लोस चुनाव : उतार-चढ़ाव के साथ टूटे कई मिथक
मोतिहारीः 16 वीं लोक सभा चुनाव कई मामलों मे ऐतिहासिक रहा. चुनावी सफर भी काफी उतार-चढ़ाव के साथ परिणति तक पहुंचा. पूर्वी चंपारण लोक सभा निर्वाचन के लिए 17 अप्रैल को अधिसूचना जारी की गयी, लेकिन चुनावी तैयारी तो महीनों पहले से ही शुरू था. इसकी शुरूआत तो आठ महीना पहले ही हो गयी थी, […]
मोतिहारीः 16 वीं लोक सभा चुनाव कई मामलों मे ऐतिहासिक रहा. चुनावी सफर भी काफी उतार-चढ़ाव के साथ परिणति तक पहुंचा. पूर्वी चंपारण लोक सभा निर्वाचन के लिए 17 अप्रैल को अधिसूचना जारी की गयी, लेकिन चुनावी तैयारी तो महीनों पहले से ही शुरू था. इसकी शुरूआत तो आठ महीना पहले ही हो गयी थी, जब भाजपा और जदयू के बीच गंठबंधन टूटा था. भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी के नाम आने के बाद से दोनों दलों के बीच अंतर्कलह सामने आ गया था. सारे राजनीतिक प्रयासों के बाद ही गंठबंधन टूट गया. जदयू ने सेक्युलरिज्म को आधार बनाया तो भाजपा मजबूत नेतृत्व की बात पर अड़ी रही. जिले में भाजपा और जदयू के कार्यकर्ता जो कल तक गलबहियां लगाये घूमते थे, एक दूसरे पर निशाना साधने लगे. जदयू को सूबे में किये गये विकास कार्य तो भाजपा को नमो के नेतृत्व का भरोसा था.
अधिसूचना के बाद सभी दल इसी इंतजार में रहे कि पूर्वी चंपारण से कौन पार्टी किसको प्रत्याशी बनाता हैं. प्रत्याशी को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म रहा. नीतीश कुमार के संग्रामपुर सभा में भाजपा के पुराने नेता व चार बार विधायक रह चुके चिरैया विधायक अवनीश कुमार सिंह ने भाजपा को छोड़ कर जदयू का दामन थाम लिया और मंच से ही नीतीश कुमार ने उनको जदयू प्रत्याशी घोषित कर दिया. लेकिन राजद में प्रत्याशी का विवाद जारी रहा. कई लोगों का नाम आया, लेकिन अंत में विनोद कुमार श्रीवास्तव के नाम की घोषणा से राजद में अंतर्कलह शुरू हो गया.
प्रत्याशी बनने की चाहत रखने वाले कई नेताओं ने मेन स्ट्रीम से अपने को अलग कर लिया. चुनावी तैयारियों में जुटी पार्टियां नामांकन में शक्ति प्रदर्शन करती रही. वहीं इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर देश-प्रदेश के नेता अपने प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने के लिए जन सभाएं करते रहे. शुरूआती दौर में जदयू की स्थिति मजबूत दिख रही थी. अल्पसंख्यकों के समर्थन का आकलन कर अन्य प्रत्याशियों से मजबूत माना जा रहा था.
इसी दौरान राजद के माय समीकरण का मामला उठा. आकड़ों से नेताओं ने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि अगर 11 प्रतिशत यादव एवं 14 प्रतिशत अल्पसंख्यक वोट एक साथ हो जाये तो जीत सुनिश्चित हैं. हालांकि इसका प्रमाण भी चुनाव परिणाम में नजर आया. राजद 208289 मत लेकर दूसरे स्थान पर रहा. इसी बीच एक बार जातीय समीकरण एवं जातीय गंठबंधन का प्रयास जोरों पर चला. वहीं स्थिति का भांपते हुए भाजपा कार्यकर्ताओं ने यह संदेश दिया कि यह चुनाव दिल्ली की गद्दी का है. इसका भी व्यापक असर मतदाताओं पर पड़ा. एक मौका तो ऐसा भी आया, जब भाजपा को स्थानीय राजनीतिक समीक्षकों द्वारा कमजोर स्थिति में बतायी जा रही थी. लेकिन दो चरणों के चुनाव के बाद भाजपा के पक्ष में जनाधार जुटता चला गया.
नमो लहर धीरे-धीरे चंपारण में भी आने लगा. वही 9 मई को स्थानीय गांधी मैदान में मोदी के जनसभा में उमड़ी भीड़ ने स्थिति स्पष्ट कर दिया. बाकी बची-कुची कसर को मोदी के भाषण ने पूरा कर दिया. यहीं कारण हैं कि 2009 के चुनाव में जहां राधामोहन सिंह 201114 मत लेकर विजयी हुए थे, वहीं इस चुनाव में वे 192163 वोट की बढ़त से
चुनाव जीते.