जूही स्मिता
लोक आस्था और सूर्योपासना का महापर्व छठ शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया. छठ व्रतियों ने स्नान कर कद्दू की सब्जी, चने की दाल और अरवा चावल का प्रसाद बनाकर ग्रहण कर छठ महापर्व का अनुष्ठान शुरू किया. आज खरना का प्रसाद बनेगा. इसके अगले दो दिनों तक भगवान भास्कर को अर्घ दिया जायेगा. लोक आस्था का महापर्व छठ गीतों में छठ पूजा की महिमा बसती है.
हे चननही काठ केर नइया, सात ही घोड़वा सुरूज देव देव रथे अ सवार.., काहे के है नईया के बस्ती, सोने के खरौआ हो दीनानाथ, केलवा जे फरये घवद, हाजीपुर नारियर आदि छठ लोक गीतों की रचियता बिहार की स्वर कोकिला और पद्मश्री का सम्मान पाने वाली वरिष्ठ लोक गायिका विंध्यवासिनी देवी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके रचित गीत आज भी उनके होने का एहसास दिलाते हैं. पांच जनवरी 1920 को मुजफ्फरपुर में जन्मीं विंध्यवासिनी का जन्म आजादी पूर्व हुआ था. उस दौरान गीत गाना महिलाओं के लिए आसान नहीं था. बावजूद देवी ने सामाजिक और पारिवारिक बंदिशों से लड़ते हुए पति के सहयोग से उन्होंने गायिकी में एक मुकाम हासिल किया. मुजफ्फरपुर में नानी के घर जन्म लेने वाली विंध्यवासिनी देवी का लालन-पालन और प्रारंभिक शिक्षा वहीं हुई.
कम उम्र में शादी होने के बाद देवी वर्ष 1945 में पटना आ गयी.गीतों के साथ रचते बसते रहने के कारण देवी ने 1948 में जब पटना आकाशवाणी की शुरूआत हुई, तब से विंध्यवासिनी ने आकाशवाणी को ही अपना मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा बना दिया. उन्होंने इस दौरान कई छठ गीत के साथ अन्य गीतों की रचना की और अपनी का जादू चलाया. यह कहना गलत नहीं होगा की आजादी के बाद 1978 से पहले छठ के पारंपरिक गीतों में पद्मश्री लोकगायिका विंध्यावासिनी देवी का शीर्ष पर है. इसके बाद पद्मश्री शारदा सिन्हा की आवाज ने जादू बिखेरना शुरू किया जो आज तक बरकरार है. शारदा सिन्हा की आवाज और छठ पूजा के गीत एक दूसरे के पर्याय बन गये हैं.इनके बाद के जेनरेशन के लोग इनके छठ के गाने सुन बड़े हुए और आगे आने वाली जेनरेशन भी सुनते रहेंगे.
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लोक आस्था का महापर्व छठ और इसमें गाये जाने वाले लोकगीतों के बीच बेहद ही आत्मीय रिश्ता है. बिहार हो या देश या दुनिया का कोई कोना, जैसे ही छठ की चर्चा होती है, तो लोगों को सबसे पहले पद्मश्री शारदा सिन्हा के गाये छठ गीत ही याद आते हैं. शारदा सिन्हा बताती हैं कि जब मैं 8-9 साल की थी, तब मेरी नानी मुजफ्फरपुर जिले में रहती थीं. वह हमेशा कहती थी कि उन्हें पटना में छठ करना है. उस वक्त पटना की छठ पूजा की काफी मान्यता थी. तब मैं नानी और घरवालों के छठ के पारंपरिक गीत सुना करती थी. उस वक्त की बात याद थी और नानी की इच्छा को ध्यान में रखते हुए मैंने पटना के छठ पर गीत लिखा और गाया, जिसके बोल हैं- ‘पटना के घाट पर ..’ उन्होंने बताया कि 1977 या 1978 में पहली बार म्यूजिक कंपनी एचएमवी की तरफ से मेरा पहला गाना ग्रामोफोन रिकॉर्ड पर आया. इसके बाद 1980 के आस-पास मेरे कैसेट आने लगे. मेरा गाया पहला छठ गीत था- अंगनवा में पोखरी खनाएब, छठी मैया अएतन आज… इस गीत को लोगों ने काफी पसंद किया. मैंने अबतक मैथिली, भोजपुरी, अंगिका और बज्जिका में 70 से ज्यादा गाने गाये हैं. अभी मेरे छठ गीतों को सारेगामापा वाले रिवाइज कर श्रोताओं के बीच जल्द लेकर आने वाले हैं.
भरत शर्मा व्यास भोजपुरी के जाने माने गायक हैं. इन्हें भोजपुरी निर्गुन विधा के गीत से खास पहचान मिली है. इन्होंने छठ के गीत के अलावा कई अन्य गीत गाये हैं, जो काफी सुने गये और सुने जा रहे हैं. अबतक वे भोजपुरी में साढ़े चार हजार गीत गा चुके हैं. इनके गाये छठ के गाने 1990 के दसक के समय काफी मशहूर हुए थे. श्री शर्मा कहते हैं कि छठ पर्व की शुरुआत बिहार से ही हुई है. बिहार के औरंगाबाद जिला में देव है, जहां सूर्य भगवान का मंदिर और बड़ा सा पोखर है. वहां छठ पूजा सदियों से होती आ रही हैं. यहीं से छठ की शुरुआत हुई. बिहार के बाद फिर अन्य राज्यों और विदेश में यह पर्व होने लगा. बचपन से ही उन्हें गाने का शौक था. 1971 में गांव में हुए रामायण में उन्होंने पहला गाना गाया था. 1972 से लेकर 1987 तक रामायण पर गीत गाते थे. 1989 में टी सीरीज से जुड़े और 1990 से छठ पर गीत गाना शुरु किया. उन्होंने एकल के अलावा अनुराधा पॉडवाल और अलका याज्ञनिक के साथ भी छठ के गीत गाये हैं. श्री शर्मा हर साल अपने यूट्यूब चैनल भरत शर्मा ऑफिशियल पर छठ के गाने रिलीज करते हैं. इन्होंने अहो दीनानाथ.., पटना के घाट पर..,राती में अगोरेली, केकरा लागी करेलू छठी बरतिया, छठी मईया के बरतिया, छठ के परबिया जैसे सुपरहिट गीत दिये हैं.