बेतियाः शुक्रवार को हस्त नक्षत्र एवं अमृतयोग में उत्पन्न जयद योग के होने से इस वर्ष की धनतेरस वैभव लक्ष्मी कारक है. महाराज धनवंतरी के जन्मदिन के दिन से आरंभ होकर पांच दिनों तक महालक्ष्मी का विशेष पूजन आवाहन एवं आगमन प्रारंभ होकर भैयादुज तक महालक्ष्मी की आराधना गणोश, इंद्र, कुबेर के साथ करने का पुराणों में उल्लेख प्राप्त है. वैदिककाल से आरंभ महालक्ष्मी पूजन ऋग्वेद में विदित है.
कालांतर में ऋग्वेद से श्रीसुक्त का प्रादुर्भाव महालक्ष्मी को विशेष प्रिय है. धनतेरस के दिन महालक्ष्मी का आगमन के रूप में धातु जैसे- सोना, चांदी, तांबा, पीतल या लोहा के रूप में अथवा विभिन्न वाहन उपलब्ध एवं वस्तुओं के क्रय के साथ लक्ष्मी स्वरूप घर में लाना एवं उनकी पूजन करना विशेष महत्वपूर्ण माना गया है. शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी की आवाह्न् पूजन आज ही प्रारंभ हो जाता है. इस वर्ष खरीदारी एवं पूजन मुहुर्त सुबह 7.30 बजे से 11.45 बजे तक 1.28 से 4.30 बजे तक एवं सायं 6.00 बजे से 10 बजे रात्रि तक उत्तम एवं महत्वपूर्ण है.