1934 में फटी थी धरती फूट पड़ी थी पानी की धारा

वर्ष 1934 का वह दिन कैसे भूल सकते हैं. धरती जिस तरह डोली थी, लगा था मानो सृष्टि का अंत हो जायेगा. बच्चे थे, लेकिन आज भी वह दृश्य आंखों के सामने नाचता है. धरती से जो धारा फूट कर निकली थी उसी से 15 दिनों तक प्यास बुझाये थे. बेतिया : दोपहर के करीब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 26, 2015 8:11 AM
वर्ष 1934 का वह दिन कैसे भूल सकते हैं. धरती जिस तरह डोली थी, लगा था मानो सृष्टि का अंत हो जायेगा. बच्चे थे, लेकिन आज भी वह दृश्य आंखों के सामने नाचता है. धरती से जो धारा फूट कर निकली थी उसी से 15 दिनों तक प्यास बुझाये थे.
बेतिया : दोपहर के करीब 2 बजे थे, अमावस का दिन होने के कारण पिता जी पिंडा देकर खाना खाने के लिए बैठे थे. उनके पास ही रखे खाट पर लेटा हुआ था. इया ‘ मम्मी ’ खाना लाने चौका में गयी थी.
तभी खपड़ा फोस घर जोर से आवाज करने लगी. मैं चीखा, इया भाग.. , धरती डोलता..! आंखों के सामने धरती फटती रही थी. लोग इधर- उधर भाग रहे थे. इतना कहते ही हरिवाटिका बसंत बिहार मुहल्ले के 94 वर्षीय भुवनेश्वर शर्मा अपने माथा पर हाथ रख लेते है. कहते हैं कि आज के भूकंप को देखते ही उस दिन की याद ताजा हो गयी. मत पूछिए यह 1934 वाली घटना नहीं थी. उस वक्त का तबाही का मंजर कुछ और था.
उन्होंने बताया कि उनका घर मझौलिया थाना के शिकारपुर गांव में है. गांव के पूर्व दिशा में भूकंप से धरती फटने के कारण ‘नारा मैदान’ के समीप एक धारा फूट पड़ी थी. गांव के सभी इनारें बालू से पट गये थे. इस धारा से लगातार 15 दिनों तक अपने-आप पानी निकलता रहा. लोग घड़ा में भर कर इसी पानी को लाते थे और अपनी प्यास बुझाते थे.
पलभर में महसूस हुआ मौत के पहले वाला भय
बेतिया. मैं किचन में खाना बना रही थी. बच्चे और वो(पति) बरामदे में बैठे थे. अचानक चक्कर सा आने लगा. इतने में ही किचन के बरतन भी गिरने लगा. धरती हिल रही थी. लोग सड़कों पर दौड़ रहे थे. पल भर में ही मैने मौत के पहले वाला भय महसूस कर लिया. लगा कि अब नहीं बचूंगी.
शहर के लाल बाजार की रहने शकुंतला देवी इतना कहते ही रो पड़ीं. शकुंतला ने बताया कि पहले कभी भी मैने इतने नजदीक से मौत को नहीं देखा था. धड़कन बढ़ गयी थी. लाल बाजार ही गंगारानी, नीलम देवी, नीतू सिंह ने भी धरती हिलने की दास्तां बताया. कहा कि आज तो भगवान ने ही बचा लिया. हम तो हिम्मत हार चुके थे.
सड़क पर पूरा शहर
रविवार की सुबह 11.41 बजे थे. धरती हिलनी शुरू हुई. भागो, दौड़ों की आवाज के संग दो सेकण्ड के भीतर ही लोग सड़क पर दिखे. लोग भाग रहे थे. चीख-पुकार मची थी. लाल बाजार के अशोक कुमार अग्रवाल, पुरुषोत्तम राव, अजय कुमार, मनोज कुमार ने बताया कि ऐसा तीव्रता वाला भूकंप उन्होंने अपनी जिंदगी में नहीं देखा.
1988 में आया था भूकंप
तीन लालटेन चौक की पूनम झुनझुनवाला ने बताया कि उनके मकान की रेलिंग हिल रही थी. कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि कहा जायें. मोहित(बेटा) के जन्म वाले वर्ष 1988 में भी भूकंप आया था. आज वाला भूकंप काफी देर तक था.
रमना की तरफ भागे
शहर के बड़ा रमना मैदान शनिवार को खचाखच भरा दिखा. मीना बाजार के व्यवसायी अपनी-अपनी दुकान बंद करके बड़ा रमना में भागे.

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