बिहार में कम हुए निमोनिया से मौत के मामले, अब एक हजार पीड़ित बच्चों में तीन की हो रही मौत
बीते पांच साल की तुलना में पिछले वर्ष आंकड़ों में गिरावट दर्ज की जा रही है. इंडियन एकेडमिक ऑफ पेडियाट्रिक बिहार चैप्टर के सदस्य डॉक्टरों के अनुसार बिहार में निमोनिया से बचाव को लगाये जाने वाले टीकाकरण और हर घर शौचालय की सुविधा होने से बीमारियों की संख्या कम हुई है.
आनंद तिवारी, पटना. पटना सहित पूरे बिहार में निमोनिया हर साल करीब 12 हजार से अधिक मासूम बच्चों की सांसें छीन रहा है. हालांकि बीते पांच साल की तुलना में पिछले वर्ष आंकड़ों में गिरावट दर्ज की जा रही है. इंडियन एकेडमिक ऑफ पेडियाट्रिक बिहार चैप्टर के सदस्य डॉक्टरों के अनुसार बिहार में निमोनिया से बचाव को लगाये जाने वाले टीकाकरण और हर घर शौचालय की सुविधा होने से बीमारियों की संख्या कम हुई है.
पांच साल पहले यह आंकड़ा 16 हजार से 20 हजार के बीच था
आंकड़ों के अनुसार पांच साल पहले यह आंकड़ा 16 हजार से 20 हजार के बीच था. जबकि बीते एक साल में करीब 12 हजार 500 बच्चों की निमोनिया से मौत हुई. जबकि 2022 में 13 हजार, 2021 में 14 हजार 600, 2020 में 10 हजार 840, और 2019 में 13 हजार 150 बच्चों की मौत निमोनिया से हुई. लेकिन अभी भी 1000 जीवित बच्चों में दो से तीन की मौत निमोनिया से हो रही है.
बंगाल व राजस्थान में सबसे अधिक मौत
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय केंद्रीय औसत के आंकड़ों के मुताबिक देश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की साल भर में निमोनिया की वजह से 18.4 लाख मौतें होती हैं जिनमें बिहार की हिस्सेदारी करीब 14 प्रतिशत है. सबसे अधिक बंगाल में करीब 21, राजस्थान में 19.2 प्रतिशत मौत हो रही है. इसके बाद मध्य प्रदेश, ओड़िसा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, असम और फिर बिहार का नंबर आता है. जिसको देखते हुए डॉक्टरों ने बीमारी से बचाव और खासकर कुपोषित बच्चों के परिजनों को अलर्ट रहने की सलाह दी है.
बिहार में हर साल एक लाख 15 हजार बच्चों की मौत
इंडियन एकेडमिक ऑफ पेडियाट्रिक बिहार चैप्टर के अनुसार पूरे बिहार में हर साल करीब एक लाख 15 हजार बच्चों की मौत अलग-अलग बीमारियों से हो रही है. इसमें करीब 20 प्रतिशत से अधिक बच्चों की मौत सिर्फ निमोनिया से होती है. आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में हर साल करीब 35 लाख से अधिक बच्चों का जन्म हो रहा है. इनमें अधिकांश बच्चों की मौत निमोनिया से हो जाती है. चौंकाने वाली बात तो यह है कि काफी बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते हैं. वहीं डॉक्टरों का कहना है कि निमोनिया की वैक्सीन सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क लगायी जा रही है. इससे काफी हद तक मासूमों को बचाने में कामयाबी मिल रही हैं.
कुपोषित बच्चों को अधिक खतरा
इंडियन एकेडमिक ऑफ पेडियाट्रिक बिहार चैप्टर के पूर्व सचिव व आइजीआइसी के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ एनके अग्रवाल ने बताया कि बिहार में विगत कुछ सालों से निमोनिया से होने वाली मौत का ग्राफ कम हुआ है. निमोनिया का नि:शुल्क टीका, हर घर शौचालय, उजवला योजना, मिड डे मिल के दौरा गैस पर खाना बनाने, घर व वातावरण में प्रदूषण कम होने की वजह से आंकड़ों में गिरावट दर्ज की गयी है. लेकिन वर्तमान में भी निमोनिया के शिकार हुए एक हजार बच्चों में तीन की मौत निमोनिया से हो रही है. डॉ अग्रवाल ने बताया कि बच्चों का समय से टीकाकरण करवाकर निमोनिया के खतरों से बचा सकते हैं.
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ठंड में बीमारी का बढ़ जाता है खतरा
पटना एम्स के पूर्व शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ विनय कुमार ने बताया कि ठंड में निमोनिया होने की खतरा अधिक बढ़ जाती है. इसलिए इस मौसम में एक से पांच साल तक के बच्चों को अधिक ध्यान देने की जरूरत है. डॉ विनय ने कहा कि निमोनिया का टीका न्यूमोकॉकॉल कोंजुगेट है. यह टीका डेढ़ माह, ढाई माह, साढ़े तीन माह और 15 माह तक के बच्चों को लगाया जाता है. उन्होंने कहा कि कुपोषण के शिकार बच्चों को निमोनिया का अधिक खतरा रहता है.
बीमारी से बचाव
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– 6 माह तक बच्चों को सिर्फ मां का ही दूध पिलाएं
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– गुनगुने तेल से शिशु को मालिश करें
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– खांसते और छींकते समय मुंह पर हाथ रखें
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– इस्तेमाल टिशू को तुरंत डिस्पोज करें
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– बच्चों को ठंड से बचाएं- नवजात को पूरे कपड़े पहनाएं
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– नवजात के सिर, कान और पैर ढंक कर रखें
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– पर्याप्त आराम व स्वस्थ आहार लें