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पुस्तकालय की छत से टपक रहा पानी

शिक्षा आज सभी के लोगों के लिए प्रथम प्राथमिकता बन गयी है.

बक्सर. शिक्षा आज सभी के लोगों के लिए प्रथम प्राथमिकता बन गयी है. ऐसे में पुस्तकालय में पाठकों का नहीं पहुंचना पुस्तकालय की लचर व्यवस्था या पाठकों का शिक्षा के प्रति उदासीनता दिखलाता है़. जिले की आबादी 17 लाख के पार है जहां एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करती है जो पढना चाहते है पर आर्थिक अभाव में अपनी पढाई बीच में ही छोड़ने को मजबूर हैं. उनके लिए अनुमंडलीय पुस्तकालय वरदान साबित हो सकता है, मगर पुस्तकालय का नियमित पाठक सदस्य नहीं है़. लिहाजा यह दम तोड़ रहा है. पुस्तकालय तय समयानुसार प्रतिदिन खुलता है़. पुस्तकालय में लगभग 20 से 25 छात्राएं प्रतिदिन पढ़ने जाते हैं लेकिन पुस्तकालय के छत का प्लास्टर कब टूटकर गिर जाएगा. इसका कोई ठिकाना नहीं है. न ही इसको देखने वाला है. बारिश के समय से छत से पानी भी टपकता है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि जिला मुख्यालय में स्थित अनुमंडलीय पुस्तकालय में छात्र छात्राएं अपने जान को जोखिम में डालकर अपने भविष्य को सवांरते हैं. यह अनुमंडलीय पुस्तकालय नगर के रामरेखाघाट पर स्थित है. ज़हां सभी तरह के पाठकों का ध्यान रखते हुए पुस्तकालय में 13 हजार के करीब पुस्तकें पाठकों को पढने क लिए रखा गया है़ ये पुस्तके पाठकों के इंतजार में दीमक के निवाला बन रहे है या आलमीरा मे बंद हो धूंल चाट रहे है़ं. ये पुस्तकें अब पुस्तकालय की शोभा मात्र बने हुए है़ं. आज पुस्तकालय में पाठकों की संख्या दर्जन के आंकड़ा में है.जो पाठक पुस्तकालय में आ रहे है वे केवल अखबार पढकर चले जाते है़ं.

पुस्तकालय के प्रति सरकार उदासीन

पूर्व सांसद नागेंद्र नाथ ओझा ने अपने सांसद निधि की 12 लाख 22 हजार रुपये की राशि से इसका उद्घाटन 14 मार्च 2001 में किया . इस राशि से चार पुस्तक कक्ष, एक कम्प्यूटर कक्ष, एक पुस्तकालयाध्यक्ष कक्ष, एक शौचालय समेत एक बड़ा सा वाचनालय का निर्माण करवाया. इसके पहले यह पुस्तकालय पहले नावागर प्रखंड के वैना गांव में संचालित होता था़

पुस्तकालय के प्रति अधिकारी हैं उदासीन

जिला मुख्यालय में स्थित अनुमंडलीय पुस्तकालय के प्रति जिले के अधिकारी उदासीन बने हुए है़ं. जिले के अधिकारी मुख्यालय स्थित महत्वपूर्ण पुस्तकालय की सुधि लेने एक दिन भी नहीं पहुंचते हैं. जबकि इस पुस्तकालय से गरीब बच्चों का कल्याण हो सकता है और पढाइ में आने वाली खर्च की समस्या से छात्र बच सकतें है़ं

अब पुस्तकालय में नहीं पहुंचते हैं पाठक

2006 में पुस्तकालय मेंं नियमित पाठक सदस्यों की संख्या 100 से ज्यादा था़. अब पाठक सदस्यों की संख्या 20-25 की बच गयी है़. यही सदस्य नियमित पाठक के रूप में प्रतिदिन आकर पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रहे है़ं. 2006 में तत्कालीन एसडीओ पलका साहनी ने पुस्तकालय के महत्व को समझते हुए न केवल पुस्तकालय के प्रति पाठकों का रूझान बढाने में भूमिका निभाई, बल्कि अपना बहुमुल्य समय निकाल स्वयं पुस्तकालय का हाल चाल लेने पहुंच जाती थी़ साथ ही पत्र पत्रिकाएं भी पुस्तकालय में प्रर्याप्त संख्या में आते थे.

100 रुपये के मामूली शुल्क से बन सकते हैं वार्षिक सदस्य

पुस्तकालय में वार्षिक सदस्यता शुल्क 100 रुपये निधारित है़. जिसे जमा कर कोई भी व्यक्ति सदस्यता पा सकता है़ और एक साल तक विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन कर सकते हैं.साथ ही अन्य साहित्यिक पुस्तकों का भी पाठक अध्ययन कर सकतें है़ं.

13 हजार के करीब मौजूद हैं पुस्तकें

अनुमंडलीय पुस्तकालय में बच्चों की पढाई से लेकर बुजुर्गों तक के लिए पुस्तकें उपलब्ध है़. बच्चों की प्रतियोगी परीक्षा के साथ बुजुर्गों के लिए साहित्यिक पुस्तकें का अध्ययन पुस्तकालय के वाचनालय में बैठकर अध्ययन कर अपना समय पुस्तकों के साथ गुजार सकते है़ं. छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षा से संबंधित 1500 पुस्तकें मौजूद हैं, जो बैंक, एसएससी, रेलवे एवं राज्यों के प्रतियोगिता से संबंधित हैं.

पुस्तकालय के कमरे है साहित्यकारोें के नाम पर आवंटित

पुस्तकालय में बने कमरे साहित्यकारों के नाम से जाने जाते है़ं. सभी कमरों के दरवाजों के उपर अंकित साहित्यकारों का नाम भी अब मिट गया है़ कमरों पर नाम अंकित था शिवपूजन सहाय, सच्चिदानंद सिंहा, विस्मिल्ला खां, भिखारी ठाकुर का नाम़.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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