केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों और उपक्रमों में नौकरी के लिए आयोजित होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों से फर्जीवाड़ा करने वालों का एजेंट संपर्क करता था. फिर उन्हें नौकरी दिलाने की गारंटी देते थे और बदले में 10-20 लाख रुपये लेते थे. कभी-कभी घूस की राशि इंस्टॉलमेंट में लिया जाता था. सीबीआइ सूत्रों का कहना है कि व्यवस्था ऐसी थी कि घूस देने वाले अभ्यर्थी किसी भी स्थिति में रैकेट चलाने वाले लोगों तक नहीं पहुंच पाये. इसके लिए कई स्तरों पर एजेंट रखे गये थे. परीक्षा के बाद अभ्यर्थियों को पहले फर्जी ज्वाइनिंग लेटर और ट्रेनिंग के लिए कॉल लेटर देकर उन्हें फेक ट्रेनिंग सेंटर भेजे जाते थे. दरअसल, 10 नवंबर को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीअीबाइ) ने एक फर्जी जॉब रैकेट का भंडाफोड़ किया था. इस गिरोह के लोग फर्जी को असली साबित करने के लिहाज से नौकरी चाहने वालों को केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के दफ्तरों में बुलाकर ज्वाइनिंग और कॉल लेटर बांटता था.
फर्जी जॉब रैकेट चलाने वालों की व्यवस्था इस तरह की थी कि अभ्यर्थियों को कहीं से भी किसी बात की भनक नहीं लगे कि वे फर्जी सेंटर में ट्रेनिंग नहीं ले रहे हैं. उसके अभ्यर्थियों को देश के कई राज्यों में चल रहे फर्जी ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग के लिए भेजे जाते थे. सीबीआइ को पटना, बक्सर, मुंबई, बंगलूरू और धनबाद ट्रेनिंग सेंटर में छापेमारी के दौरान फेक ज्वाइनिंग और कॉल लेटर मिले. हालांकि पटना और बक्सर में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई. जबकि दूसरे सेंटरों पर जो ट्रेनिंग ले रहे थे, उनमें अधिकतर कर्नाटक और महाराष्ट्र के थे. बंगलूरू में जिन लोगों को सीबीआइ ने गिरफ्तार किया उसमें झारखंड के धनबाद के रहने वाले अमन कुमार उर्फ रुपेश, बिहार के अररिया जिला के रहने वाले विशाल उर्फ अभिषेक सिंह और कर्नाटक के अजय कुमार हैं. सीबीआइ को पटना और बक्सर में फर्जी ज्वाइनिंग और कॉल लेटर मिले थे.
महाराष्ट्र के अजय पांडुरंग पाटिल ने नौकरी के नाम पर पैसा ठगने की शिकायत सीबीआइ की मुंबई इकाई में की और बिरवा पाटिल, रुपेश, अभिषेक, दीपक मंडल और सांध्या के नाम पर रिपोर्ट दर्ज करवाया. दरअसल अजय को नौकरी की फेक ज्वाइनिंग और कॉल लेटर देकर ट्रेनिंग सेंटर भेज दिया गया था और वादा के अनुसार बची हुई राशि देने के लिए दबाव दिया जा रहा था. सीबीआइ ने मामले की सत्यता की जांच करने की जिम्मेदारी अपने अधिकारी अक्षय वशिष्ठ को दी. श्री वशिष्ठ ने जांच के बाद बताया कि अपनी रिपोर्ट में फर्जी जॉब रैकेट की जानकारी अपने आला अधिकारियों को दी. उसके बाद छापेमारी की गयी और फर्जी जॉब रैकेट का भंडाफोड़ हुआ.