बागमती की पुरानी धारा से अब किसानों के खेतों में उगेगा ‘सोना’, बाढ़ से भी मिलेगी राहत, जानें कैसे

कभी नक्सलियों के लिए सुरक्षित मार्ग बनी बागमती की पुरानी धारा से अब किसान के खेतों में अच्छी फसल होगी. पुरानी धारा खुदाई के साथ सतह पर पानी आ गया है, जिससे किसान सिंचाई कर रहे हैं.

By Anand Shekhar | February 25, 2024 2:25 PM

सच्चिदानंद सत्यार्थी, मोतिहारी. कभी नक्सलियों के लिए सुरक्षित मार्ग बनी बागमती नदी की पुरानी धारा अब खुदाई के साथ किसानों के लिए सोना उगलने लगी है. खुदाई कार्य पूरा हुआ, तो पूर्वी चंपारण, शिवहर व मुजफ्फरपुर के मीनापुर, शिवाईपट्टी तक किसानों के हरित क्रांति का सपना पूरा हो सकेगा. नेपाल से निकलनेवाली बागमती नदी के देवापुर बेलवा के बीच रेगुलेटर निर्माण के साथ पुरानी धारा की उड़ाही कार्य से करीब दो हजार हेक्टेयर खेतों को पानी पहुंचेगा, तो बाढ़ के समय नदी में ज्यादा पानी होने पर हेड रेगुलेटर से पांच हजार क्यूसेक तक पानी पुरानी धारा में डिस्चार्ज कर बाढ़ पर नियंत्रण भी किया जा सकेगा. डिस्चार्ज पानी सीधे मीनापुर खरार के पास बूढ़ी गंडक में गिरेगा.

किसानों ने शुरू की खेतों की सिंचाई

विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, पताही के देवापुर बेलवा से शिवहर के ललुआ, सुगिया होते मुजफ्फरपुर के मीनापुर सिवाईपट्टी खरार तक खुदाई चल रही है, खुदाई के साथ ग्राउंड वाटर सतह पर आ गया है, जिससे किसान पंपसेट लगाकर खेतों की सिंचाई भी शुरू कर दिये हैं. खुदाई पूरा होने पर नदी के दोनों तटीय बालू के रेत में फसल लहलहायेगी, जहां किसानों के हरित क्रांति का सपना पूरा होगा.

70 किलोमीटर की दूरी में होगी पुरानी धारा की खुदाई

पताही के देवापुर से शिवहर के ललुआ, मीनापुर तक 70 किमी की दूरी में खुदाई करनी है, जिस पर 114 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है. विभाग के अभियंता ने बताया कि 10 से 12 फुट गड्ढा और 30 मीटर चौड़ाई में पुरानी धार की खुदाई करीब 10 से 15 किमी की दूरी में खुदाई हाे चुकी है. खुदाई पूर्ण होने के साथ लोगों को एक ओर बाढ़ से राहत मिलेगी, तो दूसरी ओर खेती करने में सहूलियत भी होगी.

बागमती की पुरानी धार नक्सलियों का था सेफ जोन

एक दशक पूर्व सिवाईपट्टी, मुजफ्फरपुर, मीनापुर से शिवहर होते बेलवा, बैरगनिया नेपाल तक नक्सलियों का सेफ जोन पुरानी धार को माना जाता था, जो किसी घटना को अंजाम देने के बाद पुरानी धारा के रास्ते नेपाल चले जाते थे, या नदी की धारा में झाड़-झंखाड़ के बीच छुप जाते थे.

क्या कहते हैं अधिकारी

राकेश रंजन, कार्यपालक अभियंता, बागमती परियोजना

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