अजीत कुमार, दरभंगाः अवस्था ने भले मजबूर कर दिया हो, लेकिन न तो उनके जोश में कमी आयी और न ही याददाश्त में. याददाश्त ऐसी पक्की की बीमारी के हालात में भी वह गर्व से बताते हैं कि आजादी की लड़ाई के दीवानों में जोश भरने के लिए एसेंबली में बम फेंका गया था. यह ऐसा दौर था जब इलाहाबाद में चंद्रशेखर आजाद को फांसी की सजा दी गयी थी.
इस घटना से समूचा युवा वर्ग उद्वेलित था. यह कहते वक्त उनकी आवाज थरथरा रही थी पर बीमार आंखों में गजब की चमक. मानो इस अवस्था में भी उन्हें गुलामी के दिनों की याद साल रही हो. वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी व आजाद हिंद फौज के प्रमुख सिपाही रहे हनुमाननगर प्रखंड के सिनुआरा निवासी गंगा प्रसाद सिंह ने शुक्रवार को यह वृतांत सुनाया. वह करीब एक माह से बीमार चल रहे हैं और इलाज के क्रम में बेंता स्थित गुप्ता रेस्ट हाउस में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं.
सामंती विचारधारा के रहे विरोधी
17 जनवरी 1914 में सिनुआरा निवासी विलट प्रसाद सिंह व माता जेवरती के किसान परिवार में जन्मे गंगा प्रसाद सिंह शुरू से ही सामंती विचारधारा के विरोधी रहे. प्रारंभिक शिक्षा मनीगाछी में हुई. हॉस्टल में अपना छात्र जीवन बिताने के बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में सीधे-सीधे जुड़ गए. उनको शहीदे आजम भगत सिंह, आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस सरीखे स्वतंत्रता के दीवानों का सानिध्य मिला तो वे जिले के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी की श्रेणी में खड़े हो गए. बकौल श्री सिंह भगत सिंह के करीबी रहे योगेंद्र शुक्ल व बैकुंठ शुक्ल के साथ 1938 में वे चंपारण के हरिनगर में गिरफ्तार किये गये. उनके साथ नरपतनगर निवासी महेश्वर सिंह, मो सादिक, चंदेश्वर सिह, श्याम नंदन सिंह ने भी चार माह तक जेल की हवा खाई. श्री सिंह ने बताया कि जब भगत सिंह को फांसी दी गई तब उन्होंने और मुखर होकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया. इसके बाद सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का वे हिस्सा बने. बाद में आजाद हिंद फौज में शामिल होकर जिले में युवाओं को एकत्र किया और संग्राम की बागडोर संभाली.
रेलवे पास व पेंशन मिलती है
स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते पेंशन मिलती है और रेलवे पास का इंतजाम सरकार ने किया है. इसके अलावे न तो इलाज की कोई सुविधा है और न ही कोई सुधि लेने आता है. अपनी तकलीफ बयां करते हुए श्री सिंह ने कहा कि एक माह से बीमार हूं, प्रशासन ने कोई सुधि नहीं ली. डीएमसीएच में भी इलाजरत था, सारी दवाएं बाहर से मंगानी पड़ी. यही है स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान. उनके पुत्र शंभु कुमार सिंह का कहना है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को भी जिला प्रशासन इन्हें याद नहीं करता न ही सुधि लेता है.
दो लड़के कर रहे हैं सेवा
वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी गंगा प्रसाद सिंह के परिवार में उनके छोटे भाई उमाधर प्रसाद सिंह पूर्व विधायक हैं. गंगा प्रसाद सिंह के तीन पुत्र व एक पुत्री थी. जिसमें एक पुत्र व पुत्री की मृत्यु हो चुकी है. जीवन संगिनी भी उनका साथ छोड़ चुकी है. दोनों पुत्र शंभु प्रसाद सिंह और पवन कुमार सिंह पिता की सेवा कर रहे हैं. उनके पुत्रों का कहना है उनकी सादगी की लोग मिशाल देते हैं, घर कच्च है, मवेशी भी है, साइकिल पर चढ़कर 1957 के चुनाव में 18000 वोट लाए थे. बाद में 1978 से 2000 तक सिनुआरा के मुखिया रहे. उन्होंने समाज में हमेशा सादा जीवन जीने की प्रेरणा दी.