परेशानी. नोटबंदी व शीतलहर का दैनिक कामगारों पर असर
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शहर के मुख्य चौक-चौराहे पर सुबह लग जाता है मजदूरों का जमघट
काम के नहीं िमले से मजबूरन मजदूरों को लौट जाना पड़ता है अपने घरों को
बेतिया : एक तो नोटबंदी दूसरे में शीतलहर की चपेट में पूरा जिला है. ऐसे में रोजी- रोटी की तलाश में गांव छोड़कर शहर में आने वाले दैनिक भोगी मजदूर काम की तलाश करते करते दोपहर हो जा रही है .
शहर में भी मजदूरों को प्रतिदिन काम नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में रोज कमाकर खाने वाले मजदूरों के समक्ष भूखमरी की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है. कई गांवों के नौजवान काम के तलाश में बाहर जा रहे हैं. सुबह होते ही ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले मजदूरों की भीड़ शहर के राजड्योढ़ी, तीन लालटेन चौक, पीपल चौक, के आर स्कूल के पास लग जाती है.
रोज कमानेवाले हलकान
नोटबंदी एंव शीतलहर का असर शहर में भी देखा जा रहा है. जितनी संख्या में मजदूर आ रहे हैं सब को काम नहीं मिल पा रहा है. नतीजा यह होता है कि काम किए बगैर उन मजदूरों को वापस लौट जाना पड़ रहा है. शहर से 10 किलोमीटर की दूरी तक के गांवों के लोग यहां काम के लिए आ रहे हैं और वापस घर लौट जा रहे हैं. तीन लालटेन चौक पर रमेश पटेल, मधुसूदन राम ,परमानंद पासवान, नवमी प्रसाद तथा अख्तर हुसैन ने बताया कि वे लोग पांच दिनों से काम के लिए आ रहे हैं, लेकिन काम नहीं मिल रहा है.
गांव में भी धान कटनी एवं गेंहू की बुआई का कार्य बंद है. गन्ना के लिए चीनी मिल तो चालू हो गये है, लेकिन इसमें कम मात्रा में मजदूर लगने के कारण एवं भुगतान होने के बाद ही मालिक द्वारा भुगतान दिया जाता है. इसलिए वहां काम करने की आवश्यकता नहीं पड़ती. मजदूरों ने यह भी बताया कि नोटबंदी का भी असर देखने को मिल रहा है. शहर में प्राय: आजकल लोग छोटे -मोटे काम हीं करा रहे है. जिससे उन्हें काम नहीं मिल पा रहा है.
बेतिया में एसबीआइ के एटीएम पर पैसा िनकालने के लिए जुटे लोग.