Bihar Politics Explainer Story: लोजपा के दोनों खेमों के बीच फिर एकबार घमासान मचा है और चाचा व भतीजा आमने-सामने आ गए हैं. लोजपा के संस्थापक स्व. रामविलास पासवान के भाई और बेटे में हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने की होड़ लगी हुई है. दोनों इस सीट पर अपना अधिकार व कर्तव्य गिनाकर इसपर अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. पटना से सटे हाजीपुर की सीट क्यों दोनों के नजर में इतनी अहमियत रखती है और चिराग पासवान जमुई की सीट को छोड़कर अब हाजीपुर से चुनाव लड़ना क्यों चाहते हैं, जानिए इस सीट के बारे में…
हाजीपुर लोकसभा सीट को लेकर चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस के बीच जो द्वंद छिड़ा है उसकी सबसे बड़ी वजह खुद स्व. रामविलास पासवान पीछे छोड़ गए हैं. दरअसल, आज चिराग पासवान हाजीपुर को जिस तरह अपनी मां बताते हैं वो सुर उनके पिता रामविलास पासवान के थे. रामविलास पासवान हाजीपुर को अपनी मां मानते थे और इसके पीछे की वजह भी बहुत मजबूत है. रामविलास पासवान के सियासी सफर पर एक नजर डालें तो हाजीपुर सीट की खासियत समझने में आसानी होगी.
वैशाली जिले की यह लोकसभा सीट 1977 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इस सीट पर इससे पहले कांग्रेस का दबदबा था. यहां करीब 17 लाख वोटर हैं. इस क्षेत्र में यादव, राजपूत, भूमिहार, पासवान व कुशवाहा वोटरों की संख्या अधिक है. अति पिछड़े वोटरों की संख्या अधिक होने की वजह से ये यहां निर्णायक भूमिका में रहते हैं. कभी कांग्रेस के राजेश्वरा पटेल और वाल्मिकी चौधरी व रामशेखर प्रसाद को जीत दिलाने वाली हाजीपुर सीट ने 1977 में कांग्रेस को हार का सामना कराया और आम चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर रामविलास पासवान जीतकर पहली बार यहां से सांसद बने थे. वो 8 बार इस सीट से सांसद रहे.
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रामविलास पासवान 1977 से 2014 तक कई बार हाजीपुर से चुनाव जीते. हालांकि दो बार उन्हें इस सीट पर हार का भी सामना करना पड़ा था. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार रामरतन राम ने तो 2009 में जदयू उम्मीदवार व पूर्व सीएम रामसुंदर दास ने हराया था. रामविलास पासवान पार्टी बदल-बदलकर उम्मीदवार बनते रहे लेकिन हाजीपुर ने उन्हें भरपूर आशीर्वाद दिया और रिकॉर्ड मतों से वो जीत दर्ज करते गए. 2014 में रामविलास पासवान ने मोदी लहर में वापसी की थी और यहां से रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की. रामविलास पासवान को तब 4.55 लाख वोट मिले थे. दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार को केवल 2.30 वोट थे जबकि जदयू के खाते में 1 लाख से भी कम वोट आए थे.वो दो बार 4 और 5 लाख से अधिक वोटों से जीते और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में खुद का नाम दर्ज करवाया था.
6 प्रधानमंत्री के कैबिनेट में मंत्री रह चुके रामविलास पासवान पांच दशक तक बिहार और देश की सियासत में छाए रहे.दो बार लोकसभा चुनावों में वो सबसे अधिक मतों से जीते. हाजीपुर ने रामविलास पासवान को ताबड़तोड़ आशीष देकर जीत दिलाया तो इसके बदले में रामविलास पासवान ने भी हाजीपुर के विकास के लिए काफी प्रयास किए. हाजीपुर में रेलवे का जोनल कार्यालय आज उनके ही प्रयासों की देन है. रामविलास पासवान जिस विभाग के मंत्री रहे उसके किसी प्रमुख गतिविध का केंद्र हाजीपुर को जरूर उन्होंने बनाया. जब वो रेल मंत्री रहे तो 2002 में हाजीपुर को ही पूर्व मध्य रेलवे के जोनल कार्यालय बनवाया. बिहार की राजधानी पटना में कई अधिकारियों का आवास है लेकिन जोनल कार्यालय पास में हाजीपुर में ही आज भी है. वहीं कई संस्थान भी उन्होंने हाजीपुर को सौगात के रूप में दिए.
रामविलास पासवान ने हाजीपुर की सीट अपने भाई पशुपति पारस को सौंपी और बेटे चिराग पासवान को जमुई से चुनावी मैदान में उतारा. अब जब उनके निधन के बाद चाचा और भतीजे के बीच रिश्ते में तलवार खींची जा चुकी है और लोजपा भी दो भागों में बंट गयी है तो दोनों नेता इस सीट पर अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं. दरअसल, इस सीट का इतिहास देखा जाए तो रामविलास पासवान की सियासी जड़ें यहीं से मजबूत रही है और इसका लाभ कहीं न कहीं दोनों नेता लेना चाहते होंगे.
हालांकि अब जब आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चिराग पासवान अपनी पार्टी को एनडीए में शामिल करा चुके हैं तो उनका कहना है कि हाजीपुर उनके पिता की सीट थी और कई काम ऐसे हैं जो आज वहां अधूरे हैं. वो अपने पिता के अधूरे कामों को पूरा करना चाहते हैं और इसलिए वो हाजीपुर से चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं. जबकि पशुपति पारस का दावा है कि वही अपने भाई के सियासी उत्तराधिकारी हैं. खुद रामविलास पासवान ही उन्हें हाजीपुर से चुनाव लड़वाना चाहते रहे. बता दें कि चिराग पासवान ने दावा किया है कि उनकी बात बन चुकी है और तय हो चुका है कि एनडीए की ओर से लोजपा(रामविलास) का उम्मीदवार ही हाजीपुर से चुनाव लड़ेगा.
Published By: Thakur Shaktilochan