बिहार के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न तरीकों से होली मनाई जाती है. होली रंगों का त्योहार माना जाता है, लेकिन कई जगहों पर इसे मनाने का तरीका अलग- अलग है. आपको बता दें कि इन इलाकों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है. बिहार के नालंदा जिले में बुद्ध भगवान के साथ होली मनाने की अनोखी परंपरा है. नालंदा के बिहार शरीफ से 10 किमी दूर स्थित तेतरावां गांव में यह अनूठी परंपरा सालों से मनाई जाती है. बताया जाता है कि यह परंपरा पालकाल से यहां मौजूद है. होली के मौके पर यहां लोग भगवान की प्रतिमा के साथ होली खेलते है. बताया जाता है कि ग्रामीण भगवान बुद्ध की प्रतिमा को बाबा भैरो के नाम से भी पुकारते हैं. यहां होली का समापन बुद्ध की विशाल काले पाषाण की मूर्ति के साथ सामूहिक रूप से रंग-गुलाल खेलकर किया जाता है. यहां तक की इस गांव में कोई भी शुभ कार्य होता है तो ग्रामीण यहां जरूर आते हैं. लोगों का मानना है कि यहां जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह पूरी हो जाती है.
बिहार के कटिहार जिले की अगर बात करें तो यहां होली मनाने की बहुत ही अलग परंपरा है. यहां करीब 118 सालों से मह्लाएं ही होलिका का दहन करती है. दरअसल, जिले के बड़ा बाजार में मारवाड़ी समाज की महिलाएं ही इस परंपरा को निभाती है. यहां तक की नवविवाहिता भी होलिका की परिक्रमा करती है. इस दौरान सभी महिलाएं रंग बिरंगे पोषाक में आती है. सभी इस दौरान बहुत अच्छी लगती है. यह सभी पूरे विधी विधान से होलिका की पूजा करती है. आपको बता दें कि यहां होली के दिन गणगौर की पूजा की जाती हैं. होली के मौके पर शहरी क्षेत्र में राजस्थान के मारवाड़ संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. दूसरी ओर सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए जाते है.
समस्तीपुर जिले के पटोरी अनुमंडल क्षेत्र के पांच पंचायतों वाले विशाल गांव धमौन में कई सालों से छाता होली मनाने की परंपरा है. आपको बता दें कि होली के मौके पर यहां बांस की छतरी तैयार की जाती है. साथ ही इन छातों को कागज के साथ ही अन्य सामानों से बहुत ही खूबसूरत ढ़ग से सजाया जाता है. बता दें कि इन छतरी के साथ फाग गाते निकला जाता है. इसके अलावा छातों के साथ यहां मंदिर में अबीर और गुलाल चढ़ाया जाता है. करीब 70 हजार लोग छाता होली में शामिल होते है. छातों के साथ यहां शोभा यात्रा भी निकाली जाती है.
Published By: Sakshi Shiva