मधुबनी. बाढ़ग्रस्त इलाकों में तैरना एक ऐसी कला है जो हर कोई जानता है. मधुबनी समेत पूरे उत्तर बिहार के ईलाकों में आज तैरनेवाला समाज डूबने लगा है. अकेले मधुबनी में पिछले दो माह के अंदर गड्ढों में डूबने से 12 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. अधिकतर गड्ढों का निर्माण जेसीबी द्वारा मिट्टी खुदाई के बाद हुआ है. वैसे अवैध रूप से हुई इस खुदाई की न तो आपदा विभाग को कोई जानकारी है और न ही खनन विभाग को इससे कोई लेना-देना है. जिले में आये दिन निजी से लेकर सरकारी जमीनों की खुदाई जेसीबी के माध्यम हो रही है. बरसात में इन गड्ढों में पानी भर चुका है और अब तक एक दर्जन से अधिक बच्चों की जान इन गड्ढों में डूबने से जा चुकी है.
जिले में पिछले दो महीने में गड्ढों में डूबने से सबसे ज्यादा मौतें बिस्फी में हुई है. बिस्फी के बलहा में 1, दक्षिण भरनटोल में 2 और हीरो पट्टी में 3 बच्चों की मौत हुई है. पंडौल के सलेमपुर में करीब 15 दिन पहले 3 बच्चों की मौत इसी तरह के जेसीबी के खोदे गड्डे में डूबने से मौत हो चुकी है. लदनियां में शनिवार और रविवार को गड्ढे में डूबने से दो बच्चों की मौत हुई है. झंझारपुर के पूरब कोठिया में एक ईंट उद्योग के दूर के कैपस में खोदे गये गड्ढे में डूबने से 2 बच्चों की मौत हो गई थी. ये घटनाएं कुछ माह के भीतर हुई हैं.
बिस्फी में दो साल पहले बिस्फी, नूरचक, कोरियानी, सिमरी आदि गांवों में दर्जन भर से अधिक बच्चे जेसीबी से खोदे गये गड्ढों में डूबकर काल के गाल में समा गये. इन घटनाओं के बावजूद प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. ऐसे मामलों में कोई प्राथिमकी आज तक नहीं हुई है. डूबने वाले बच्चे ज्यादातर गरीब और सामाजिक रूप से पिछड़े होते हैं. ये बच्चे तालाबों में जाने से सतर्क रहते हैं, लेकिन इन गड्ढों में ये नहाने या खेलने यह मानकर चले जाते हैं कि डूबने का खतरा कम है.
खनन विकास पदाधिकारी संतोष कुमार का कहना है कि अवैध खनन की शिकायत सामने आती है तो कार्रवाई की जाती है. हालांकि, ऐसे मामलों में उनके विभाग की भूमिका नहीं होती है. वहीं जिला आपदा पदाधिकारी परिमल कुमार कहते हैं कि गड्ढों में हुई मौतों की रिपोर्ट संबंधित प्रखंड के सीओ से मांगी गई है. प्रशासन लगातार अपील कर रहा है कि नदी, तालाब और ऐसे गड्ढों से बच्चों को दूर रखा जाये.