गया के तिलकुट का खस्तापन है मुख्य पहचान, जानें तिल उत्पादन में कितना आत्मनिर्भर है बिहार
गया के तिलकुट की सोंधी महक व खस्तापन इसकी मुख्य पहचान है. दिल्ली के बिहार भवन में भी इसकी दुकान है. दिसंबर से शुरू होकर जनवरी में मकर संक्रांति तक इसकी काफी मांग रहती है. बदलते समय के साथ अब इसकी ऑनलाइन बिक्री भी की जा रही. लोग इसे विदेशों तक अपने साथ ले जा रहे.
गया. मगध के धार्मिक शहर गया के तिलकुट का देश के कोने-कोने में नाम है. करीब एक महीने में यह कारोबार काफी फलता-फुलता है. यहां के तिलकुट की सोंधी महक व खस्तापन इसकी मुख्य पहचान है. दिल्ली के बिहार भवन में भी इसकी दुकान है. दिसंबर से शुरू होकर जनवरी में मकर संक्रांति तक इसकी काफी मांग रहती है. बदलते समय के साथ अब इसकी ऑनलाइन बिक्री भी की जा रही. लोग इसे विदेशों तक अपने साथ ले जा रहे. ऐसे में अब जरूरत है कि इस व्यवसाय को और सपोर्ट दिया जाये, ताकि इसे बनाने व बेचनेवालों को फायदा हो. कंचन, सुनील कुमार व विजय पांडेय की रिपोर्ट.
अब तिलकुट के लिए बाहरी तिल पर कम हुआ निर्भरता
पहले तिलकुट के लिए तिल दूसरे प्रांत से मंगाया जाता था. इस बार कृषि विभाग ने तिल की खेती को स्थानीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए किसानों को काफी प्रोत्साहित किया है. जिला कृषि पदाधिकारी अजय कुमार ने बताया कि वर्ष 2022-23 में तिल की बुआई का लक्ष्य 1001.40 हेक्टेयर के विपरीत 631.83 हेक्टेयर में हुआ. वर्ष 2023-24 में तिल की बुआई का लक्ष्य 2400 हेक्टेयर यानी जिले के सभी 24 प्रखंडों में प्रति प्रखंड 100 हेक्टेयर में रखा गया है. इससे पहले बड़े पैमाने पर तिल की खेती गया जिले में नहीं होती थी. अब इसकी उपज स्थानीय स्तर पर होने से व्यापारियों को तिल बाहर से मंगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे उन्हें बाहर की अपेक्षा कम कीमत पर यहां तिल उपलब्ध होगा और किसानों को उचित मूल्य मिल पायेगा.
डंगरा बाजार में तीन महीने चलता है यह कोरोबार
मोहनपुर प्रखंड मुख्यालय से तकरीबन सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित डंगरा बाजार की पहचान गुड़ से बनने वाले तिलकुट को लेकर है. जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर बिहार-झारखंड की सीमा पर स्थित डंगरा बाजार में तिलकुट कूटने का काम लगभग चार महीने चलता है. व्यवसाय से जुड़े लोगों ने बताया कि अक्तूबर या नवंबर महीने में छठ पर्व की समाप्ति के बाद इसका काम शुरू हो जाता है, जो फरवरी महीने तक चलता है. डंगरा बाजार में लगभग 30 जगहों पर तिलकुट कुटाई का काम किया जाता है. इसमें तीन से चार सौ तक कारीगर लगे रहते हैं. लगभग 17 से 18 घंटे तक कार्य नित्य चलता है और तब जाकर प्रतिदिन एक कारीगर के यहां तीन से चार सौ क्विंटल तिलकुट कूट कर निकलता है.
लगभग 80 वर्ष पुराना है डंगरा बाजार
बाजार में तिलकुट कूटने का काम लगभग 80 वर्ष पहले शुरू होने की बात स्थानीय लोगों द्वारा बतायी जाती है. शुरुआती दौर में यहां का तिलकुट जिले के विभिन्न इलाकों में जाता था. बाद के दिनों में डिमांड बढ़ने पर कई जिलों के अलावा पड़ोसी राज्य झारखंड,पश्चिम बंगाल, यूपी, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा व नयी दिल्ली सहित इूसरे देशों में भी जाने लगा. डंगरा बाजार के तिलकुट के खस्ता और स्वादिष्ट होने का सबसे अहम कारक यहां का पानी और जलवायु है. जानकारी के अनुसार, यहां के पानी में काफी विशेषता है और इस कारण ही तिलकुट काफी खस्ता बन जाता है. बाजार के कारोबारियों ने 10 से 20 किलोमीटर दूर जाकर भी धंधे को नये सिरे से करने की शुरू किया, मगर सफलता नहीं मिल पायी.
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टिकारी में हांडी में तिल की होती है भुनाई
टिकारी के मीठे (गुड़) के तिलकुट की सोंधी महक की ख्याति पूरे बिहार में ही नहीं बिहार से बाहर के प्रांत में भी फैली हुई है. यहां की मिट्टी में उपजने वाला गन्ना है. कुछ चुनिंदा गांव के ईख के रस से बने( गुड़) मीठा और उससे बनाये गये तिलकुट की एक अलग पहचान है. यहां गोटी की मिट्टी के हांडी में तिल डालकर भूना जाता है और कुछ समय के बाद उसके विशेषज्ञ कारीगर उसे चेक करते हैं और जब संतुष्ट हो जाते हैं, तो उसे बर्तन से बाहर निकाल पत्थर पर कूटते हैं. चंद मिनट में तिलकुट बनकर तैयार हो जाता है, जो खाने में काफी सोंधा, मुलायम एवं स्वादिष्ट लगता है. टिकारी के तिलकुट दूर से ही पहचान लिये जाते हैं, क्योंकि इस तरह की बनावट अन्य जगह देखने को नहीं मिलती है. जाड़े के दिनों में टिकारी से बाहर रहनेवालों के लिए इसे बहुमूल्य सौगात माना जाता है.
खस्ता व सोंधा होता है तिलकुट
टिकारी राज के जमाने से ही गुड़ अथवा चीनी तिलकुट बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ था. पुराने लोगों का कहना है कि टिकारी महाराज को गुड़ का तिलकुट काफी पसंद था और वह इसे बनाने वाले को काफी प्रोत्साहित भी किया करते थे. गुड़ के तिलकुट के स्वाद का राज अच्छे किस्म का तिल और स्थानीय क्षेत्र का बना हुआ गुड़ है. आज भी टिकारी शहर में कई फ्लेवर के तिलकुट बनाये जाते हैं. पपड़ी तिलकुट, खोवा तिलकुट, चीनी तिलकुट व गुड़ तिलकुट बाजार में मिलते हैं. टिकारी में बने गुड़ के तिलकुट की चर्चा विदेशों में भी हो रही है. सामाजिक कार्यकर्ता शशि कुमार प्रियदर्शी सहित अन्य लोगों ने बताया कि टिकारी के तिलकुट की ब्रांडिंग की जरूरत है. तभी यहां के कारीगरों को उनकी मेहनत का सही कीमत मिल पायेगा. यहां के किसानों को तिल की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है.