पटना. पटना शहर में बीते तीन महीने के अंदर 67 ऐसे लोग हैं, जिनपर कोविड का दोबारा हमला हुआ है. यह पहली और दूसरी दोनों लहर में संक्रमित हुए. यानी किसी भी लहर में यह कोविड से बच नहीं पाये. अच्छी बात यह है कि इनकी संख्या अधिक नहीं है. इन लोगों में कुछ संक्रमित बिहार के अलग-अलग जिलों के निवासी हैं, जो शहर में किराये के मकान में रहते हैं. ऐसे लोगों को डॉक्टर हेल्दी व पौष्टिक खाना खाने व कोविड गाइड लाइन का पालन करते हुए सावधान रहने की सलाह दी है.
माना जाता है कि एक बार संक्रमित होने के बाद एंटीबाडी विकसित हो जाती है. उसे जल्द ही दोबारा संक्रमण लगने की आशंकाएं बेहद कम रहती हैं. एंटीबाडी बेहद मजबूती से करीब छह महीने तक बचाव करती हैं. जबकि मरीज की परिस्थितियों के मुताबिक यह अधिक समय तक भी काम कर सकती हैं. अधिकतम नौ महीने तक इससे बचाव हो सकता है. पटना जिले में करीब दूसरी लहर में करीब दो लाख लोग संक्रमित हुए थे. इनका पता करीब सात लाख से अधिक जांच नमूनों के बाद चलता था.
हर संक्रमित में एक जैसी एंटीबाडी विकसित नहीं होती है. विशेषज्ञ डॉक्टरों के मुताबिक अब तक की गयी जांच में पता चला है कि एक से दो हजार एंटीबाडी बनने पर लगभग तीन महीने तक असर रहता है. जबकि पांच से छह हजार या अधिक एंटीबाडी बनने पर यह पांच से छह महीने चल सकती है. यह मरीजों की परिस्थितियों पर निर्भर करती है. किसी में पहले ही पर्याप्त एंटीबाडी होती है.
सिविल सर्जन डॉ विभा कुमारी ने बताया कि अब तक अध्ययनों में सामने आया है कि सिर्फ संक्रमित होने के बाद शक्तिशाली एंटीबाडी नहीं बनती हैं. संक्रमित होने के बाद वैक्सीनेशन कराने वालों में 25000 तक एंटीबाडी बनी हैं. जबकि नान कोविड लोगों में सिर्फ वैक्सीनेशन के बाद दो हजार एंटीबाडी ही विकसित हो पायी है. यानी नान कोविड लोगों की अपेक्षा संक्रमित होने के बाद टीका लगने पर सबसे अच्छी एंटीबाडी बनती हैं.
पटना एम्स के कोरोना वार्ड के नोडल पदाधिकारी डॉ संजीव कुमार ने बताया कि एंटीबाडी किसी भी तरह कोविड से पूरा बचाव नहीं है. सिर्फ एक बार संक्रमित होने के बाद कोविड से बचाव के लिए एंटीबाडी बन जाएं, यह मुमकिन नहीं है. टीकाकरण व कोविड गाइड लाइन का पालन ही अभी एक मात्र बचाव हैै, लेकिन इसके बाद भी पूरी तरह से सावधान रहना होगा.
Posted by Ashish Jha