-अमरेश वर्मा-
मोतिहारीः वह गुजरा हुआ कल था, जब बंदूक का ट्रिगर दबाने के लिए हाथ मचलता था. आज समय बदल गया है. कुछ बेहतर करने का जज्बा है. अब समझ में आ गया है कि अपनी तकदीर बंदूक से नहीं, बल्कि कलम से बदलती है.
जी, हां. हम बात कर रहे हैं सेंट्रल जेल मोतिहारी के बंद उन बंदियों की, जो जुर्म की दुनिया से खुद को अलग करना चाहते हैं. कमल को साधना चाहते हैं. जब कारा में बंद हुए थे तो मैट्रिक पास था, तो कोई नन मैट्रिक था. कुछ तो अपना नाम तक नहीं लिख पाता था. लेकिन अब वह बात नहीं रही. अधिकांश बंदी शिक्षित होना चाहते हैं. किसी का समय जेल की लाइब्रेरी में बीत रहा है, तो कोई गीता, रामायण व महापुरुषों की किताब पढ़ने में मशगूल दिखता है. 14 बंदियों का एक समूह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपेन स्कूल से इंटर कर रहा है. वे सभी परीक्षा की तैयारी में जुटे हैं. जेल प्रशासन पढ़ने वाले बंदियों का पूरी मदद कर रह है. पाठय़ पुस्तकों, कलम व कॉपी की व्यवस्था की गयी है. यहां का माहौल देख जेल को जेल नहीं, सुधार गृह कहना ज्यादा समीचीन होगा.
ठप्पा लगाने वाले अब लिखने लगे नाम
283 निरक्षर बंदियों को प्रेरणा कार्यक्रम के तहत साक्षर बनाया गया. अब ये लोग ठप्पा नहीं लगाते हैं. हस्ताक्षर करते हैं. इनमें 250 पुरुष व 32 महिला बंदी शामिल हैं. इन्हें अक्षर ज्ञान देनेवाले गुरु कोई और नहीं, बल्कि जेल में बंद पढ़े-लिखे बंदी ही हैं.