सुमित कुमार, पटना. समूची दुनिया कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से आक्रांत है. यह खतरनाक वायरस हर दिन किसी-न-किसी हमारे अपने, रिश्तेदारों, परिचितों की जान ले रहा है. सूबे में अभी हर दिन 12 हजार से अधिक लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं. इनमें सर्वाधिक 15 से 20% तक पटना जिले के लोग हैं. इसके चलते स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव काफी बढ़ गया है, जिसका धंधेबाज खूब लाभ उठा रहे हैं.
वे बाजार में मेडिकल उपकरण व दवाओं की मनमानी कीमतें वसूल रहे हैं़ मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए निजी एंबुलेंस वाले कई गुना अिधक किराया ले रहे हैं. यही नहीं, फल व किराना सामान के दाम भी अचानक से काफी बढ़ गये हैं. आपदा के इस मौके पर भी कुछ लोग मानवता दिखाने के बजाय इसे कमाई का अवसर मानते हुए कालाबाजारी में जुटे हैं.
कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने से सरकारी या निजी अस्पताल में बेड मिलना काफी मुश्किल हो गया है. ऐसे वक्त निजी अस्पताल मनमाना शुल्क वसूलने से पीछे नहीं हट रहे. पहले तो बेड नहीं होने का बहाना बनाया जाता है. फिर एडवांस के तौर पर 50 से 80 हजार रुपये तक मांगे जाते हैं. ऐसे में निम्न व मध्यम आय वर्ग के मरीजों के सामने घर पर ही इलाज कराने के सिवाय कोई उपाय नहीं दिखता. राज्य सरकार द्वारा निजी अस्पतालों के लिए इलाज का शुल्क निर्धारित किये जाने के बावजूद इलाज व दवा के नाम पर अधिक पैसे वसूले जाने की शिकायतें लगातार मिल रही हैं.
बढ़ते मामलों की वजह से मार्केट में जरूरी दवाओं और उपकरणों की किल्लत भी देखी जा रही है. इसकी वजह दलाल किस्म के लोगों द्वारा दवाएं स्टॉक किया जाना और लोगों में पैनिक खरीदारी बतायी जाती है.
रिटेल व होलसेल काउंटर पर परासिटामॉल, विटामिन सी, जिंक, आइवरमेक्टिन व मल्टीविटामिन की मांग 40 प्रतिशत तक अधिक है. इनके दाम में भी पिछले साल के मुकाबले से 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़े हैं. यही नहीं, पल्स ऑक्सीमीटर, नेबुलाइजर व पॉर्टेबल ऑक्सीजन सिलिंडर की मांग भी कई गुना बढ़ने से ये बाजार से गायब हो गये हैं. कालाबाजारी करने वाले लोग कई गुना अधिक कीमतों पर ये उपकरण उपलब्ध करा रहे हैं.
एनएमसीएच व एम्स सहित कई मेडिकल कॉलेजों ने भले ही रेमडेसिविर इंजेक्शन की अनुपयोगिता को देखते हुए इसको इस्तेमाल पर रोक लगा दी हो, लेकिन निजी अस्पतालों में धड़ल्ले से यह लिखा जा रहा है.
ड्रग विभाग द्वारा इसकी सीधे अस्पताल में सप्लाइ होने के बावजूद निजी अस्पताल पुर्जे पर लिख कर मरीज के परिजनों को यह इंजेक्शन लाने को कह रहे हैं. उन्हीं अस्पतालों के पास दलाल किस्म के लोग 10 गुनी से अधिक कीमत पर यह इंजेक्शन परिजनों को उपलब्ध करा दे रहे हैं. दलालों की मानें तो कई निजी अस्पताल ही मरीजों को इंजेक्शन न देकर दलालों के माध्यम से इसे परिजनों को लेने के लिए उकसाया जाता है. इसमें अस्पताल के पदाधिकारी से लेकर दलालों का हिस्सा बंधा रहता है.
यह सब ड्रग विभाग के पदाधिकारियों की जानकारी में होता है. इसी तरह, प्लाज्मा उपलब्ध कराने के नाम पर भी जरूरतमंद परिजनों से हजारों रुपये की वसूली का खेल कई अस्प्तालों में चल रहा है.
िनजी एंबुलेंस चालक भी कोरोना मरीज और उनके परिजनों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए अधिक पैसे वसूल रहे हैं. इतना ही नहीं, श्मशान घाट पर भी दाह संस्कार के लिए मनमाना शुल्क लिया जा रहा है. लकड़ी व पूजन सामग्री से लेकर जल्द दाह संस्कार तक के लिए दो से पांच हजार रुपये तक लिये जा रहे हैं.
सबसे बड़ी बात है कि सभी जगह मजिस्ट्रेट व अफसरों की तैनाती की गयी है, पर संक्रमण के भय व बड़ी संख्या में संक्रमित अधिकारियों के चलते कोई मौजूद नहीं होते. कालाबाजारी के शिकार होने के बाद लोग चाह कर भी इसकी शिकायत तक नहीं कर पाते.
कोरोना मरीजों की संख्या के मुकाबले ऑक्सीजन, आइसीयू व वेंटिलेटर वाले बेड की काफी कमी है. ऐसे में लोग घर पर ही ऑक्सीजन सिलिंडर लाकर रखने लगे हैं. मगर अचानक मांग बढ़ने से अस्पतालों को ही ऑक्सीजन मुहैया कराने में प्रशासन को भारी परेशानी हो रही है.
ऐसे में होम आइसोलेशन के मरीज मनमाना शुल्क देकर पहले सिलिंडर खरीद रहे हैं और फिर उसकी रिफलिंग के लिए परेशान हो रहे हैं. इसके लिए उनसे दलाल किस्म के लोग मनमाना शुल्क वसूल रहे हैं. हालांकि, मानवता को देखते हुए कई लोग व संस्थाएं आम लोगों को नि:शुल्क ऑक्सीजन मुहैया कराने का प्रयास भी कर रही हैं.
Posted by Ashish Jha