पटना: बिहार में आज से आखिरकार जातिगत जनगणना का काम शुरू हो गया है. जातिगत जनगणना का काम दो चरणों में पूरा होगा. पहले चरण में घरों की गिनती की जाएगी. जबकि दूसरे चरण में जातियों को गिनने का काम किया जाएगा. जातिगत जन गणना को लेकर बिहार में सियासी उठापटक भी शुरू हो चुकी है. जातीय पहचान के लिए बदनाम रहे बिहार में इस मुद्दे को लेकर सभी जातियों में उथल-पुथल तेज हो गई है.
बिहार में जातिगत जन गणना को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी ‘समाधान यात्रा’ के दौरान शुक्रवार को शिवहर में कहा कि इस जनगणना के दौरान केवल जातियों की गणना नहीं, बल्कि राज्य के हर परिवार के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी. उससे देश के विकास और समाज के उत्थान में बहुत फ़ायदा होगा.
वहीं, उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि जाति गणना का काम पूरा होने के बाद लोगों की आर्थिक स्थिति की जानकारी मिलने से उनके विकास के लिए योजनाएं शुरू करने में मदद मिलेगी और इससे लोगों को फायदा मिलेगा तथा क्षेत्र का विकास होगा. उन्होंने कहा कि सिर्फ जाति की गणना नहीं हो रही है, लोगों की आर्थिक स्थिति का सर्वेक्षण भी किया जाएगा. जाति गणना होने के बाद इसकी जानकारी केंद्र सरकार को भेजा जाएगा. इससे देश के विकास और समाज के हर तबके के उत्थान में काफी मदद मिलेगी.
बिहार की राजनीति जातिगत आधारित है. यहां सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष यानी बीजेपी तक पिछड़ों-अति पिछड़ों पर अपनी राजनीति को केंद्रित कर रही है. यही वजह है कि बीते साल सम्राट अशोक की जाति कुशवाहा बताते हुए बीजेपी ने पहली बार पार्टी के स्तर पर अशोक जयंती मनाई. वहीं, दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने राजद को ‘ए टू ज़ेड’ लोगों की पार्टी बताया था.
बता दें कि नीतीश सरकार बीते चार साल से अधिक समय से जातिगत जनगणना को लेकर प्रयास कर रही थी. बिहार विधानमंडल में इसके पक्ष में फ़रवरी 2019 और 2020 में एक प्रस्ताव पारित हुआ था. हालांकि, केंद्र इसके खिलाफ थी. अब जब नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना कराने की ओर एक और क़दम बढ़ा दिया है, तब यह देखना होगा कि यह काम कब तक ठोस आकार ले लेता है और इसके नतीज़े राज्य की राजनीति पर कैसा असर डाल पाते हैं?
जातिगत जन गणना को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर साफ कर दिया था कि जातिगत जनगणना नहीं कराई जाएगी. केंद्र का कहना था कि ओबीसी जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है. लेकिन अब सभी समस्याओं से पड़े नीतीश सरकार जातिगत जनगणना कराने जा रही है. राज्य सरकार ने इसकी जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग को दी गई है.
जानकारी के मुताबिक नीतीश सरकार जातिगत जनगणना के सर्वे पर 500 करोड़ रुपये खर्च करने जा रही है. हालांकि ये खर्च अनुमानित है. खर्च कंटेनजेंसी फंड से किया जाएगा. जातिगत गणना को लेकर सराकार का पक्ष है कि जाति आधारित गणना से समाज के सभी वर्गों को लाभ होगा और इस कवायद का उद्देश्य वंचित लोगों के लिए विकास कार्य करने का है.
राजनीति के जानकार बताते है कि 1990 के दशक में मंडल आयोग के बाद जिन क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ, उसमें लालू यादव की RJD से लेकर नीतीश कुमार की JDU व अन्य पार्टियां शामिल है. यहां की राजनीति ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. बीजेपी से लेकर तमाम पार्टियां ओबीसी को ध्यान में रखकर ही सियासत कर रहीं हैं. ओबीसी वर्ग को लगता है कि उनका दायरा बढ़ा है. ऐसे में अगर जातिगत जनगणना होती है, तो आरक्षण की 50% की सीमा टूट सकती है. जिसका फायदा ओबीसी जाति के लोगों को होगा.
बिहार में जाति गत जनगणना को लेकर कर्नाटक मॉडल का जिक्र सामने आ रहा है. बताते चलें कि बिहार से पूर्व कर्नाटक में जातिगत जनगणना कराई जा चुकी है. लेकिन अहम बात यह कि गणना के डाटा का आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया. कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने राज्य में जातीय जनगणना करायी थी. गणना में उस दौरान कुल 162 करोड़ रुपये खर्च किये गये थे. राजनीति के जानकार बताते हैं कि संभव हो कि जाति गत गणना से बिहार को लाभ मिले. लेकिन यह संभवाना भी बनती है कि अगर इसका रिपोर्ट सार्वजनिक किया गया तो, राज्य में जाति द्वंद बढ़ेगी.