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..जब सुबह होते ही देखी आजादी की तस्वीर

82 वर्षीया रामप्यारी देवी ने बांटी थी खीर सुगौली :15 अगस्त 1947 का दिन, सुबह से ही घर पर पर्व जैसा माहौल था. मेरी मां ने सुबह पकवान बनायी थी. पिताजी गांव के स्कूल में मास्टर साहब के साथ तैयारियों में लगे हुए थे. मैं नौ साल की थी. स्कूल में मास्टर साहब ने कार्यक्रम […]

82 वर्षीया रामप्यारी देवी ने बांटी थी खीर

सुगौली :15 अगस्त 1947 का दिन, सुबह से ही घर पर पर्व जैसा माहौल था. मेरी मां ने सुबह पकवान बनायी थी. पिताजी गांव के स्कूल में मास्टर साहब के साथ तैयारियों में लगे हुए थे. मैं नौ साल की थी.
स्कूल में मास्टर साहब ने कार्यक्रम आयोजित किया था. घरों से स्कूल तक कागज के झंडे लगाये गये थे. हाथ में तिरंगा लेकर हम बच्चों की प्रभातफेरी निकली थी, जिसमें बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हुए थे. आगे-आगे बच्चे थे, पीछे-पीछे बड़े लोग. हर किसी के चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी.
भारत माता की जय, जय मां भारत और वंदेमातरम के नारों से पूरा गांव गूंज रहा था. प्रभातफेरी एक गांव से दूसरे गांव, उसके बाद अगले गांव, इसी तरह एक-एक कदम आगे बढ़ाते हुए यह प्रभातफेरी आगे बढ़ रही थी. गांवों में पहुंचने पर गांव के लोग प्रभातफेरी का स्वागत फूल मालाओं से कर रहे थे. आज भी वह दिन भुलाए नहीं भूलता है. उस दिन घर में खीर बनी थी, जिसे पूरे गांव में बांटा गया था.
ये आंखों देखी 1938 में जन्मी प्रखंड के रघुनाथपुर बाजार निवासी स्वर्गीय देवनारायण प्रसाद की 82 वर्षीय पत्नी रामप्यारी देवी ने कही. उन्होंने बताया कि 15 अगस्त 1947 की आधी रात को जब दुनिया के कई हिस्सों में लोग नींद में डूबे हुए थे, उस समय भारत में जश्न का माहौल था. लोगों की आंखों में न नींद थी और न कोई आलस्य.
देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिलने की खुशी ऐसी थी कि सबकी आंखों में सिर्फ आनेवाले भारत के सपने तैर रहे थे. ऐसे माहौल में देश के पहले प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी का पहला भाषण दिया था. इस भाषण को ‘ए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ के नाम से जाना जाता है.
आठवीं पास रामप्यारी बताती है कि पंडित नेहरू ने भाषण में कहा कि हमने नियति को मिलने का एक वचन दिया था और अब समय आ गया है कि हम अपने वचन को निभाएं, पूरी तरह न सही, लेकिन बहुत हद तक. आज रात बारह बजे, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नई सुबह के साथ उठेगा.
एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत ही कम आता है, जब हम पुराने को छोड़ नए की तरफ जाते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब वर्षों से शोषित एक देश की आत्मा, अपनी बात कह सकती है. यह एक संयोग है कि इस पवित्र मौके पर हम समर्पण के साथ खुद को भारत और उसकी जनता की सेवा और उससे भी बढ़कर सारी मानवता की सेवा करने के लिए प्रतिज्ञा ले रहे हैं. कास ये तारा कभी अस्त न हो और ये आशा कभी धूमिल न हो. हम सदा इस स्वतंत्रता में आनंदित रहे.

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