नौ वर्षीय कुशल और 10 वर्षीया प्रीति (बदला नाम) पहली बार मदद के लिए सेव द चिल्ड्रन के पास पहुंचे, जब उनकी मां को बुखार होने लगा और उन्हें कोविड-19 का पता चला. एक स्थानीय क्लिनिक में भर्ती होने और ऑक्सीजन की सेवा मिलने के बावजूद उनका निधन हो गया. दोनों बच्चों ने बताया कि रीति रिवाजों के कारण हम लोगों को उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं होने दिया गया. उनके पिता काम पर रहते हुए उनकी देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं और बच्चों को देखभाल और सहायता की आवश्यकता है.
कोरोना वायरस से प्रभावित कुशल और प्रीती सिर्फ एक परिवार का बच्चा नहीं है. बिहार सरकार की मानें तो राज्य 48 ऐसे बच्चे हैं, जिसका माता-पिता का कोरोना की वजह से निधन हो गया है. वहीं 1486 बच्चें ऐसे हैं, कोरोना में जिनका या तो माता या पिता का देहांत हो चुका है. भारत सरकार की आंकड़े तो और भी डरावने हैं.
सेव द चिल्ड्रन नामक भारत में कोविड -19 से माता-पिता को खोने वाले बच्चों की बढ़ती संख्या के बारे मेें उनकी संंस्था गंभीर रूप से चिंतित है. अनाथ बच्चों को गोद लेने की कई दलीलें सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रही हैं, जिससे वे तस्करी और दुर्व्यवहार की चपेट में आ गए हैं. ये दलीलें अपने भाग्य के लिए छोड़े गए छोटे बच्चों की दर्दनाक वास्तविकताओं की ओर इशारा करती हैं. वास्तव में ऐसे अनाथ बच्चे पहले से कहीं अधिक संवेदनशील होते हैं.
इधर, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामे के जरिये ऐसे बच्चों की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए छह सूत्रीय योजनाओं को साझा किया है, जिन्होंने महामारी में अपने एक या दोनों माता-पिता को खो दिया. उसी हलफनामे के अनुसार, 9,346 प्रभावित बच्चों का आंकड़ा नव निर्मित बाल स्वराज पोर्टल पर अपलोड किया गया है, जिसमें 1,742 बच्चों का आंकड़ा शामिल है, जिन्होंने माता-पिता दोनों को खो दिया. 7,464 बच्चे अब एकल-माता-पिता के घर में, जबकि 140 बच्चों को अनाथ स्थिति में छोड़ दिया गया है. यह आंकड़ा मार्च 2020 से 29 मई 2021 के बीच का है.
बिहार समाज कल्याण विभाग के अनुसार, राज्य में 48 बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है, जबकि 1,486 बच्चों ने अपने माता-पिता में से एक को खो दिया है. यह एक नजारा है जो स्थिति की गंभीरता को दिखा रहा है. एनसीपीसीआर का आंकड़ा सरकार के समक्ष कार्य की विशालता को प्रकट करता है. हम सुरक्षित रूप से अनुमान लगा सकते हैं कि हजारों छोटे बच्चों ने एक या अधिक देखभाल करने वालों को खो दिया है, और शेष परिवार के सदस्य उन्हें लेने के लिए तैयार या सक्षम नहीं हो सकते हैं, क्योंकि वास्तव में कई माता-पिता ने कोरोना जांच किये बिना भी अपनी जान गंवा दी होगी जिससे इस महामारी ने भारत के ग्रामीण इलाकों को प्रभावित किया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड -19 महामारी में अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चों का समर्थन करने के लिए पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रेन योजना को रोल-आउट करने की घोषणा की है. केंद्र सरकार ने उन बच्चों के लिए सलाह और दिशानिर्देश जारी किए हैं, जो माता-पिता या देखभाल करने वालों के बिना हैं और अधिनियम के अनुसार देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों के रूप में परिभाषित हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने महामारी के कारण अनाथ और परित्यक्त बच्चों की दुर्दशा का भी संज्ञान लिया है. अदालत ने जिलाधिकारियों को ऐसे बच्चों की जिम्मेदारी लेने और उनकी भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य और शिक्षा की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का निर्देश दिया है. अदालत ने अधिकारियों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा स्थापित ‘बाल स्वराज‘ पोर्टलष् पर मार्च 2020 से प्रभावित बच्चों की संख्या पर डेटा अपलोड करने का भी निर्देश दिया है.
इन अनाथ बच्चों पर लगातार कुपोषण, सुरक्षा और सीखने की नियमितता अवरोध हो रही है. अगर वक्त रहते इन बच्चों की देखभाल के लिए उचित कदम नहीं उठाया गया तो, अनाथ बच्चों पर बड़ा असर हो सकता है.
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लेखक:
राफे एजाज हुसैन
सौमी गुहा हलदार