पतिव्रता हो स्त्री तो काल के गाल से भी लौट आते पति
दरभंगा : नवविवाहिताओं के लोक पर्व मधुश्रावणी को लेकर व्रतियों में उत्साह है. एक पक्ष तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. दूसरे दिन शनिवार को व्रतियों ने पारंपरिक तरीके से पूजा-अर्चना की. फूल लोढ़े. उल्लेखनीय है कि इस महापर्व के माध्यम से नवविवाहिताओं को जहां पतिव्रता धर्म के अनुपालन की शिक्षा […]
दरभंगा : नवविवाहिताओं के लोक पर्व मधुश्रावणी को लेकर व्रतियों में उत्साह है. एक पक्ष तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. दूसरे दिन शनिवार को व्रतियों ने पारंपरिक तरीके से पूजा-अर्चना की. फूल लोढ़े. उल्लेखनीय है कि इस महापर्व के माध्यम से नवविवाहिताओं को जहां पतिव्रता धर्म के अनुपालन की शिक्षा दी जाती है,
वहीं सुखद दांपत्य जीवन का पाठ भी पढ़ाया जाता है. इस कड़ी में दूसरे दिन महिला पुरोहित में नवविवाहिताओं को कथा के माध्यम से इसकी शिक्षा दी.शनिवार को विषहारा तथा मनसारा प्रसंग कथा का पाठ किया गया. भगवान शिव की पुत्री को केंद्र में रखकर बताए गए कथा के माध्यम से यह सीख दी देने की कोशिश की गई कि अगर विवाहिताएं पतिव्रता धर्म का अक्षरश: पालन करें, तो काल के मुंह से भी पति को सकुशल वापस ला सकती हैं.
महिला पुरोहित ने भगवान शिव की पुत्री के धरती पर आने तथा उनकी पूजा नहीं करने पर क्रोध में राजा को नाश करने के संकल्प को विस्तार से बताते हुए कहा कि राजा के पुत्र की आयु नहीं थी, बावजूद सदा सुहागन रहने वाली महिला से जब उसकी शादी की गई तो काल स्वरूपा विषहरा ने उसकी सतीत्व से प्रसन्न होकर पति को जीवन दान दे दिया. वह अक्षय अहिवाती रही.इससे पूर्व व्रत इन सर्वप्रथम बासी फूल से विधिवत पूजा-अर्चना की. गौरी तथा महादेव की आराधना करने के साथ ही मोना के पात पर उकेड़े गए विषहरा का पूजन किया. इसके पश्चात कथा श्रवण हुआ. प्रातः कालीन पूजन के दौरान आस-पास की महिलाएं बड़ी संख्या में मौजूद रहीं. पारंपरिक लोकगीतों का गायन होता रहा. माहौल भक्तिमय बना रहा.
इस पूजन के पश्चात दोपहर बाद संध्याकाल व्रतियां नए परिधान में साज-श्रृंगार कर सखियों संग निकली. फूल व पत्ते तोड़े. उसके बाद मंदिर परिसर में बैठकर उसे सजाया. इस दौरान मुहल्ले-टोले की व्रतियां निर्धारित मंदिर परिसर में एकत्र हुई. वहीं पर डाला सजाया. इसके पश्चात वापस घर लौटी.
हालांकि शहर में फूल-पत्तियों की के अभाव की वजह से फूल लोढ़ने की परंपरा का निर्वाह भर किया गया.
मधुश्रावणी के दूसरे दिन व्रतियों को कथा के माध्यम से दी गयी शिक्षा