तिल-तिल कर जीने को मजबूर यीशू, गुरु और देव

मोतिहारीः मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी (लाइलाज बीमारी) इससे लाखों में एक व्यक्ति पीड़ित होता है, लेकिन मोतिहारी के राजेंद्र प्रसाद ऐसे हैं, जिनके चार में से तीन बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हैं. बनियापट्टी मोहल्ला के रहनेवाले राजेंद्र के बेटे यीशू, गुरु व देव तिल-तिल कर जीने को मजबूर हैं. उठ-बैठ नहीं पाते. माता-पिता जितना संभव हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 13, 2013 4:11 AM

मोतिहारीः मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी (लाइलाज बीमारी) इससे लाखों में एक व्यक्ति पीड़ित होता है, लेकिन मोतिहारी के राजेंद्र प्रसाद ऐसे हैं, जिनके चार में से तीन बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हैं. बनियापट्टी मोहल्ला के रहनेवाले राजेंद्र के बेटे यीशू, गुरु व देव तिल-तिल कर जीने को मजबूर हैं. उठ-बैठ नहीं पाते. माता-पिता जितना संभव हो रहा इलाज करा रहे हैं. शहर से लेकर दिल्ली व राजस्थान तक का चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा. अब दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज चल रहा है, लेकिन फायदा नहीं हो रहा है.

छिन गयी खुशी : राजेंद्र प्रसाद व उनकी पत्नी सुनीता देवी की जिंदगी का अब एक ही मकसद रह गया है. कैसे अपने जिगर के टुकड़ों की बेहतर से बेहतर देख भाल करें. 1996 में दोनों की शादी हुई. तब परिवार बड़ा सुखी व संपन्न था. बनियापट्टी में पुस्तैनी मकान व वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी की मशहूर दुकान थी. अरमान का जन्म हुआ. पांच वर्ष बाद यीशु जन्मा. दो वर्ष तक सब ठीक -ठाक रहा. तीसरे वर्ष में पहुंचते ही दौड़ने वाला यीशु लहराकर चलने लगा, चलते हुए डगमगाकर गिरने लगता था. श्री प्रसाद ने स्थानीय चिकित्सकों से इलाज कराया. डॉक्टरों की दवा काम नहीं कर रही थी. फिर पटना, बेतिया, बनारस से लेकर दिल्ली तक दौड़ता रहा.

बीमारी का पता चला : 2006 में दिल्ली के एम्स में इलाज कराया. वहां भी बीमारी पकड़ में नहीं आयी. किसी ने राजस्थान के उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान में जाने की राय दी. यह महज संयोग ही था कि उस समय संस्थान में आस्ट्रेलिया के एक डॉक्टर आये थे. उन्होंने बच्चे को देखा. बीमारी की पहचान की. हालांकि वहां की दवा भी कारगर नहीं हुई. इसी बीच दोनों जुड़वा बच्चे भी चलते-चलते लड़खड़ाना शुरू कर दिये. डॉक्टर ने उन्हे भी मस्क्यूलर डिस्ट्राफी से पीड़ित बताया. राजेंद्र दंपत्ति पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. कमजोर होते राजेंद्र प्रसाद के कंधों पर बच्चों का बोझ बढ़ता गया. आज खुद चलती फिरती लाश बनकर रह गये हैं. पत्नी सुनीता देवी की हंसी न जाने कहा खो गयी है.

यीशु में है विलक्षण प्रतिभा : शरीर के सारे अंग बेकार हो गये. केवल देखने, सुनने और समझने पाता है यीशू. उसमें विलक्षण प्रतिभा है. दोनों हाथ पकड़कर उसके सीने पर रख दिया जाता है. गुथा हुआ आटा दे दिया जाता है. यीशु सामने बैठे व्यक्ति या तसवीर बना देता है.

बिक गया घर व दुकान : बीमारी से बच्चों को बचाने के लिए राजेंद्र प्रसाद ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. बड़े-बड़े अस्पतालों व चिकित्सकों की महंगी दवाइयों को खरीदने के लिए उसने बनियापट्टी स्थित अपने पुस्तैनी मकान को बेच दिया. अब वह गांधी नगर रमना में छोटे से मकान में किराये पर रहता है. इतना ही नहीं इलाज के पैसे के लिए राजेंद्र ने अपनी दुकान भी बेच डाली. पेशे से राजेंद्र फोटोग्राफर है.

