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Chhath Puja: बिहार में है विश्व का इकलौता पश्चिमोभिमुख सूर्य मंदिर, देवार्क के गुंबद पर पड़ती है पहली किरण

औरंगाबाद से 18 किमी दूर देवस्थित सूर्य मंदिर करीब 100 फीट ऊंचा है, जो काले व भूरे पत्थरों की नायाब शिल्पकारी से बना है. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्माने किया था.

रविकांत पाठक, पटना. देव सूर्य मंदिर विश्व का एकमात्र पश्चिमोभिमुख सूर्य मंदिर है. इस मंदिर की स्थापत्य कला बेजोड़ है. इसे हूबहू कोर्णाक के मंदिर की तरह बनाया गया है. औरंगाबाद से 18 किमी दूर देवस्थित सूर्य मंदिर करीब 100 फीट ऊंचा है, जो काले व भूरे पत्थरों की नायाब शिल्पकारी से बना है. मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था. मंदिर के बाहर लगे शिलालेख के अनुसार, मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला-पुत्र पुरुरवा ऐल ने कराया था. शिलालेख से पता चलता है कि वर्ष 2022 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल के एक लाख 50 हजार 21 वर्ष पूरे हो गये हैं.

तीन ऐसी जगह है, जहां सूर्य की सबसे पहली किरण पहुंचती है

जंबूद्वीप में तीन ऐसी जगह है, जहां सूर्य की सबसे पहली किरण पहुंचती है. इनमें ओड़िशा का कोणार्क सूर्य मंदिर, बिहार का देव सूर्य मंदिर और पाकिस्तान का मुल्तान सूर्य मंदिर शामिल है. भविष्यपुराण में इन तीनों जगहों की प्रमाणिक व्याख्या है. ज्योतिषाचार्य शिवनारायण सिंह बताते हैं कि भविष्यपुराण में जम्बूद्वीप पर इंद्र वन, मित्र वन व मुंडिर वन का उल्लेख हैं, जहां सूर्योदय के बाद सीधे सूर्य की पहली किरण पहुंचती है. प्राचीन काल में देव को इंद्र वन, कोणार्क को मित्र वन व मुल्तान को मुंडिर वन के रूप में जाना जाता था. इन तीनों जगहों पर स्थित सूर्य मंदिर में विराजमान बिरंचि- नारायण का सबसे पहले सूर्य की रोशनी से अभिषेक होता है. सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त इन तीनों जगहों की छटा देखते ही बनती है.

समुद्र से जुड़ा है सूर्यकुंड तालाब

इतना ही नहीं, देव में स्थित सूर्यकुंड तालाब का तार सीधे समुद्र से जुड़ा हुआ है. इसी कारण देव में दो-तीन किलोमीटर के क्षेत्र में पानी खारा मिलता है. मंदिर के आसपास व देव बाजार में विभिन्न जलाशय व चापाकल से निकलने वाले पानी का स्वाद भी खारा है. अगर, समुद्र में किसी प्रकार की हलचल होती है, तो उसका सीधा असर सूर्यकुंड तालाब में देखने को मिलता है. मान्यता है कि छठ की शुरुआत देव से हुई थी.

तीन स्वरूपों में हैं सूर्य देव

देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल व अस्ताचल के रूप में विद्यमान हैं. बिना सीमेंट या चूना-गारा का प्रयोग किये आयताकार, वर्गाकार, आर्वाकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गये पत्थरों को जोड़ कर बनाया गया मंदिर अत्यंत आकर्षक वविस्मयकारी है.

देवमाता अदिति ने की थी आराधना

देवासुर संग्राम में जब असुरों से देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी. प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था. इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप आदित्य भगवान हुए, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी. कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया.

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