नहाय खाय के साथ महापर्व छठ कल से शुरू

बेतिया : प्रकृति, सूर्य आराधना व लोक आस्था महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शुक्रवार से नहाय खाय के साथ आरंभ होगा़ छठ पर्व को लेकर तमाम शंकाओं को दूर करते हुए पंडित राधाकांत शास्त्री बताते है कि प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अरघ देकर दोनों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 3, 2016 5:28 AM

बेतिया : प्रकृति, सूर्य आराधना व लोक आस्था महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान शुक्रवार से नहाय खाय के साथ आरंभ होगा़ छठ पर्व को लेकर तमाम शंकाओं को दूर करते हुए पंडित राधाकांत शास्त्री बताते है कि प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अरघ देकर दोनों का नमन किया जाता है़

सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह पर्व सभी जाति के लोग समान रूप से मनाते हैं. प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है. षष्ठी देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न कि जाती है़
छठ पूजा की तिथियां
छठ पूजा चार दिनों का अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण महापर्व होता है़ इसका आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है और समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है इस लम्बे अंतराल में व्रतधारी दो दिन पानी भी ग्रहण नहीं करते, बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में छठ पर्व पूर्ण श्रद्घा के साथ मनाया जाता है. यह पर्व पारणा प्रधान व्रत है और सप्तमी में सूर्योदय होने पर ही व्रत का पारणा किया जाने का आदेश शास्त्रों में दिया गया है .
36 घंटे का निर्जला व्रत
व्रत समाप्त होने के बाद ही व्रती अन्न और जल ग्रहण करते हैं. खरना पूजन से ही घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है़ इस प्रकार भगवान सूर्य के इस पावन पर्व में शक्ति व ब्रहृमा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है़ षष्ठी के दिन घर के समीप ही की सी नदी या जलाशय के किनारे पर एकत्रित होकर पर अस्ताचलगामी और दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ समर्पित कर पर्व की समाप्ति होती है़
आस्था का महापर्व
छठ पूजा का आयोजन बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के कोने-कोने में देखा जा सकता है़ देश-विदेशों में रहने वाले लोग भी इस पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं. मान्यता अनुसार सूर्य देव और छठी मइया भाई-बहन है, छठ व्रत नियम तथा निष्ठा से किया जाता है. भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत द्वारा निस्संतान को संतान सुख प्राप्त होता है़ इसे करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है़ छठ के दौरान लोग सूर्यदेव की पूजा करतें हैं , इसके लिए जल में खड़े होकर कमर तक पानी में डूबे लोग, दीप प्रज्ज्वलित किए प्रकार के प्रसाद से पूरित सूप उगते और डूबते सूर्य को अर्घ देते हैं और छठी मैया की विशेष उपासना करते हैं.
नहाय-खाय शुक्रवार को, रविवार को दिया जायेगा अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
प्रकृति एवं सूर्य अाराधना का महापर्व है छठ , 36घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं व्रती
इस वर्ष छठ व्रत
नहाय खाय – चार नवंबर
खरना, रासियाव रोटी- पांच नवंबर
डाला छठ एवं सायं अर्घ- छह नवंबर को सायं 5.25 से पूर्व
सूर्योदय अर्घ – सात नवंबर सोमवार को प्रात: 6.20 से
नहाय-खाय शुक्रवार को, रविवार को दिया जायेगा अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
प्रकृति एवं सूर्य अाराधना का महापर्व है छठ , 36घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं व्रती
खरना को गुड़ से बना खीर व रोटी का सेवन करते हैं व्रती
प़ राधाकांत शास्त्री के अनुसार छठ पूजा का आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है तथा कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इसका समापन होता है़ किन्तु पंचमी तिथि के दो दिन होने से इस वर्ष यह व्रत पंचमी से प्रारम्भ किया जायेगा । प्रथम दिन कार्तिक शुक्ल ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जायेगा. नहाए-खाए के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना किया जाता है़ पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाले व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन प्रसाद रूप में करेंगे.

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