कहां-कहां कराया इलाज : शहर व राजधानी के दो दर्जन से अधिक चिकित्सकों से बच्चों का इलाज करा चुका है राजेंद्र. अंग्रेजी दवा, होमियोपैथ, आयुर्वेद, यूनानी के साथ-साथ झाड़-फूंक तक कराने के बाद भी इलाज का सिलसिला निरंतर जारी है. दिल्ली के एम्स उदयपुर के नारायण सेवा संस्थान, हरिद्वार के दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट में वह आचार्य बाला कृष्ण से भी इलाज कराकर हार चुके हैं. यूपी के जाैनपुर स्थित होमियोपैथ हॉस्पिटल, बनारस के बीएचयू, सारनाथ के नाड़ी विशेषज्ञ दिनेश कुमार शर्मा, गाजियाबाद के फि दाई सिफा खाना के डॉक्टर एचएम यमीन से इलाज करा चुका है. वर्तमान में राममनोहर लोहिया हॉस्पिटल दिल्ली का इलाज चल रहा है. सब बेअसर है.

क्या कहते हैं माता-पिता : राजेंद्र के अनुसार शुरुआती दौर में तो आशा थी कि इलाज के बाद बच्चे ठीक हो जायेंगे, जब लगा कि लाइलाज बीमारी ने बच्चों को जकड़ लिया है, तो सब्र टूट गया. रोज अपने जिगर के टुकड़ों को मौत के करीब जाता देखता हूं. अब तो ऊपर वाला भी नहीं सुनता. प्रार्थना करता हूं कि ..कह कर बिलख पड़ता है राजेंद्र प्रसाद.

नहीं मिली कहीं से सहायता : बीमारी के कारण दो जून की रोटी भी अब मुहाल हो रही है. कई संस्थानों में इलाज कराने गये राजेंद्र को कहीं से कोई सहायता आज तक नहीं मिली है. सामाजिक संस्थाओं से भी आज तक कोई सहायता नहीं मिली. बावजूद राजेंद्र हिम्मत नहीं हारा है. आज भी वह लोगों से अच्छे अस्पताल, डॉक्टर, वैद्य की जानकारी लेता फिरता है. भावनात्मक शारीरिक व आर्थिक रूप से टूट चुका यह परिवार दरवाजे पर हर दस्तक से यहीं समझता है कि शायद कोई उसकी सहायता करने तो नहीं आया.

क्या है मस्क्युलर डिस्ट्राफी

मस्क्यूलर डिस्ट्राफी जीन में होने वाली गड़बड़ी से होती है. यह बीमारी लाइलाज है. मांसपेशियों को कमजोर कर देती है. शुरू में पैर की एड़ी व घुटनों के नीचे के हिस्से पर असर होता है. पिंडली की मांसपेशी सख्त हो जाती है. धीरे-धीरे रीढ़ की हड्डी कमजोर होने लगती है. इसके शिकार बच्चे उठने, बैठने, चलने-फिरने में नाकाम हो जाते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार यह बीमारी बच्चों को तीन साल की उम्र के बाद होती है. बताते हैं कि पीड़ित की उम्र 12 वर्ष तक में सिमट जाती है.

तीन बेटे पीड़ित

राजेंद्र प्रसाद के चार बेटे हैं. बड़ा 15 साल का अरमान स्वस्थ्य है. दूसरा यीशू नौ वर्ष का है. वह इस बीमारी से ग्रस्त है. हाथ-पैर सूख गये हैं. बैठने में असमर्थ हैं. रीढ़ की हड्डी काम नहीं करती. अब वह रेंगने लायक भी नहीं रह गया है. दिमाग ठीक है. बोलता है. हंसता है, लेकिन मौत का खौफ उसके चेहरे पर साफ नजर आता है. 2006 से बीमारी से पीड़ित है. राजेंद्र प्रसाद का तीसरे व चौथे पुत्र गुरु और देव जुड़वा हैं. दोनों को भी इस बीमारी में अपनी जकड़ में ले लिया है. दोनो न खड़े हो पाते हैं, न ही बैठ पाते हैं. बड़े भाई यीशु की स्थिति देख दोनों अपने भविष्य की कल्पना से भी सिहर उठते हैं.

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