आनंद तिवारी, पटना. इस बार कोरोना का संक्रमण सीधे फेफड़ों और सांस की नलियों पर अटैक कर रहा है. इससे फेफड़े डैमेज हो रहे हैं. कोरोना डायरिया व निमोनिया के मरीजों की मौत का कारण बन रहा है. कोरोना का संक्रमण उन लोगों को जल्दी हो रहा है, जो पहले सांस, फेफड़े व डायरिया, निमोनिया के शिकार हैं.
डॉक्टरों के मुताबिक यह बीमारियां फेफड़े से जुड़ी होती हैं. इसमें फेफड़े में इन्फेक्शन हो जाने से ब्लड में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. बीमारी बढ़ने पर सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. पीएमसीएच, एनएमसीएच व एम्स अस्पताल में आने वाले कोविड के मरीजों की जांच के बाद यह खुलासा हुआ है. हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि यह परेशानी कम इम्युनिटी वाले मरीजों में ही सबसे अधिक देखने को मिल रही है.
कोरोना की नयी लहर से डॉक्टर भी हैरान हैं. एम्स व पीएमसीएच में सीटी स्कैन व एक्स-रे रिपोर्ट के बाद डॉक्टरों ने कई तरह के खुलासे किये हैं. बताया जा रहा है कि रिपोर्ट में संक्रमित युवाओं के फेफड़ों की कोशिकाओं की हालत 70 साल के संक्रमित बुजुर्ग जैसी मिल रही है. डॉक्टरों का कहना है कि सबसे अधिक संक्रमण युवाओं में हो रहा है और युवा ही सबसे अधिक गंभीर होकर अस्पताल पहुंच रहे हैं.
वायरस महज तीन दिन के अंदर ही फेफड़ों पर असर दिखाने लगता है. अधिकतर मरीजों के फेफड़ों की कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं. पहली मार्च से अब तक एम्स में करीब 10 लोगों की मौत कोरोना से हो चुकी है. एम्स के कोविड वार्ड के नोडल पदाधिकारी डॉ संजीव कुमार ने बताया कि मार्च महीने में कुछ ऐसे भी लोगों की कोरोना से मौत हुई है, जिनकी उम्र 45 से 60 साल के बीच की थी.
कम इम्युनिटी वाले मरीज जल्दी गंभीर हो जा रहे हैं. युवाओं का भी ऑक्सीजन लेवल 50 तक पहुंच जा रहा है. भर्ती होने वाले 80% मरीज 70 से 80% ऑक्सीजन लेवल वाले हैं. पीएमसीएच के प्रिंसिपल ने बताया कि पीएमसीएच में कुछ ऐसे मरीज आये हैं जो एक दो दिनों में ही गंभीर हो गये.
पीएमसीएच के छाती रोग विशेषज्ञ डॉ सुभाष चंद्र झा का कहना है कि कोरोना का डंक फेफड़ों पर पड़ रहा है, जिससे फेफड़े डैमेज हो रहे हैं. सांस की नलियों के ऊपरी हिस्से में भी सूजन देखने को मिल रही है. पिछले साल सीवियर एक्यूट रिस्पाइरेटरी इन्फेक्शन (सारी) की तीव्रता बुजुर्गों में अधिक थी.
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संक्रमण के तीन दिन के अंदर फेफड़ों की कोशिकाएं सिकुड़ रहीं
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सीवियर एक्यूट रेस्पाइरेटरी इन्फेक्शन की तीव्रता हो जाती है घातक
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बीते साल संक्रमित युवाओं में इन्फेक्शन वाले मरीजों की संख्या कम थी
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इस बार 80 से नीचे ऑक्सीजन लेवल में ही जान खतरे में पड़ रही
Posted by Ashish Jha