शिक्षा की अलख से मिट गयी शराब की लत

हाल कोटवा के मच्छरगांवा मुसहर बस्ती का पहले शराब की नौ दुकानें चलती थीं इस बस्ती में अब बच्चों के पढ़ने के समय अभिभावक भी रहते हैं पास में बस्ती में शिक्षा से आ रही खुशहाली मोतिहारी : पहले सुबह से शाम तक मुशहर टोली में शराब (स्पिरिट, पाऊच) की दुकान गुलजार रहती थी. वहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 15, 2016 6:05 AM

हाल कोटवा के मच्छरगांवा मुसहर बस्ती का

पहले शराब की नौ दुकानें चलती थीं इस बस्ती में
अब बच्चों के पढ़ने के समय अभिभावक भी रहते हैं पास में
बस्ती में शिक्षा से आ रही खुशहाली
मोतिहारी : पहले सुबह से शाम तक मुशहर टोली में शराब (स्पिरिट, पाऊच) की दुकान गुलजार रहती थी. वहीं अब बच्चे खेलने के क्रम में भी पहाड़ा और पुस्तक में लिखी कविताएं ही पढ़ते रहते हैं. करीब सौ बच्चों में शिक्षा के प्रति झुकाव देख अभिभावकों में भी जागृति आयी, जो अब शराब की तलब (भूख) को भूल गये हैं.
कोटवा प्रखंड की मच्छरगांवा पंचायत अंतर्गत मुशहर बस्ती में पहले जहां वैध व अवैध ढंग से नौ स्थानों पर शराब की बिक्री होती थी, वहां अब एक भी नहीं है. बच्चों का नाम किसी न किसी स्कूल में दर्ज जरूर था लेकिन जागृति के अभाव में वे स्कूल नहीं जाते थे. लेकिन शिक्षा के प्रति जागरूकता ने यहां की तसवीर ही बदल दी है. पिछले एक वर्ष से इस मुशहर बस्ती में शिक्षा के साथ सफाई भी नजर आती है. इसके लिए दलित(मुशहर) बस्ती के लोग केबीसी विजेता सुशील कुमार को धन्यवाद देते हुए कहते हैं कि वे इस बस्ती के लिए भगवान से कम नहीं हैं. वहीं स्नातक की पढ़ाई करते हुए रवि प्रकाश भी बच्चों को शाम में आकर नियमित रूप से पढ़ाते हैं. वहीं शिक्षक शिवनंदन राय स्कूल में छुट्टी के बाद मुशहर बस्ती पहुंच जाते हैं. गांव के ही हीरानंद मांझी, रविंद्र मंडल कहते हैं कि पहले यहां लोग शराब ज्यादा पीते थे जो अब बंद हो गया है. बच्चे पढ़ते हैं, आस-पास अभिभावक बैठक सुनते हैं कि मेरा बच्चा कैसे पढ़ रहा है. गांधी-बचपन संवारों केंद्र के पास प्रतिदिन घास-फूस जमा कर अलाव की व्यवस्था की जाती है, जहां महिला व पुरुष बैठकर पाठशाला की गतिविधियों पर नजर रखते हैं.
अपने घर पर लड़की सब पढ़त बा
सुदामा देवी : एक साल से बउआ लोग पढ़े लागल है तो मर्द (पुरुष) लोग के शराब के आदत छूट गइल. पहिले कमा के लोग पी जात रहे.
लक्ष्मण मांझी : बहुत सुधार भइल है. सरकारी स्कूल में मास्टर साहेब लोग कब आइल, आ गइल, पता न चलत रहे. अब अपना घर पर लड़की सब झुंड (समूह) में पढ़त बा.
हीरानंद मांझी : पहिले हमनी के बस्ती में नौ ठो शराब के दुकान रहे. अब एको नइखे. ये पढ़ाई से एतना त सुधार भइल ह.
तेतरी देवी : एक वर्ष से हमनी के घर में सब्जी बनत बा, काहे कि शराब बंद हो गइल. बच्चा सब पढ़े लागल. मोतिहारी से आके बड़का आदमी (सुशील) लोग पढ़ावेला, उत्साहित करत रहे ला न.

Next Article

Exit mobile version