22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

क्लाइमेंट चेंज की चुनौती : बिहार में पहचाने जा रहे जीवन के लिहाज से असुरक्षित जिले

बिहार सरकार का मानना है कि चालू दशक में असुरक्षित या जिला विशेष की अति संवेदनीशलता का सीधा संबंध क्लाइमेट चेंज से है,लिहाजा इस सर्वे की जिम्मेदारी वैज्ञानिक प्रतिभाओं को सौंपी गयी है.

राजदेव पांडेय, पटना. बिहार में जीवन के लिहाज से असुरक्षित या असंवेदनशील (वल्नरेबल) जिलों की पहचान की जा रही है. ऐसे जिलों की पहचान करके उनकी अति संवेदनशीलता को खत्म करने के लिए राज्य सरकार कार्ययोजना बनायेगी. बिहार सरकार का मानना है कि चालू दशक में असुरक्षित या जिला विशेष की अति संवेदनीशलता का सीधा संबंध क्लाइमेट चेंज से है,लिहाजा इस सर्वे की जिम्मेदारी वैज्ञानिक प्रतिभाओं को सौंपी गयी है. बाढ़ की परिस्थितियां कमजोर होते ही पूरे प्रदेश में यह सर्वेक्षण शुरू हो जायेगा. राज्य सरकार की तरफ से ऐसा पहली बार किया जा रहा है.

आधिकारिक जानकारी के मुताबिक बाढ़, बदलता मौसम और सुखाड़ की एक साथ बढ़ रही फ्रीक्वेंसी ने बिहार के आम लोगों के जीवन के विभिन्न पक्षों को सीधे प्रभावित किया है. इससे उनकी आर्थिक असुरक्षा और जीवन के लिए कठिन परिस्थितियां बन कर खड़ी हो गयी हैं. हाल ही में विज्ञान एवं साइंस टेक्नोलॉजी विभाग ने बिहार में विशेष वल्नरेबल 14 जिले अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, जमुई, शिवहर, मधेपुरा, पूर्वी चंपारण, लखीसराय, सीवान, सीतामढ़ी, खगड़िया, गोपालगंज, मधुबनी और बक्सर चिह्नित किये थे.

विभिन्न पैरामीटर पर माना था कि यहां जीवन से जुड़ी तमाम कठिनाइयां हैं. इस रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार ने यह कदम बढ़ाया है. स्वास्थ्य की चुनौतियां, मौसम में बदलाव, खेती एवं बागवानी पर असर, तापमान, सूखा, बाढ़ और आपदा की बदली परिस्थतियां समेत चौदह बिंदुओं पर सर्वे किया जाना है. बिहार सरकार ने इस सर्वेक्षण में विशेषज्ञों के साथ एक दर्जन विभागों को भी लगाया है.

दरअसल बिहार सरकार चाहती है कि क्लाइमेट चेंज की दुश्वारियों को पहचान कर उनको कम करने के लिए उपाय किये जाएं. बिहार संभवत: भारत के सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्यों में से एक है, जिसका कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 73.06 फीसदी और कुल जनसंख्या का 76 फीसदी हिस्सा लगातार बाढ़ के खतरे से जूझ रहा है. बिहार में 1978, 1987, 1998, 2004 और 2007 के वर्षों में बिहार में भयंकर भारी बाढ़ देखी गयी. यूएनओ ने 2007 की बाढ़ को सबसे भयानक बाढ़ माना था.

इन वर्षों के दौरान बाढ़ से प्रभावित कुल क्षेत्रफल में भी वृद्धि हुई है . बाढ़ और सूखे की बारंबारता और उसके विस्तार को कुछ इस तरह समझा जा सकता है. सूखे की लगातार बढ़ रही आवृत्ति अंतिम 15 में से नौ वर्षों में राज्य के लगभग 70 फीसदी जिलों में दक्षिण-पश्चिम माॅनसून की विफलता के कारण सूखे जैसी स्थिति देखी गयी. साथ ही बारंबारता बढ़ने की प्रवृत्ति दिखा रही है.1950 से 2000 तक वर्ष 1951, 1966, 1992 में प्रदेश में जबर्दस्त सूखा पड़ा था. तब प्रदेश के 30 जिलों में से 28 जिलों में सूखा पड़ा था. हालांकि, उसके बाद औसतन एक जिले में अवर्षा या सूखे की स्थिति बनती थी.

इसके बाद सूखे की स्थितियां लगातार बनती गयीं. 2004 में अकाल से प्रभावित जिलों की संख्या 19 थी. वर्ष 2009 में बढ़ कर 26 हो गयी. 2013 में 38 जिलों में से 33 को सूखा प्रभावित घोषित किया गया, इसके बाद 2015 में 16 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया. इसके बाद दक्षिण बिहार में सूखे की स्थिति हर दूसरे साल बन रही है. बिहार के 10 जिले जो सबसे ज्यादा सूखे से प्रभावित हैं, वे कैमूर, बक्सर, गया, नवादा, रोहतास, भोजपुर, जहानाबाद, सीवान, गोपालगंज, पटना और औरंगाबाद हैं.

क्लाइमेट चेंज बिहार के चीफ कंजरवेटर एके द्ववेदी ने कहा कि वल्नरेबल या कठिन परिस्थितियों वाले जिलों की की पहचान के लिए सर्वेक्षण जल्दी ही शुरू होगा. विशेष पैरामीटर्स पर यह सर्वे होगा. दरअसल क्लाइमेट चेंज के चलते बिहार को विभिन्न क्षेत्रों में सर्वाधिक प्रभावित हो रहा है. इस सर्वेक्षण के बाद उन कठिनाइयों को दूर करने के लिए सरकार व्यापक कार्ययोजना बनायेगी. इस सर्वेक्षण में विशेषज्ञों के अलावा विभिन्न विभागों के एक्सपर्ट भी जोड़े गये हैं.

Posted by Ashish Jha

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें