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Durga Puja: बिहार में यहां गिरी थी माता सती की बाईं आंख, राजा कर्ण करते थे हर दिन सवा मन सोना दान

Chandika Sthan: मुंगेर जिले में गंगा नदी के किनारे अवस्थित चंडिका देवी मंदिर के पूर्व और पश्चिम में श्मशान घाट है. इस वजह से इस मंदिर को श्मशान चंडी के नाम से भी जाना जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 4, 2022 11:16 AM

Chandika sthan in munger: बिहार में देवी देवताओं के कई मंदिर हैं. उनमें से एक ऐसा भी मंदिर है जहां देवी सती की बाईं आंख गिरी थी. यह मंदिर बिहार के मुंगेर जिले में स्थित है. गंगा नदी के किनारे अवस्थित इस देवी मंदिर के पूर्व और पश्चिम में श्मशान घाट है. इस वजह से इस मंदिर को श्मशान चंडी के नाम से भी जाना जाता है. यूं तो इस मंदिर में सालों भर भक्तों की भारी भीड़ रहती है. लेकिन नवरात्रि के दौरान भीड़ काफी अधिक रहती है. कहा जाता है कि श्मशान के पास स्थित रहने के चलते इस मंदिर में तांत्रिक रात के अंधेरे में तंत्र सिद्धि के लिए आते रहते हैं.

नेत्र विकार होते हैं ठीक

देवी चंडिका की इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां असाध्य रोग भी माता के नीर से ठीक हो जाते हैं. लेकिन इस मंदिर की प्रसिद्धि नेत्र विकारों के लिए अधिक है. यहां दूर-दूर से पहुंचने वाले देवी भक्त माता के मंदिर में बनाए गए काजल को अपनी आंखों में लगाते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में बनाए गए काजल को आंखों में लगाने से नेत्र विकार दूर हो जाता है. यहां आने वाले भक्त पूजा के बाद प्रसाद के रूप में यहां से काजल ले जाते हैं.

नवरात्रि में रात दो बजे के बाद शुरू हो जाती है पूजा

मंदिर कमेटी के अनुसार नवरात्रि में यहां रात दो बजे के बाद माता की पूजा शुरू हो जाती है. संध्या में माता का श्रृंगार पूजन किया जाता है. आज नवरात्रि के नौवें दिन मंगलवार को मां सिद्धिदात्री की पूजा की जा रही है. मंदिर में आज सुबह से ही पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है. माता के जयकारों से पूरा मंदिर परिसर गूंज रहा है. लोगों ने पूरे विधि-विधान और वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच मां चंडिका की आराधना की.

Durga puja: बिहार में यहां गिरी थी माता सती की बाईं आंख, राजा कर्ण करते थे हर दिन सवा मन सोना दान 2
52 शक्तिपीठों में से एक है मां चंडिका का मंदिर

गंगा किनारे स्थित शक्ति पीठ माता चंडिका स्थान 52 शक्तिपीठों में से एक है. यहां माता के बाईं आंख की पूजा की जाती है. मान्यता है कि यहां मां सती की बाईं आंख गिरी थी. कहा जाता है कि यहां पूजा करने वालों की आंखों की पीड़ा दूर होती है. पौराणिक कहानी के मुताबिक राजा दक्ष की पुत्री सती के जलते हुए शरीर को लेकर जब भगवान शिव भ्रमण कर रहे थे, तब माता सती की बांई आंख यहां गिरी थी. यही वजह है कि यह शक्तिपीठ बना. यहां मां का आंख जो पिंडी रूप में है, उसके दर्शन से सभी दुख दूर होते हैं.

दानी कर्ण सवा मन सोना करते थे दान

किवदंतियों की मानें तो यहां दानी कर्ण देवी की पूजा करने के बाद हर रोज सवा मान सोना दान किया करते थे. कहानी है कि महाराजा कर्ण ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान कर चंडिका की विधि-विधान से पूजा कर खौलते तेल के कड़ाहे में कूद जाया करते थे और उनके देह के मांस को चौसठ योगिनी भक्षण कर लिया करती थी. इसके बाद माता प्रसन्न होकर राजा कर्ण के अस्थियों पर अमृत छिड़क कर, राजा कर्ण को फिर से जिंदा कर देती थीं और उनसे प्रसन्न होकर माता कर्ण को सवा मन सोना दिया करती थी. जिसे राजा कर्ण दान कर दिया करते थे.

राजा विक्रमादित्य से भी जुड़ी है एक किवदंती

पौराणिक किवदंतियों की मानें तो राजा कर्ण को हर रोज सवा मन सोना दान करते देख, राजा विक्रमादित्य हैरत में थे. एक दिन विक्रमादित्य ने राजा कर्ण को खौलते तेल के कड़ाहे में कूदते देख लिया. इसके बाद विक्रमादित्य एक रात कर्ण से पहले चंडिका मंदिर पहुंच गए और विधि-विधान से माता की पूजा-अर्चना की. इसके बाद राजा विक्रमादित्य एक नहीं बल्कि तीन बार तेल के कड़ाहे में कूद पड़े. जिसके बाद देवी ने साक्षात प्रकट होकर, राजा विक्रमादित्य को वरदान मांगने को कहा. जिसके बाद राजा विक्रमादित्य ने माता से अमृत कलश और सोना प्रदान करने वाला थैला मांग लिया.

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