सुजीत कुमार सिंह, औरंगाबाद. कार्तिक छठ की शुरुआत नहाय-खाय के साथ हो चुकी है. 19 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को लोगों ने अर्घ्य दिया और अब 20 नवंबर को उदयगामी सूर्य को लाखों छठ व्रती अर्घ देंगे. जब छठ की महिमा की बात होगी, तो सूर्य नगरी देव स्थित भगवान सूर्य के त्रेतायुगीय सूर्य मंदिर की चर्चा जरूर होती है. मान्यता है कि डेढ़ लाख से भी ज्यादा वर्षों से यहां का सूर्य मंदिर और इसके समीप स्थित पवित्र सूर्यकुंड तालाब आस्था का केंद्र है. अब तक लाखों छठ व्रती ने देव पहुंचकर भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर चुके हैं.
करीब 100 फीट ऊंचा है देव सूर्य मंदिर
जहां तक मंदिर निर्माण की बात है, तो यह आज भी एक अनसुलझी पहेली है. वैसे यह विश्व का इकलौता पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर है, जिसकी स्थापत्य कला बेजोड़ है. यह कोणार्क के मंदिर से मिलता-जुलता है. देव सूर्य मंदिर करीब 100 फीट ऊंचा है. यह काले और भूरे पत्थरों की नायाब शिल्पकारी से बना है. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं किया था. मंदिर के बाहर लगे शिलालेख के अनुसार, मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला पुत्र पुरुरवा ऐल ने कराया था.
पौराणिक मंदिर के निर्माण काल के एक लाख 50 हजार 22 वर्ष पूरे
शिलालेख से यह भी पता चलता है कि 2023 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल के एक लाख 50 हजार 22 वर्ष पूरे हो चुके हैं. वैसे, औरंगाबाद जिले के कुछ लोग इसे विश्वकर्मा मंदिर के तौर पर भी जानते हैं. मंदिर निर्माण के प्रसंग में कई किदवंतियां प्रचलित हैं. कोई इसका निर्माण काल त्रेतायुग मानता है, तो कोई द्वापर काल से इसका संबंध जोड़ता है. कोई इसे इला पुत्र ऐल राजा द्वारा निर्मित बताता है. देव में छठ व्रत का एक अलग ही महत्व है. एक किदवंती यह भी है कि यहां के सूर्य कुंड में देव माता अदिती, मां सीता, द्रौपदी के साथ-साथ कई देवी-देवताओं ने छठ की उपासना कर भगवान सूर्य को अर्घ दिया था. इस पवित्र स्थान की महत्ता देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है.
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देव सूर्य मंदिर कहां है?
देव सूर्य मंदिर बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नाम के एक गांव में है. ये एक हिंदू मंदिर है जो देवता सूर्य को समर्पित है. ये बाकी मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है, यानी कि ये पश्चिम दिशा में है. माना जाता है कि इस मंदिर को खुद देव माता अदिति ने बनवाया था. अदिति देवताओं की मां है यानी कि वो सूर्य देव की भी मां है. इसके अलावा कहानियों में बताया गया है कि यहीं छठी मईया की पूजा कर माता अदिति ने त्रिदेव रूप आदित्य भगवान को पाया था.
इस मंदिर की ऐतिहासिक वास्तुकला देखें
इस मंदिर की ऐतिहासिक वास्तुकला देखें तो नागर शैली एवं द्रविड़ शैली में इसे बनाया गया है. इस पर कलश बनाएं गए हैं पाली शैली में अभिलेख लिखे गए हैं और उस समय की पूरी कहानी लिखी गई है. इसके अलावा यहां खास है सूर्य अपने तीनों रूप में बनाए गए हैं. यानी जब सूरज उगता है, सूरज जब दोपहर में होता है और फिर सूरज जब शाम को नजर आता है.
घूम लें कार्तिक मेला
इस मंदिर में हर साल कार्तिक मेला लगता है. लाखों लोग यहां बिहार की स्थानीय चीजों को देखने आते हैं. यहां मेले में आपको पूरे बिहार से आई चीजें मिलेंगी. तो, इस बार छठ पूजा पर इस मंदिर में घूमने जा सकते हैं. इसके अलावा आपहर रविवार को भी यहां घूमकर आ सकते हैं. तो, अभी या फिर जब आपको समय मिले आप बिहार के औरंगाबाद जाएं और यहां घूमकर आएं.