्त के यहां श्रीराम कथा सुनते हैं. इसके बाद भ्रम के कारण सती श्रीराम की परीक्षा लेने जाती है. जहां श्रीराम उनको पहचान लेते हैं और बाबा भोलेनाथ का समाचार पूछ देते है. इससे परीक्षा में असफल मांता सती लज्जित होंकर अपनी आंखें बंद कर लेती हैं. जिसके बाद उन्हें श्रीराम, लक्ष्मण व मां सीता का प्रतिबिंब दिखाई देता है. वहां से लौटने के बाद भोलेनाथ जी सती से परीक्षा की बात पूछते हैं, मगर सती उनसे बात छिपा लेती हैं, परन्तु भगवान शिव ध्यान कर सभी बातों को जान जाते हैं. दूसरी तरफ सती के पिता दक्ष यज्ञ का आयोजन करते हैं और भोलेनाथ को निमंत्रण नहीं देते है. यह सुनकर माता सती बिना बुलाए अपने पिता दक्ष के यज्ञ में पहुंचती है और अपने पति भोलेनाथ को वहां नहीं बुलाने की बात पर यज्ञ कुण्ड में कूदकर भस्म हो जाती है. सती का अगला जन्म हिमालय के पुत्री पार्वती के रूप में होता है. नारद जी के वचन के अनुसार शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए पार्वती जी कठोर तप करती हैं. अंत में शिव जी और पार्वती जी का विवाह होता है. मौके पर रोहतास गोयल, कृष्णा वर्मा, शिव जी खेमका, उदय सर्राफ जोखन, केदारनाथ तिवारी, भाजपा जिलाध्यक्ष विजय कुमार सिंह, भाजपा नगर अध्यक्ष अजय वर्मा, निर्मल कुमार गुप्ता, राजेश चौरसिया, रेडक्रॉस के सचिव श्रवण तिवारी, दिनेश जायसवाल, पुरुषोत्तम नारायण मिश्र, साकेत श्रीवास्तव, सुशील मानसिंहका, मदन जी दूबे, बैजनाथ केसरी, अवधेश पाण्डेय, राजकुमार गुप्ता, सरोज उपाध्याय, महेन्द्र चौबे, सुमित मानसिंहका, चिरंजीव लाल चौधरी, आदित्य चौधरी, भरत प्रधान, शशिकांत चौधरी आदि मौजूद थे.

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