बिहार में शादी के बाद रजिस्ट्रेशन को जरूरी नहीं समझ रहे दंपती, जानिये इस दस्तावेज के क्या हैं फायदे
हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह के लिए पक्षों को, उस मैरिज रजिस्ट्रेशन (जिला अवर निबंधक, सहायक अवर निबंधक) में जहां, पति-पत्नी में से कोई एक छह माह से रह रहा हो, आवेदन करना होता है.
गोपालगंज. सासामुसा के लतीफ खां सउदी में रहते हैं. पिछले वर्ष शादी की. शादी के बाद अपनी पत्नी को विदेश ले जाने की योजना बनायी. वीजा के लिए अप्लाइ किया, तो विदेश विभाग ने मैरिज सर्टिफिकेट मांगा. मैरिज सर्टिफिकेट के चक्कर में लेट होने लगा. उनको पत्नी को छोड़कर जाना पड़ा. इस बीच लॉकडाउन लगा और विदेशों की उड़ान बंद हो गयी. पत्नी विदेश नहीं जा सकी. उनके सारे सपनों पर पानी फिर गया.
अकेले लतीफ ही नहीं, बल्कि उनके जैसे सैकड़ों लोगों को परेशानी हो रही है. इसके बाद भी वे पूरी शान-ओ-शौकत से अपनी शादी तो कर रहे हैं पर उसका रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी नहीं समझ रहे. कई अधिकारों को प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि मैरिज सर्टिफिकेट बना हो.
शादी के बाद चाहे संयुक्त बैंक खाता खुलवाना हो या स्पाउस वीजा चाहिए, वहां आपको विवाह पंजीकरण का प्रमाण पत्र दिखाना होगा. आप शादी के बाद चूके नहीं, शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए तत्काल आवेदन करें. आपके विवाह का पंजीकरण प्रमाणपत्र आपको इन समस्याओं से निजात दिला सकता है. यह एक दस्तावेज आपको कई तरह के फायदे पहुंचा सकता है.
शादी के रजिस्टर्ड होने के फायदे
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– भारतीय कानून के अनुसार यह आपके विवाहित होने का कानूनी प्रमाण है.
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– अगर आप शादी के बाद अपना सरनेम नहीं बदलना चाहते, तब यही दस्तावेज आपको शादी से संबंधित सभी कानूनी फायदे पहुंचाने में सहायक होगा.
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– संयुक्त बैंक खाता और जीवन बीमा करवा सकते हैं.
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– राष्ट्रीयकृत बैंक में लोन लेने में सहायक.
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– अगर पति सरकारी नौकरी में हैं, तो सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधा का उपयोग कर सकती हैं.
पिछले पांच वर्षों में शादी का रजिस्ट्रेशन
वर्ष शादी
2016 72
2017 85
2018 105
2019 102
2020 096
2021 101
क्या है कानूनी ढांचा
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कानूनविद वेद प्रकाश तिवारी के अनुसार हिंदू विवाह अधिनियम (1955) या विशेष विवाह अधिनियम (1954), हिंदू विवाह के पक्ष अविवाहित या तलाकशुदा होने चाहिए या यदि पहले विवाह हो गया है, तो उस शादी के समय पहली पत्नी या पति जीवित नहीं होने चाहिए.
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विशेष विवाह अधिनियम, विवाह अधिकारी द्वारा विवाह संपन्न करने तथा पंजीकरण करने की व्यवस्था करता है. हिंदू विवाह अधिनियम केवल हिंदुओं के लिए लागू होता है.
कैसे प्राप्त करें विवाह प्रमाणपत्र
हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह के लिए पक्षों को, उस मैरिज रजिस्ट्रेशन (जिला अवर निबंधक, सहायक अवर निबंधक) में जहां, पति-पत्नी में से कोई एक छह माह से रह रहा हो, आवेदन करना होता है. दोनों पक्षों को पंजीकरण के एक माह बाद तीन गवाहों के साथ मजिस्ट्रेट (जिला अवर निबंधक, सहायक अवर निबंधक) के सामने उपस्थित होना होता है. उसके बाद रजिस्ट्रेशन सेंटर के बोर्ड पर इस शादी से संबंधित एक सूचना दी जाती है.
यदि इस शादी को लेकर कोई आपत्ति दर्ज नहीं करता है तो सूचना प्रकाशित होने के एक माह के बाद विवाह रजिस्टर्ड हो जाता है. यदि कोई आपत्ति प्राप्त की जाती है, तो विवाह अधिकारी अपनी जांच के बाद यह निर्णय लेता है कि यह शादी रजिस्टर हो सकती है या नहीं.
तलाक लेना हो जाता है आसान
तलाक के लिए अपील करने के लिए भी आपको विवाह पंजीकरण का सर्टिफिकेट दिखाना होगा. सिंगल मदर या तलाकशुदा के लिए नौकरी में आरक्षण का लाभ लेने के लिए तलाक का दस्तावेज दिखाना होता है. यहां तक कि गुजाराभत्ता के लिए भी आपको मैरेज सर्टिफिकेट दिखाना होगा.
ये दस्तावेज हैं जरूरी
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– दोनों द्वारा हस्ताक्षर किया हुआ आवेदन पत्र.
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– दोनों की जन्मतिथि का प्रमाणपत्र.
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– अगर शादी किसी धार्मिक स्थल पर हुई हो, तो वहां के पुरोहित या पंडित द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाणपत्र.
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– अगर अपना सरनेम बदलना चाहती हैं, तो 100 रुपये का नॉन-ज्यूडिशियल स्टांप पेपर.
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– 100 रुपये का नॉन-ज्यूडिशियल स्टांप पेपर पर पति-पत्नी द्वारा अलग-अलग एफिडेविट.
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– सभी दस्तावेजों को किसी गजटेड ऑफिसर से अटेस्ट करवाएं.