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Corona Impact : दिल्ली में फैक्टरी मालिक ने हाथ खड़े किये तो बिहार लौटने के लिए गिरवी रखना पड़ा पत्नी का मंगलसूत्र

सबकी अलग-अलग पीड़ा है. कोई कार से, तो कोई टेंपो रिजर्व कर घर के लिए निकल पड़ा. एक अनुमान के मुताबिक पिछले 24 घंटे में 600 से अधिक बसें, चार हजार से अधिक कारें, टेंपो व अन्य वाहनों से लोग जान जोखिम में डालकर पलायन करने लगे हैं.

अवधेश कुमार राजन, गोपालगंज. गुरुग्राम में जींस कंपनी में काम करने वाले दरभंगा के लहरियासराय के श्रवण कुमार को जब पता चला कि सोमवार की रात से लॉकउाउन लग गया है, तो उन्हाेंने अपनी कंपनी के मालिक से बात की. कंपनी मालिक ने तत्काल भुगतान दे पाने में असमर्थतता जतायी. श्रवण किराये के कमरे पर आया. कुछ नहीं समझ आया तो पत्नी का मंगलसूत्र गिरवी रखकर आठ हजार रुपये लिये और आनंद बिहार बसअड्डा पहुंच गया.

दरभंगा जाने के लिए बस में मारामारी जैसी स्थिति थी. किसी तरह बच्चों को गोद में लेकर बैठे और घर चल दिये. मंगलवार की सुबह बंजारी चौक पर चाय पीने के लिए उतरा श्रवण अपनी पीड़ा बता कर रो पड़ा. दिल्ली में लॉकडाउन लगने के साथ ही बिहार के लोगों में घर लौटने की होड़-सी मच गयी. पिछले वर्ष की तरह स्थिति न उत्पन्न हो जाये, इस भय से लोग घर की ओर चल दिये हैं. जिसे जो गाड़ी मिली, उसी से घर चल दिया.

सबकी अलग-अलग पीड़ा है. कोई कार से, तो कोई टेंपो रिजर्व कर घर के लिए निकल पड़ा. एक अनुमान के मुताबिक पिछले 24 घंटे में 600 से अधिक बसें, चार हजार से अधिक कारें, टेंपो व अन्य वाहनों से लोग जान जोखिम में डालकर पलायन करने लगे हैं. ट्रेनों में कन्फर्म टिकट नहीं मिल रहा, तो लोग बस, टेंपो और निजी साधनों से घर के लिए निकल जा रहे हैं. किराये की व्यवस्था नहीं हो पा रही है तो अपना सामान गिरवी रखने में भी गुरेज नहीं कर रहे.

मुंबई में कल-कारखाने हो रहे हैं बंद

सीतामढ़ी के रहने वाले मोनू चौधरी, सुरेश सहनी और उसके साथियों के चेहरे गोपालगंज के बंजारी में उतरते ही खिल उठे थे. बातचीत में बताया कि मुंबई में तेजी से हालात खराब हो रहे हैं. कल-कारखाने बंद हो रहे हैं. पैंट की फैक्टरी भी अचानक बंद हो गयी. तीन दिनों से प्रयास कर रहे थे, लेकिन ट्रेन में कन्फर्म टिकट नहीं मिल रहा था. साथियों के पास ज्यादा पैसे नहीं थे. फैक्टरी मालिक ने भी हाथ खड़े कर दिये.

रोजी के बाद रोटी के लाले पड़ने लगे. ऐसे में सब्जी बचने वाले दो साथियों ने अपना ठेला गिरवी रख दिया. स्पेशल ट्रेन से गोरखपुर आये. वहां से धक्का खाते यहां तक पहुंचे हैं. अब लग रहा है घर पहुंच जायेंगे. मोनू और सुरेश ही नहीं, हजारों कामगार अब किसी तरह अपने घर पहुंचना चाहते हैं.

1500 के बदले बस वाले ले रहे आठ से 10 हजार

मशरक के आस मोहम्मद अंसारी व अमारूल्लाह हक ने बताया कि एसी बसों में गोपालगंज से दिल्ली का भाड़ा 15 सौ से दो हजार लगता था. पर भीड़ देखकर हुए एक सीट के लिए आठ से 10 हजार रुपये ले रहे हैं. लोग किराया नहीं पूछ रहे, जो मांगा, वही देकर घर लौटना चाह रहे हैं.

अब अपने गांव में ही करेंगे काम-धंधा

दिल्ली में सीमित अवधि के लिए लॉकडाउन लगने के बाद प्रवासियों का अपने घर वापस लौटने का सिलसिला बढ़ने लगा है. बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों की भीड़ छपरा जंक्शन पर भीड़ देखने को मिल रही है. वैशाली सुपर फास्ट स्पेशल ट्रेन गाजियाबाद से आ रहे अमनौर निवासी राजू महतो ने बताया कि हमलोग वहां पर होटलों में टाइल्स लगाने का काम करते हैं, जो पूरी तरह से बंद हो गया है.

वहीं, नगरा निवासी मोहम्मद सिराजुद्दीन ने बताया कि मैं वहां पर ऑटो चालक हूं. दिल्ली बंद होने से न ही लोग बाहर आयेंगे और न ही कमाई होगी. अब अपने घर आकर खेती पर ध्यान दूंगा, तो एक साल के खाने की कोई चिंता नहीं होगी. वापस आ रहे अधिकतर मजदूरों ने बताया कि हमलोग अब पुनः प्रयास कर रहे हैं कि अपने गांव पर ही रहकर अपने परिवार के साथ कोई काम-धंधा कर जीवनयापन करें.

Posted by Ashish Jha

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