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कमीशन पर रुकती हैं बसें

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By Prabhat Khabar Digital Desk | December 6, 2016 5:09 AM

मनमानी. होटल-ढाबों पर फिक्स है बस के ड्राइवर व कंडक्टर का कमीशन

चाय-नाश्ते की दुकान के पास रूकी बस .
सड़कों पर फर्राटा भरनेवाली बसों की मनमानी जारी है. यात्री खुलेआम ठगे जा रहे हैं. जिनके ऊपर इसे रोकने व निगरानी की जिम्मेवारी है, वह इस मनमानी लूट के हिस्सेदार बने बैठे हैं. लिहाजा बसों की जांच होती ही नहीं है. नतीजा प्रत्यक्ष के अलावे अप्रत्यक्ष रूप से यात्रियों को चूना लगाया जाता है. एक रिपोर्ट..
बेतिया : जिले से पटना-मुजफ्फरपुर व अन्य शहरों तक दौड़ लगाने वाली बसों के मनमानी की फेहरिस्त लंबी है. डीजल के दाम घटने के बाद भी यात्रियों को किराये में राहत नहीं देने, एसी-स्लीपर आदि सुविधाओं के नाम मनमनाना किराया लेने के बाद भी सुविधाएं नहीं देने के बाद अब खुलासा हुआ है कि होटल-ढाबों से संचालकों से भी बसों का कमीशन तय है.
सफर में बस उन्हीं होटल-ढाबों पर रुकती है, जहां बस संचालकों का कमीशन फिक्स है और मुफ्त में चालक और खलासी को खाना और नाश्ता मिलता है. इसपर यात्री अगर विरोध करते हैं तो चालकों द्वारा नियम-कानून पढ़ाया जाता है. नतीजा यात्री मन मसोस कर रह जाते हैं. बसों की मनमानी का आलम यह है कि यात्रियों को प्रत्यक्ष रूप से ठगने के संग ही अप्रत्यक्ष रूप से भी चूना लगाया जा रहा है. होटल संचालकों से बस मालिकों के गठजोड़ की बात इसकी पुष्टि भी कर रही है कि यात्री अप्रत्यक्ष रूप से ठगे जा रहे हैं. इसका खामियाजा है कि सफर लंबा खींचता जाता है.
बेतिया से पटना के छह घंटे की दूरी आठ से नौ घंटे में पूरी होती है. कारण कि इन होटलों पर कम से कम 20 मिनट बस तो जरुरतभर रोकी जाती हैं. यह हाल साधारण, एसी, डीलक्स, एक्सप्रेस, वॉल्वो सभी बसों की है. एक बस चालक ने नाम न छापने के शर्त पर बताया कि उन्हें बस मालिकों की ओर से किन-किन होटल के सामने या पास में बस रोकना है, उसकी सूची दे दी जाती है.
हम लोगों के लिए वहां नाश्ता और खाना का मुफ्त इंतजाम होता है. बसों की सीट की संख्या के हिसाब से कमीशन तय रहता है. इसके लिए होटल संचालकों को बकायदा बसों के पहुंचने, ठहरने और जाने के समय की जानकारी होती है.
फैक्ट फाइल
180 बसें रोजाना जिले से लगाती हैं दौड़
63 बसों का है बेतिया जिले में रजिस्ट्रेशन
1.73 लाख रुपये हर माह होती है एक बस की कमाई
यात्री बोले, शिकायत करें तो किससे
बसों की मनमानी को लेकर यात्रियों के पास शिकायतों की भरमार सी है, लेकिन इनके सामने दिक्कत यह है कि यह शिकायत करें तो किससे. बसों का संचालन निजी हाथों में होने के नाते यात्रियों को मन-मसोस कर रह जाना होता है. प्रशासनिक अफसरों के पास शिकायत करने पर इसकी सुनवाई ही नहीं होती है.
न कभी जांच होती है और न तो कार्रवाई
बसों की मनमानी और खुलेआम यात्रियों के जेब पर डाका डालने की तमाम शिकायतों के बाद इसकी जांच कभी नहीं होती है. जबकि परिवहन विभाग के अफसरों की जिम्मेवारी होती है कि वह बसों की नियमित जांच कर ऐसे मामलों को दूर कराये. इसके लिए सरकारी गाइडलाइन भी है, लेकिन इसकी अनदेखी की जाती है. नतीजा बस संचालकों का हौसला बुलंद है.
हर रोज होती है तू-तू-मैं-मैं
बसों के होटल-ढाबों पर रोकनें के लिए यात्रियों से हर रोज तू-तू, मैं-मैं की नौबत आती है. लेकिन, बसों के चालक व खलासी इतने एक्सपर्ट होते हैं कि बस रोकते ही वह चंपत हो जाते हैं. इसके बाद कुछ बिचौलिया टाइप लोग वहां दिखने लगते हैं. यात्रियों के विरोध करने पर उन्हें बिचौलियों द्वारा नियम-कानून पढ़ाये जाता है. यह सिलिसला बदस्तूर जारी है.
पटना व मुजफ्फरपुर जानेवाली बसों के चालकों व खलासियों का होटल संचालकों से तय है कमीशन
ड्राइवर व कंडक्टर करते हैं मनमानी
फ्री में खाते हैं खाना और लेते हैं कई सुविधाएं

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