सहरसा जिला प्रशासन के वेबसाइट पर वर्णित कंदाहा के सूर्य मंदिर से एकबारगी तो इस क्षेत्र का ऐतिहासिकता प्रमाणित होती दिखती है. वहीं दूसरी ओर इसकी हो रही उपेक्षा या पर्यटन के दृष्टिकोण से हाशिए पर रख छोड़ने से एक महत्वपूर्ण स्थान की अनदेखी भी लोगों को सोचने पर विवश कर रही है. जिले में पर्यटन के लिए जहां संभावनाओं की तलाश होती है. वहीं सदियों पुराने भारत के सूर्य मंदिर में शामिल राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर का कंदाहा सूर्य मंदिर जिले के विकास के संग विकसित क्यों नहीं हो पाया. मालूम हो कि स्थानीय देवरुपी संत लक्ष्मीनाथ गोसांईं ने इस मंदिर का पुनरुद्धार किया था.
जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर महिषी के पस्तपार पंचायत में स्थित कंदाहा के सूर्य मंदिर का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में आता है. सात घोड़े के रथ पर सवार भगवान भास्कर की ग्रेनाइट स्लैब पर तराशी गयी अद्भुत मूर्ति अपने आप में अद्वितीय है. गर्भगृह के द्वार पर लगी शिलापट्ट इस बात की पुष्टि करती है कि 14वीं सदी में मिथिला पर शासन करने वाले कर्नाटक वंश के राजा नरसिंह देव की अवधि के दौरान इस सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ था. कालांतर में मुगल शासक कालपदह के द्वारा मंदिर को क्षतिग्रस्त किया गया था. वैशाख महीने में जब सूर्य का प्रवेश मेष राशि में होता है, तो सूर्य की पहली किरण इस प्रतिमा पर सीधे पड़ती है. मंदिर में सभी बारह राशियों के साथ सूर्य यंत्र की भी कलाकृति मौजूद है.
स्थानीय पुजारी बाबू लाल कहते हैं कि कृष्ण के बेटे सांब ने सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था. मंदिर में चौदहवीं शताब्दी के स्थापत्य कला का एक बेजोड़ सुंदर सूर्य प्रतिमा उपेक्षाओं का दंश झेल रहा है. सदियों पुराने इस सूर्य मंदिर पर सरकारी कोष से अब तक मात्र तीन लाख रुपये तत्कालीन पर्यटन मंत्री अशोक सिंह के समय में खर्च हुआ बताया जाता है. इतना ही नहीं इस सूर्य मंदिर स्थल पर कोई विभागीय महोत्सव भी आयोजित नहीं होता है. स्थानीय तेज तर्रार युवा नेता राहुल राज और शशि सरोजिनी रंगमंच सहरसा ने स्थानीय स्तर पर चंदा कर यहां सूर्य महोत्सव का आयोजन पिछले दो-तीन सालों से कर रहे हैं.
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स्थानीय लोग बताते हैं कि बिहार सरकार द्वारा मंदिर के नाम पर मात्र साढ़े 15 कट्ठा जमीन अधिसूचित है. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि जमीन अतिक्रमित है. एक तालाब भी बिहार सरकार के नाम से मंदिर के सामने है. मंदिर के विकास और पुनरुद्धार के लिए कई बार स्टीमेट बने, लेकिन धरातल पर यह नहीं उतरा. मंदिर के पुजारी बाबूलाल कहते हैं कि मंदिर के अंदर प्रतिष्ठित महत्वपूर्ण सूर्य भगवान की मूर्ति और शिलापट्ट की रक्षा के लिए चार होमगार्ड के जवान अवश्य तैनात रहते हैं. ताज्जुब की बात यह है कि सरकार की ओर से इस ऐतिहासिक महत्व के स्थल पर जरा भी ध्यान नहीं दिया गया. स्थानीय लोग कहते हैं कि सरकार के इस बेरुखी के कारण आज विश्व पटल पर सहरसा का कंदाहा अंकित होने से वंचित हो गया है.