बेतियाः लोक आस्था का महापर्व छठ तीन दिनों तक चलने वाला महापर्व है. छठ पर्व को सूर्य षष्ठी पर्व व सूर्य उपासना के महापर्व के नाम से भी जाना जाता है. संतान, सौभाग्य एवं साम्राज्य के साथ-साथ संपूर्ण आरोग्यता के लिए प्रसिद्ध सूर्य षष्ठी महापर्व अपार श्रद्धा, विश्वास व पवित्रता का प्रतीक है. आचार्य राधाकांत शास्त्री के अनुसार इस पवित्र व्रत में भगवान भास्कर की बहन शक्ति स्वरूपा सिद्धि देवी षष्ठी माता के साथ सूर्यदेव की पूजा उपासना का विधान है.
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार षष्ठी माता वात्सल्य मयी शिशुओं की अधिष्ठात्री हैं. पुत्र हीन को पुत्र देना, संतान को दीर्घायु बनाना तथा उनकी रक्षा करना षष्ठी का स्वाभाविक गुण है. ये ब्रह्माजी की मानस पुत्री तथा शिव पार्वती के पुत्र स्कंद कार्तिकेय की प्राण प्रिया है. षोडष मातृकाओं में इनकी देव सेना नाम से पूजा की जाती है तथा ये विष्णु माया, बालदा व देव सेना नाम से विख्यात हैं. ये माता शिशुओं के साथ हमेशा वृद्ध माता के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान रहती हैं तथा इनकी रक्षा व पोषण करती है.
पुत्र प्राप्ति के बाद छठे दिन षष्ठी महोत्सव संस्कार होता है. उसमें इन्हीं भगवती षष्ठी माता की विशेष आराधना की जाती है. माता षष्ठी को समस्त कृषि फसल गन्ना, केला, नींबू, नारियल, मूली, सूथनी, अदरक, कोहड़ा, फल-फूल के साथ शाली चूर्ण, गेहूं के आटे का गुड़ व घी युक्त सुखी पूड़ी, ठेकुआ आदि अति प्रिय है. 36 घंटों के निजर्ला कठोर व्रत उपवास के बाद भगवान भास्कर के दर्शन कर उन्हें विशेष अघ्र्य प्रदान करने के साथ ही सूर्य उपासना का महत्व पूर्ण होता है.