बारिश से धोखा खाकर भी भागलपुर में लहलहाया मक्का, जानें क्या है धान का हाल

बादल उमड़ते रहे, घुमड़ते रहे. किसान इस धोखे में रह गये कि बारिश अच्छी होगी, लेकिन जरूरत के समय बारिश की लगातार झमाझम बूंदों का इंतजार लगा ही रह गया. इसका सबसे बुरा असर जिले के किसानों पर पड़ा है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 21, 2022 10:03 AM

भागलपुर. बादल उमड़ते रहे, घुमड़ते रहे. किसान इस धोखे में रह गये कि बारिश अच्छी होगी, लेकिन जरूरत के समय बारिश की लगातार झमाझम बूंदों का इंतजार लगा ही रह गया. इसका सबसे बुरा असर जिले के किसानों पर पड़ा है. हालांकि मक्के के किसानों को बहुत परेशानी नहीं झेलनी पड़ी, पर खासकर धान के किसानों को मॉनसून ने मायूस कर दिया. खरीफ की चार फसलों में धान, मक्का, दलहन व तेलहन की करीब 30 फीसदी खेत अभी भी सूने पड़े है. यह आंकड़ा गत 18 अगस्त तक की है.

अगस्त में हुई सिर्फ 38.85 मिमी बारिश

बारिश की स्थिति पर गौर करें, तो 18 अगस्त तक 162.15 मिली मीटर बारिश सामान्य रूप से हो जाना चाहिए था, लेकिन सिर्फ 38.85 मिमी बारिश ही हुई. जुलाई में भी बारिश महज 69.12 मिमी ही बरस कर रह गयी. इससे पहले के वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें, तो 162.15 मिली सामान्य वर्षापात के मुकाबले अगस्त 2018 में 270.60, अगस्त 2019 में 123.58, अगस्त 2020 में 167.07 और अगस्त 2021 में 159.24 मिमी वर्षा हुई थी.

खरीफ फसल की स्थिति

फसल लक्ष्य उपलब्धि प्रतिशत

  • धान 52000 19406 37.32

  • मक्का 44000 44229 100.52

  • दलहन 8375 7625 91.04

  • तेलहन 325 295 90.77

(आंकड़े का स्रोत : जिला कृषि कार्यालय)

बोले एक्सपर्ट : क्या वजह रही कम बारिश की

बिहार कृषि विश्वविद्यालय के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा के नोडल पदाधिकारी डॉ सुनील कुमार बताते हैं कि मॉनसून दो ब्रांच में बंट कर आता है. अरबियन सागर व बंगाल की खाड़ी. बिहार में बंगाल की खाड़ी से मॉनसून का प्रवेश होता है, लेकिन इस बार बंगाल की खड़ी वाला ब्रांच एक्टिव नहीं रहा. बादल का ट्रैक साउथ की तरफ शिफ्ट हो गया. इसे बिहार और यूपी होकर गुजरना था, पर झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश व राजस्थान होकर गुजर गया. उधर तो अच्छी बारिश हुई, लेकिन बिहार और पूर्वी यूपी में स्थिति ठीक नहीं रही.

किसानों को बीएयू ने दी सलाह

  • जहां भी संभव हो कम अवधि वाले चावल की किस्मों का चयन करें.

  • जहां सीमित वर्षा के कारण खेत में नमी होती है, वहां चावल की किस्मों (80 से 90 दिनों की अवधि) की सीधी बुवाई मध्य भूमि में की जा सकती है.

  • उच्च भूमि की स्थिति में, धान की वैकल्पिक फसलें बाजरा, मक्का, तिल, मूंग, उड़द आदि उगायी जा सकती है.

  • नाइट्रोजन, फाॅसफोरस, पोटाश उर्वरकों की अनुशंसित मात्राओं का प्रयोग सुनिश्चित करें.

  • सूखे के दौरान और बारिश के तुरंत बाद फसलों को फिर से जीवंत करने के लिए एक से तीन प्रतिशत यूरिया, दो प्रतिशत डीएपी, दो प्रतिशत 13:0:45 या दो प्रतिशत 19:19:19 घोल का छिड़काव रुक रुक कर करें.

  • फसल वृद्धि के महत्वपूर्ण चरणों में जीवन रक्षक सिंचाई करें, यदि संभव हो तो स्प्रिंकलर या ड्रिप प्रणाली के माध्यम से सिंचाई करें.

  • सब्जियों के मामले में लोबिया को वर्षा आधारित परिस्थितियों में उगाया जा सकता है.

  • मौसम आधारित बीमा सहित फसल बीमा की सुविधा का लाभ उठायें.

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