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बिहार में साइबर बुलिंग के शिकार हो रहे मोबाइल चलानेवाले बच्चे, एनसीइआरटी के ताजा सर्वे में चौंकानेवाले खुलासे

आज बच्चे लगातार साइबर बुलिंग के जाल में फंस रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ाई, शॉपिंग, गेमिंग और सोशल साइट्स पर पांच से छह घंटे समय बिताने वाले बच्चों को साइबर बुलिंग का शिकार होना पड़ रहा है. ऐसे में प्रभात खबर ने बच्चों को जागरूक करने के लिए मुहिम की शुरुआत की है.

मुजफ्फरपुर. बच्चों में साइबर बुलिंग की घटनाओं में तेजी से इजाफा हो रहा है. बच्चे अवसादग्रस्त हो रहे हैं और उनमें चिड़चिड़ापन, सकारात्मक कार्यों में मन न लगने जैसी प्रवृति उत्पन्न हो रही है. एनसीइआरटी की ओर से कराये गये एक सर्वेमें यह पता चला है कि 70 प्रतिशत अभिभावक बच्चों और युवाओं को सकारात्मक गतिविधियों के नाम पर सोशल मीडिया और इंटरनेट का इस्तेमाल करने की छूट देते हैं, लेकिन वे उनकी गतिविधियों की मानिटरिंग नहीं करते. इसमें से 58 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन गतिविधियों से जुड़ी जानकारी अपने अभिभावकों के साथ साझा नहीं करते. इस क्रम में फंस जाने पर वे पहले तो मानसिक रूप से साइबर बुलिंग का शिकार होते हैं.

प्रलोभन में फंसकर हो रही है साइबर बुलिंग

ताजा सर्वेमें यह देखा गया है कि साइबर बुलिंग का शिकार होने वालों में छह से आठ घंटे तक मोबाइल का उपयोग करने वाले बच्चों की संख्या अधिक है. घंटों तक इंटरनेट का उपयोग करने के क्रम में लोक लुभावने विज्ञापन, आकर्षित करने वाली तस्वीरें, पार्ट टाइम जाब्स के साथ ही कंटेंट क्रिएटिंग के प्रलोभन में फंसकर ये साइबर बुलिंग के शिकार हो रहे हैं. सोशल मीडिया और इंटरनेट का इस्तेमाल करने के क्रम में कई बार बच्चे पैसे की डिमांड करने पर अवैध कार्यों को अंजाम देते हैं. इससे उनमें आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ रही है.

ऐसे पता करें डिस्प्ले वाचिंग टाइम

हम प्रतिदिन घंटों स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं. कई लोग 10 से 12 घंटे तक स्मार्टफोन चलाते हैं. इसका दुष्प्रभाव उनकी सेहत पर तो पड़ता ही है ऐसे में जरूरी है कि हम पता करें कि कहीं हम अत्यधिक माेबाइल का उपयोग तो नहीं कर रहे. इसके लिए एंड्रायड मोबाइल की सेटिंग में जाएं. यहां स्क्राल करने पर डिजिटल वेलबीइंग एंड पैरेंटल कंट्रोल का ऑप्शन दिखेगा. इसपर क्लिक करने के बाद दिखेगा कि आप 24 घंटे में से कितना समय मोबाइल इस्तेमाल में दे रहे हैं. साथ ही इसमें एप्स का अलनअलग डिस्प्ले वाचिंग टाइम भी दिखेगा. इसे कम करने की दिशा में पहल करें.

साइबर बुलिंग पर जागरूकता कार्यक्रम

आज बच्चे लगातार साइबर बुलिंग के जाल में फंस रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ाई, शॉपिंग, गेमिंग और सोशल साइट्स पर पांच से छह घंटे समय बिताने वाले बच्चों को साइबर बुलिंग का शिकार होना पड़ रहा है. ऐसे में प्रभात खबर ने बच्चों को जागरूक करने के लिए मुहिम की शुरुआत की है. मंगलवार को मिठनपुरा स्थित इंद्रप्रस्थ इंटरनेशनल स्कूल में बच्चों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम हुआ. इसमें विशेषज्ञ के रूप में साइबर अधिवक्ता अनिकेत पीयूष और ट्रैफिक डीएसपी नीलाभ कृष्ण बच्चों को साइबर बुलिंग से बचने के टिप्स दिये.

ये हो सकते हैं साइबर बुलिंग के लक्षण

एनसीइआरटी ने सर्वे के क्रम में पाया है कि साइबर बुलिंग में बच्चे अक्सर असामान्य व्यवहार करने लगते हैं. वे या तो शांत दिखते हैं या बात-बात पर गुस्सा करते हैं. कंप्यूटर या ऑनलाइन गतिविधियों से दूरी बनाने लगते हैं. भीड़ वाले या सामूहिक आयोजनों से दूरी बनाने लगते हैं. बच्चों में ऐसे लक्षण दिखाई दें तो उसे विश्वास में लेकर उनकी काउंसलिंग करें. इससे उन्हें साइबर बुलिंग से बाहर निकाला जा सकता है.

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एनसीइआरटी ने तीन स्टेप में जारी किये निर्देश

एनसीइआरटी ने दिशा-निर्देश के तहत स्कूलों, शिक्षकों और छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग जिम्मेदारियां निर्धारित की गई हैं. स्कूलों को कहा गया है कि वे यह तय करें कि उनके संस्थान में संचालित हाे रहे लैब के कंप्यूटर में ओरिजनल सॉफ्टवेयर का उपयोग हो रहा हो. वाइफाइ का पासवर्ड सुरक्षित हो. शिक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वे नियमित अंतराल पर बच्चों की ओर से उपयोग किए जा रहे कंप्यूटर की ब्राउजिंग हिस्ट्री की जांच करें.

क्या है साइबर बुलिंग

वर्तमान परिदृश्य में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और डीप फेक बच्चों को काफी आकर्षित कर रहे हैं. इनकी चमक-दमक को देख बच्चे इनका अत्यधिक प्रयोग कर रहे हैं. नइ-नइ जानकारियों को जुटाने के क्रम में कइ बार वे ऐसे वेबसाइट्स तक पहुंच जा रहे जो उन्हें फांसकर उनका शोषण करने लगते हैं. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर दुष्प्रभावों के शिकार होने को साइबर बुलिंग का नाम दिया जाता है. इसमें टेक्स्ट, अश्लील तस्वीरों, अभद्र भाषा का प्रयोग और धमकी देकर बच्चों को अपनी गिरफ्त में लेना शामिल है.

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