पटना. कोरोना ने इन दिनों राजधानी के अस्पतालों में लेप्रोस्कोपिक और एंडोस्कोपिक सर्जरी की रफ्तार पर लगाम लगा दी है़ लेप्रोस्कापिक सर्जरी में गैस के निष्कासन (एरोसोल्स) के कारण कोरोना का खतरा होने से बहुत आवश्यकता होने पर ही सर्जरी की जा रही है.
वहीं, एंडोस्कोपी को नाक व मुंह में डाल कर सर्जरी नहीं की जा रही है. कुछ प्राइवेट अस्पतालों में ओपन सर्जरी को वरीयता दी जा रही है. सर्जिकल एसोसिएशन ने इसके लिए गाइडलाइन भी जारी कर दी है. शहर के पीएमसीएच और आइजीआइएमएस मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में लेप्रोस्कोपिक व एंडोस्कोपिक सर्जरी बंद हो गयी है.
लेप्रोस्कोपिक व एंडोस्कोपिक सर्जरी ही दूरबीन से सर्जरी कहलाती है. लेप्रोस्कोपिक से पेट संबंधी रोगों में सर्जरी की जाती है. एंडोस्कोपिक से पेशाब संबंधी रोग, पथरी, दिमाग, रीढ़, पिट्यूरी ग्लैंड में ट्यूमर व अन्य न्यूरो से संबंधित सर्जरी की जाती है.
सर्जरी एसोसिएशन के सचिव व इंदिरा गांधी हृदय रोग संस्थान के कार्डियोलॉजिस्ट सर्जन डॉ अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी करने के दौरान पेट में गैस का दबाव बनता है, जिससे एरोसोल्स (गैस के बबल्स) निकलते हैं.
एरोसोल तेजी से ऊपर की ओर आते हैं. इससे सर्जन्स व ऑपरेशन थियेटर में मौजूद स्टाफ के संक्रमित होने का खतरा बना रहता है. इसी तरह से एंडोस्कोपिक सर्जरी में नाक से दूरबीन डाल कर दिमाग की सर्जरी की जाती है. इससे कोरोना के संक्रमण की आशंका रहती है, क्योंकि कोरोना का संक्रमण नाक व मुंह से ही होता है.
मरीज की सर्जरी करने के पहले आवश्यकता पड़ने पर कोरोना का टेस्ट किया जाता है. यदि मरीज कोरोना पॉजिटिव है तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती. लेकिन कुछ मरीजों में वायरस होने पर भी कोरोना के लक्षण दिखाई नहीं देते. इससे यदि सर्जरी की जाती है, तो सर्जन्स, स्टाफ व मरीज को खतरा बना रहता है.
Posted by Ashish Jha