वाल्मीकिनगर : बाघ के शिकार पर हाथ डालना तेंदुए को महंगा पड़ गया. रात भर चले संघर्ष में तेंदुए की मौत हो गयी. वहीं, एक बार फिर से सिद्ध हो गया कि बाघ कभी जूठा मांस नहीं खाता. रॉयल टाइगर ने वाल्मीकि टाइगर रिजर्व प्रमंडल-2 के जटाशंकर वन परिसर में वन संख्या 31 एवं 37 के बीच तीन दिन पूर्व एक चीतल हिरण का शिकार किया था. बाघ अपने स्वभाव के अनुसार अपने शिकार को दो-तीन दिन बाद ही खाता है.
मंगलवार की रात जब रॉयल टाइगर अपने शिकार के पास पहुंचा, तो देखा कि एक तेंदुआ उसके शिकार को खा रहा है. यह देख रॉयल टाइगर ने तेंदुआ पर हमला कर दिया. फिर रात भर दोनों के बीच खूनी संघर्ष चलता रहा. कभी बाघ भारी पड़ता, तो कभी तेंदुआ. आसपास की सारी जमीन लहूलुहान हो गयी. घंटों चले खूनी संघर्ष में आखिरकार जीत बाघ की हुई. बाघ के पंजे के निशान जहां तेंदुए की छाती, पीठ एवं पिछले हिस्से के साथ उसके चेहरे पर भी है, वहीं तेंदुआ के पंजे भी खून से सने हैं.
घटना स्थल पर देखने से लगता है कि तेंदुआ ने भी बाघ को जबरदस्त टक्कर दी है. तेंदुए के शव के पास ही चीतल हिरण का शव भी पड़ा हुआ है. उसका कुछ हिस्सा गायब है. सहायक वन संरक्षक रमेंद्र कुमार सिन्हा ने बताया कि नियमित गश्ती पर निकले वनकर्मियों ने बुधवार को तेंदुए के शव को देखा. इसकी सूचना वनपाल बीके पाठक तथा मुझे दी. उन्होंने बताया कि तेंदुआ के शव का बेसरा फॉरेंसिक जांच के लिए देहरादून भेजा जा रहा है. तेंदुआ के शरीर पर बाघ के पंजों के निशान पाये गये हैं, जो साबित करता है कि इसका बाघ के साथ संघर्ष हुआ था.
सहायक वन संरक्षक ने बताया कि बाघ अपना शिकार सड़ जाने के बाद ही खाता है. चितल हिरण को लेकर दोनों के बीच संघर्ष हुआ है. इसमें उसकी मौत हो गयी है. पोस्टमार्टम के बाद शव को वन क्षेत्र में ही नष्ट कर दिया जायेगा. घटनास्थल पर पहुंचने वालों में वनरक्षी अभिषेक मिश्रा, टाइगर टेकर अमित कुमार रजक, रामेश्वर काजी, मुंद्रिका यादव, कृष्ण मोहन कुमार, अखिलेश यादव, महेंद्र साह एवं सैफ के जवान प्रमुख हैं.