धान का बिचड़ा डालने के लिए रोहिणी व मृगडाह (मृगशिरा) नक्षत्र सबसे मुफीद अवधि माना जाता है. इन्हीं दो नक्षत्रों में किसान बिचड़ा डालते हैं. किसानों की इस जरूरत को देखते हुए सिंचाई विभाग द्वारा 25 मई से सोन प्रणाली की नहरों में पानी छोड़ने का प्रावधान है. हद तो यह है कि रोहिणी नक्षत्र में कौन कहे मृगडाह में भी नहरों में पानी नहीं छोड़ा गया है, जबकि मृगडाह नक्षत्र 22 जून को समाप्त हो जायेगा. नहरों में पानी नहीं मिलने से बिचड़ा आच्छादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है. इसका अंदाजा कृषि विभाग की रिपोर्ट से भी लगाया जा सकता है. अभी तक निर्धारित लक्ष्य का तकरीबन 55 प्रतिशत ही बिचड़ा डालने में सफलता मिली है. सक्षम व संसाधन संपन्न किसान तो निजी नलकूप अथवा पंप ेट से बिचड़ा डाल चुके हैं, परंतु नहरी इलाके में बोरिंग की सुविधा कम होने के कारण पानी के लिए कृषक नहर की ओर टकटकी लगाये हुए हैं. जाहिर है कि माॅनसून के साथ ही नहरों की दगाबाजी खेती कार्य पर भारी पड़ रही है. ऐसे में किसान मूकदर्शक बन अपनी बेबसी पर आंसू बहाने को मजबूर हो गये हैं.
जिले की सभी नहरें बेपानी : विभागीय रिपोर्ट के मुताबिक इंद्रपुरी बराज से सोन नहर में पानी की आपूर्ति शुरू कर दी गयी है. हालांकि बक्सर जिले की सीमा में पड़ने वाली नहर, राजवाहा व वितरणी बेपानी हैं, जिससे उनमें धूल उल उड़ रही है. आलम यह है कि 70 किलोमीटर लंबी बक्सर शाखा कैनाल की रूपांकन क्षमता 1600 के बदले मात्र 266 क्यूसेक पानी छोड़ गया है और मात्र 38 वें किलोमीटर तक पानी पहुंचा है. कमोबेश यही हाल चौसा शाखा कैनाल का भी है. चौसा शाखा कैनाल व उससे निकलने वाली वितरणी व उपवितरणी से राजपुर व चौसा प्रखंड के खेतों की सिंचाई होती है.
पानी मिलने की संभावना पर फिरा पानी : फिलहाल सोन प्रणाली की नहरों से पानी मिलना असंभव लग रहा है. क्योंकि, बक्सर व चौसा शाखा नहर में ही पानी का टोटा है. बक्सर शाखा से जुड़ी सांथ वितरणी, गड़हिया उपवितरणी, चमिला उपवितरणी, अमरपुर उपवितरणी, बसंतपुर उपवितरणी, सिकरौल वितरणी, नेनुआं उपवितरणी, सिकरौल एलपीसी, बसौली वितरणी, सिकरौल आरपीसी, बसुधर वितरणी, भखवां आरपीसी, भखवां एलपीसी, महदह आरपीसी, महदह वितरणी, इटाढ़ी उपवितरणी, मुकुंदपुर उपवितरणी समेत अन्य उपवितरणियों में एक बूंद भी पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है.
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